मंगलवार, 8 नवंबर 2011

आरक्षण में विसंगतियां पार्ट 2 : श्री छेदी लाल साथी ने कहा था

श्री छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में गठित सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के पेज 329 में वर्णित है कि "मल्लाह , केवट , चाई, सोरहिया, बिन्द, बाथम या बथुड़ी, मांझी, मुडियारी ,तियर ,तियार, तुरेहा या तुराहा, खुलवट , रैकवार , कैबर्त तथा निषाद , यह सब मल्लाह जाति के ही विभिन्न नाम हैं जो प्रदेश के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय बोलियों के कारण भिन्न भिन्न नामों से जाने जाते हैं | इन सब जातियों का मुख्य व्यवसाय नाव चलाना , मछली मारना, तथा जाल बुनना है |
इसी रिपोर्ट के पेज 328 में बिन्द जाति के सम्बन्ध में लिखा है कि यह जाति मछुए, नाव चालकों एवं केवट मल्लाहों से मिलती जुलती मानी जाति है |
इसी प्रकार रिपोर्ट के पेज 333 में धीमर / धीवर को ऐतिहासिक प्रष्ट भूमि के अंतर्गत उल्लेख किया है कि धीवर भारतीय समाज में हिन्दुओं में एक शूद्र जाति है | इस जाति का नाम संस्कृत के शब्द स्कंधकार तथा धीवर से बना है जिसका आशय है क्रमशः कंधे पर सामान धोने वाले एवं मछली पकड़ने वाले लोग | इसी से कहारा भी बना है | यह कहार जाति की पर्यायवाची जाति है |
उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति की वर्तमान सूची में मछुआ समुदाय की कतिपय जातियों को जैसे मझवार,गोंड , खरबार , बेलदार, तुरेहा को शामिल तो किया गया है, किन्तु मछुआ समुदाय की अन्य जातियों जैसे केवट , मल्लाह, बिन्द, धीवर , धीमर, बाथम , रैकवार , गोड़िया, मांझी एवं तुराहा आदि को छोड़ दिया गया है , जबकि ये सभी जातियां मछुआ समुदाय की उप जातियां अथवा पर्यायवाची जातियां हैं जिनका रहन - सहन , रीति - रिवाज और धंधा -पेशा एक जैसा है और इन सबका आपस में खान पान व रोटी-बेटी का सम्बन्ध है | ये तथ्य इनके मानव शास्त्रीय अध्ययन में साबित हो चुकें है |"
इन समस्त जातियों के विकास के लिए स्व छेदी लाल साथी ने इस समुदाय को अनुसूचित जातियों की भांति सुविधाएं देने की संस्तुतियां सरकार से की थीं | आज स्व छेदी लाल साथी आयोग की रिपोर्ट को धूल चाटते 32 साल होने जा रहे हैं |
बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने अम्बेडकर महासभा नाम से दूकान चलाने वाले लोग स्व छेदी लाल साथी जी की पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी शान में कसीदे तो गढ़ते हैं लेकिन जब छेदी लाल साथी की रिपोर्ट लागू होने की बात आती है तो ये दोगले चरित्र के लोग कोर्ट पहुँच कर मायावती के इशारे पर स्टे आर्डर ले आते हैं |
अम्बेडकर महासभा के लोग यदि स्व छेदी लाल साथी जी को वाकई सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उनकी रिपोर्ट लागू होने की राह में रोड़ा न बने |

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

आरक्षण में घोर विसंगति पार्ट 1 : मछुआ समुदाय के साथ खुला अन्याय



 जमुना नदी के उस पार का भू भाग जो दिल्ली प्रदेश में आता है, वहां का मल्लाह मछुआ समुदाय अनुसूचित जाति में सूची बद्ध है और वह क्षेत्र जो उत्तर प्रदेश में आता है यानि आगरा एवं गाजिआबाद जिले का मल्लाह विमुक्त जाति में | यूपी के अन्य क्षेत्र का अन्य पिछड़ा वर्ग में | आरक्षण की इस घोर विसंगति का क्या कारण है ? 
     गंगा नदी के अंतिम छोर पर स्थित पश्चिम बंगाल का मल्लाह , केवट, बिन्द, चाई , तियर, कैबर्ता, नाम्शूद्र , पटनी, झालो, मालो, जलिया , महिष्य्दास अनुसूचित जाति में , तो उत्तर प्रदेश का मल्लाह , केवट बिन्द ,कहार, धीवर पिछड़ी जाति में | क्या दिल्ली और पश्चिम बंगाल का मल्लाह जो यूपी से माइग्रेट है वहां जाकर कैसे अचानक अछूत हो गया ? या दिल्ली,  बंगाल का मल्लाह यूपी में आते ही संपन्न और सछूत हो जायेगा | जबकि सबमे रोटी और बेटी के रिश्ते हैं | 
१९५५ से पूर्व जब अस्पर्श्यता अपराध निवारण अधिनियम नहीं बना था तब अनुसूचित जाति में किसी भी जाति को शामिल करने का मानक छुआछूत हुआ करता था | १९५५ के बाद से अधिनियम लागू होने के पश्चात छुआछूत को मानक बनाना अवैधानिक है | संविधान के अनु 17 के अंतर्गत छुआछूत  के भेद भाव को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है | वर्ष २००५ में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जन जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ द्वारा निषाद ,मल्लाह , केवट, बिन्द, मांझी एवं धीवर जातियों का मानव शास्त्रीय अध्ययन कराया गया जिसमे 52 % छुआछूत पाई गयी | अधिकारिता मंत्रालय का यह कहना कि मछुआ समुदाय की जातियों के प्रति,  शतप्रतिशत छुआछूत नहीं है अतः इन्हें अनुसूचित जातियों में शामिल नहीं किया जा सकता , संविधान का खुला मखौल उड़ाना   है |
वर्तमान में किसी भी होटल ,मंदिर , रेस्तरां , धर्मशाला और पिक्चर हाल में जाति पूछ कर प्रवेश नहीं दिया जाता और न ही पूछा जाता है कि फलां होटल या जलपान गृह किस जाति वाले का है, तो मछुआ समुदाय के आरक्षण पर छुआछूत के 100 % का सवाल क्यों |
ऐसा लगता है जो लोग सीढ़ी चढ़कर ऊपर छत पर जा पहुंचे हैं, वे सीढ़ी को अपने साथ ही खींच कर ऊपर ले गए हैं ताकि कोई दूसरा छत पर न आ जाये |


शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

झूठे आश्वासनों में विकास की बाट जोहता बुंदेलखंड : त्रासदी और कब तक ?

प्रिय मित्रों,

इसे बुंदेलखंड के आम जनमानस की त्रासदी ही कहा जायेगा कि आज तक विकास के कोरे ,थोथे और झूठे आश्वासनों के अलावा यहाँ के निवासियों के कुछ हाथ नहीं आया है | कभी बेहद संपन्न और आत्मनिर्भर रहने वाला बुंदेलखंड आज सरकारी तंत्र की उपेक्षा और जनविरोधी नीतियों के चलते बदहाल , कंगाल और उपेक्षित जीवन जी रहा है | 1.5 करोड़ की आबादी का बुंदेलखंड आज बुनियादी सुविधाओं जैसे पेय जल, शिक्षा, कृषि, उद्योग ,बिजली, सड़क, सिंचाई के संसाधन के घोर अभाव के चलते अपनी ही आबादी का बोझ उठाने में लाचार हुआ जाता है | बदहाल और कर्जमंद किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं | परेशान मजदूर पलायन कर रहे हैं | बेरोजगार नव युवकों को पुलिस चोर बनाये डाल रही है | घोषणाएं तो सरकार किये जाती है किन्तु हो कुछ नहीं रहा है |
ऐसे में प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह और राहुल गाँधी के 30 अप्रैल के बुन्देल खंड दौरे को लेकर लोगों की आशाओं और उम्मीदों के बुझते चिराग फिर जल उठे हैं |
केंद्र की UPA सरकार और उसकी मुखिया श्रीमती सोनिया गाँधी ने 2004 में सरकार बनाने के पश्चात् अपने एजेंडे में बुंदेलखंड के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी किन्तु 7 वर्षों में बुंदेलखंड के हाथ छलावे के अतिरिक्त कुछ लगा नहीं है | उद्योगों के प्रति सरकारी उदासीनता एवं लापरवाही का आलम ये है कि बंद पड़े कारखाने चोरों की आरामगाह बने हुए हैं , जो मशीनरी व सामान बचा खुचा है , उसकी रखवाली भी टेडी खीर साबित हो रही है |
आज स्थिति ये है कि,
1 बुन्देल खंड की प्रमुख कताई मिलें बंद |
2 बरगढ़ (चित्रकूट) का कांच कारखाना जो कि एशिया में सबसे बड़ा है , बंद | बिक्री के कगार पर |
3 झाँसी ,बबीना, भरुआ सुमेरपुर , बांदा, चित्रकूट और महोबा की अधिकाँश औद्योगिक इकाइयां बंद , शेष बंदी के कगार पर |
4 बुंदेलखंड के उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए गुडगाँव और नॉएडा की तर्ज़ पर दी जा रही विद्युत् सब्सिडी बंद|
5 औद्योगिक इकाइयों और उससे जुड़े प्रबंध तंत्र की सुरक्षा बंद |
6 उदासीनता एवं लापरवाह औद्योगिक नीति के कारण हजारों मजदूर बेरोजगार और करोड़ों रुपयों की औद्योगिक संपत्ति कबाड़ में तब्दील |
7 बुन्देलखण्ड में औद्योगिक इकाइयों के पुनर्जीवन एवं पुनरोद्धार के लिए विशेष पॅकेज की व्यवस्था बंद |

आशा है दम तोड़ते उद्योगों पर प्रधान मंत्री व राहुल गांधी इस दफा कुछ विचार अवश्य करेंगे |

कृषि एवं सिंचाई दोनों के मामले में बुंदेलखंड का सबसे अधिक शोषण हुआ है | सूखाग्रस्त किसान आज भी घोषणाओं के पूरा होने की हसरत दिल में लिए बैठे है | क़र्ज़ माफ़ी की फाइलें आज भी मंज़ूरी की मोहरों की मुन्तजिर हैं | लगातार कई वर्षों से पड़ रहे सूखे से निपटने के लिए सरकार ने कोई कारगर योजना नहीं बनाई है नतीजतन आज भी किसान आत्महत्या और पलायन जैसे कठोर कदम उठाने को विवश हो रहे हैं | आज ही बांदा के नरैनी थाना क्षेत्र के पड़मई ग्राम निवासी श्री जग प्रसाद तिवारी ने क़र्ज़ का बोझ न संभाल पाने और सरकारी आरसी से परेशान होकर जान दे दी | अभी विगत दिनों क़र्ज़ में दबे महोबा के झिर सहेबा गाँव के श्री राम विशाल उर्फ़ बब्बू कुशवाहा ने भी अपनी ज़मीन अधिग्रहण का मुआवजा न मिलने की वज़ह से आत्महत्या कर ली | दोनों सरकारों के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी |
मेरी मांग है कि
1 -सूखा - पाला प्रभावित किसानों के कृषि ऋण तत्काल माफ़ किये जाएँ
2 -बिजली के दो - दो लाख रुपयों के भेजे गए फर्जी बिल औए उससे जुडी आरसी रद्द की जाये |
3 -सरकार गंग नहर की तर्ज़ पर बुन्देल खंड में भी यमुना नहर बना कर नहर प्रणाली से सिंचाई व्यवस्था को मज़बूत करे | इसके लिए औगासी में यमुना घाट पर डाम बना कर और वहां से नहरें निकाल कर समस्त बुन्देलखण्ड को सिंचाई के बेहतर अवसर प्रदान किये जा सकते हैं | जब रेगिस्तान में नहरों का जाल बिछाया जा सकता है तो बुन्देलखण्ड में क्यों नहीं ?
4 -अर्जुन सहायक बाँध परियोजना का विस्तारीकरण करते हुए इसका दायरा केवल बुन्देलखण्ड की सूखी धरती तक पानी पहुचाने हेतु सीमित किया जाये |
5 -उ० प्र० सरकार के सहयोग से म० प्र० में बने रनगवां बाँध ,गगऊ बांध एवं बरियारपुर बांध से बुंदेलखंड को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जाये | जल बंटवारे में उ० प्र० को 85 % तथा म० प्र० को 15 % जल आपूर्ति निर्धारित थी | इन बांधों की मरम्मत का जिम्मा उ० प्र० सरकार का है |

मनरेगा योजना का दुरूपयोग बुन्देल खंड में आम है | मेरा मानना है कि राजनैतिक फायदे के उद्देश्य से चलाई जा रही इस योजना को तत्काल बंद कर जनोपयोगी योजना सरकार चलाये या फिर इसमें बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए | साधनों को तरसते बुन्देलखण्ड में यदि सरकारी धन की लूट बंद हो जाये तो विकास के रास्ते तो स्वयं ही खुलते चले जायेंगे |
30 अप्रैल को मनमोहनी आश्वासनों और राहुली दौरों से बुन्देलखंडी मानुष फिर दो चार होंगे , समय फैसला करेगा कि ये कार्यक्रम हवाई / राजनैतिक साबित होगा या दर्द से कराहते बुन्देलखण्ड के ज़ख्मों पर किसी राहतबर मरहम का काम करेगा |

रात तो वक़्त की पाबंद है, ढल जाएगी |

देखना ये है, चिरागों का सफ़र कितना है ||

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बाबा साहेब डा०भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं |

प्रिय तुरैहा भाइयो और बहनों ,
 
दलितों,शोषितों,वंचितों तथा पिछड़े - अतिपिछडे वर्गों के मसीहा, भारत ही नहीं अपितु विश्व में मानवाधिकारों के सच्चे पैरोकार, विश्व में अतुलनीय भारतीय संविधान के शिल्पी, भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहेब डा०भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस की १२० वीं वर्षगाँठ के पुनीत अवसर पर समस्त देश व प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं |
अत्यधिक सामाजिक अत्याचार के भुक्त भोगी, असहनीय अन्याय के अनुभवी और बहिष्कृत एवं सामाजिक भेदभाव का दंश झेल चुके बाबा साहेब डा० अम्बेडकर ने सदियों से उजड़े, पिछड़े, दलित, शोषित, पीड़ित, वंचित एवं बहिष्कृत जातियों को दलित घोषित कर संविधान में सामाजिक न्याय व्यवस्था का प्रावधान करके  उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान किया | देश के दलितों को राष्ट्र की मुख्य धरा एवं धारा से जोड़ने वाली आरक्षण व्यवस्था के आप प्रणेता रहे | उसी का सुखद एवं दूरगामी परिणाम हुआ कि अनेक लोग अपने जीवन स्तर व आजीविकाओं में परिवर्तन लाकर लगभग सामाजिक बराबरी का जीवन जी रहे हैं|
किन्तु खेद है, आज अम्बेडकरवादियों की दलितों की ही सरकार में उपेक्षा की जा रही है | अम्बेडकरवादी हाशिये पर हैं और दलित विरोधी सत्ता के स्वामी हुए जाते हैं | बाबा साहेब ने जीवन भर जिस व्यवस्था से संघर्ष किया आज मायावती जी उन्ही से समझौता करके निसंदेह अम्बेडकर वादियों  का अपमान ही कर रहीं हैं | जिसके साथ संघर्ष ठहरा , उससे समझौता कैसा ?
दलित उत्पीडन के सारे रिकार्ड, दलित हितों का दिखावा करने वाली बसपा सरकार में टूट गए हैं | दलित अधिकारी कर्मचारी जितना बसपा सरकार में परेशान हुए हैं, उतना कभी नहीं रहे | शर्म आती है कहने में ,लेकिन कड़वा सच है कि दलित महिलाओं के सर्वाधिक शील भंग इसी सरकार में हुए , कई में तो बसपा विधायक नामज़द हैं | ये अनु०जाति / जनजाति आयोग की रिपोर्ट बताती है |
                इतना ही नहीं, दलितों का दम भरने वाले , जो स्वयं को तथाकथित रूप से अम्बेडकरवादी भी घोषित किये हुए हैं , एक जातिवादी मानसिकता रखकर दलितों में ही विभाजन की प्रष्ठ भूमि तैयार किये जा रहे हैं | दलितों में ही एक तबका बना जा रहा है जो सत्ता के बावजूद कमज़ोर है, योजनाओं के बावजूद पीड़ित है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद शोषित है और दलितों की ही सरकार में बहिष्कृत है | यदि ये सर्वहारा और वंचित वर्ग अपने अधिकारों के लिए दलितों के ही मुकाबले आ गया तो दलितों में विभाजन का दोषी कौन होगा ?
ये बाबा साहेब के मिशन को पीछे धकेलने की और बाबासाहेब का कद छोटा करने की मनुवादी साजिश है जिसमे कुछ सत्ताखोर दलित भी शामिल हैं |
आइये संकट की इस घडी में विचार करें कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित राजनीति की दशा और दिशा क्या है और वास्तव में इसे कहाँ होना चाहिए ? ये ज्वलंत प्रश्न हैं दलित चिंतकों के लिए, ये चुनौतियां हैं अम्बेडकर वादियों के लिए और ये सवाल हैं संविधान प्रेमियों के लिए | दलित राजनीति का लक्ष्य येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाना नहीं बल्कि सम्मान पूर्वक दलितों एवं वंचितों का पुनर्पद्स्थापन और खुशहाल व विकसित जीवन यापन होना चाहिए |
                     सत्ताखोर दलित नेताओं के हाथों से यदि मिशन आजाद करा सके तो यही बाबा साहेब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी | 


शुक्रवार, 18 मार्च 2011

प्रिय तुरैहा बंधुओ , 
आप सभी ब्लॉग पाठकों को होली की ढेर सारी बधाईयाँ , होली का त्यौहार आपके जीवन में खुशियों के सारे रंग घोल दे | ऐसी मंगल कामनाएं हैं |
तुरैहा जाति के लाभार्थ यह नवीनतम शासनादेश भाई रामायण प्रसाद तुरैहा (देवरिया), अध्यापक नथुन प्रसाद तुरैहा (बलिया) कुलदीप कुमार तुरैहा एडवोकेट (मुरादाबाद) एवं प्रमोद कुमार तुरैहा (बरेली) के अथक प्रयासों से जारी हुआ है | समाज बन्धु इसे लेकर अधिकारियों से मिल सकते हैं |


गुरुवार, 3 मार्च 2011

अराजनीतिक बुद्दिजीवियों से सवाल

एक दिन / मेरे देश के / अराजनीतिक बुद्दिजीवियों से / जिरह करेंगे / देश के सबसे सीधे सरल लोग / उनसे पूछेगे, वे क्या कर रहे थे / जब उनका देश मरा जा रहा था / धीरे-धीरे /नरम-नरम आग की तरह नन्हा और अकेले ।

कोई उनसे नहीं पूछेगा /उनके खूबसूरत लिबास की बात / दोपहर के भोजन के बाद की / लंबी नींद की बात / कोई नहीं जानना चाहेगा / शून्यता के तमाम सिद्दान्त के साथ / उनकी बांझ लड़ाई / कैसी थी / कोई नहीं जानना चाहेगा, वह तरीका कौन सा है / जिसके जरिए उन्होंने इकठ्ठा किया - रुपया पैसा / उनसे सवाल नहीं किया जायेगा / ग्रीक - पुराणों के बारे में / या नहीं पूछा जायेगा / अपने को लेकर उन्हें कितनी उबकाई आ रही थी / जब उनके भीतर / मरना शुरु किया था एक / कायर की मौत / उनका अनूठा आत्मसमर्थन / जिसका जन्म /शुरु से अंत तक झूठ था  / उसके बारे में कोई सवाल नहीं पूछेगा ।

उस दिन / आएंगे सीधे सरल लोग / अराजनीतिक बुद्दिजीवियो की किताब या कविता में / जिन्हें जगह नहीं मिली / मगर जो लोग रोज उनके लिये जुटाते गये है / उनकी रोटी और दूध / उनकी तौलिया और अण्डे / जिन लोगों ने उनकी कमीज की सिलाई की है /जो लोग उनकी गाड़ी चलाकर ले गये है / जो लोग उनके कुत्ते और बगीचे की देखभाल करते रहे है / और उनके लिये खटे है |

वे पूछेंगे ......../ क्या कर रहे थे तुम लोग / जब दुख तकलीफ से नेस्तानाबूद गरीब लोग मरे जा रहे थे, / और स्निग्धता और जीवन / उन में जल भुन कर खाक हो रहे थे? / हमारे इस सुन्दर देश के / अराजनीतिक बुद्दिजीवियों ! / उस समय कोई जवाब नहीं दे पाओगे तुम लोग । /


चुप्पी का एक गिद्द / तुम लोगों की गुदा और अंतडी फाड़कर खायेगा, / तुम लोगों की अपनी दुर्दशा ही / खरोंच-काटकर फाड़ती रहेंगी तुम लोगों की आत्मा, / और अपने ही शर्म से सिर झुकाए / तुम लोग गूंगे बने रहोगे ।

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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

माया दो जबाब : क्या कोरी और हिन्दू जुलाहे दो पृथक जातियां हैं ?

अंततः ये स्पष्ट होने जा रहा है कि अब हिन्दू जुलाहे अनुसूचित जाति में नहीं गिने जायेंगे | क्योकि उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति में घोषित कोरी जाति को सरकार हिन्दू जुलाहे का पर्याय न मान कर भिन्न मान रही है | जब कि पिछले कई सालों से कोरी बुनकर समाज अनुसूचित जाति का आरक्षण लेता चला आ रहा है | ऐसे में यकायक कौन से ऐसे ऐतिहासिक और संवैधानिक दस्तावेज़ सामने आ गये जो सारा मुआमला उलटाया जा रहा है | हिन्दू जुलाहों को पिछड़ी जाति में डाल कर सरकार क्या साबित करना चाहती है ? एक समाज के विकास के रास्ते बंद करके दूसरे चहेते सजातीय समाज के लिए मैदान साफ़ करके, सामाजिक सहिष्णुता और दलित भाईचारे के नाम पर धोखा दे कर,  गरीब और सदियों से उपेक्षित रहे बुनकर समाज को अपने इशारों पर नाचने वाले शोध संस्थान की मनगढ़ंत व हास्यास्पद  रिपोर्टों के आधार पर अब एकाएक अनुसूचित जाति के आरक्षण से वंचित कर देना न केवल गैर कानूनी है बल्कि तानाशाही की पराकाष्टा भी है |

आदरणीया बहन जी जानती हैं कि प्रदेश कि अनुसूचित जाति सूची में परिवर्धन , अपमार्जन व संशोधन की प्रक्रिया बेहद जटिल व उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है | इसलिए उन्होंने कोरी जाति का पर्याय हिन्दू जुलाहे को पिछड़ी जाति घोषित करने का फैसला किया है | अब सवाल ये है कि अगर हिन्दू जुलाहे पिछड़े वर्ग के माने जायेंगे तो कोरी किसे कहा जायेगा ? और किन  लोगों को इसका लाभ लेने दिया जाएगा ? कोरी को तो उ० प्र० सरकार सूची से हटा नहीं सकती , वो केंद्र सरकार का क्षेत्राधिकार है | इसलिए जानबूझ कर भ्रम पैदा करने व आरक्षण में बाधा डालने के उद्देश्य से  बुनकर समाज का उत्पीडन किया जा रहा है | जो बेहद शर्मनाक है एवं सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाली सरकार के दोगले चरित्र की ज़मानत देता है |

यहाँ एक तथ्य और ध्यान देने लायक है कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति की तरह पिछड़ी जाति की सूची में भी संशोधन नहीं कर सकती | इस सम्बन्ध में उ०प्र० हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ का बेहद सख्त आदेश भी पिछले साल आया था कि राज्य सरकार पिछड़ी जातियों की संख्या बढाकर वोट बैंक की राजनीति कर रही है और अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण  कर रही है |  ये तथ्य समझ से परे है कि अनुसूचित जाति में कोई नई जाति शामिल करने की पहल बसपा क्यों  नहीं करती ? जब मछुआ समुदाय को दलित दर्ज़ा देने की बारी आई थी तो विरोध की कमान स्वयं मायावती जी ने संभाल ली थी |
क्या कोरी और हिन्दू जुलाहे दो पृथक जातियां हैं ?
अपनी पुस्तक ''The Tribes & Castes of Northern Western United Provinces & Oudh  '' , Vol 3-4 (1896) में सुप्रसिद्ध मानव शास्त्री  W.C. Crooke ने स्पष्ट उल्लिखित किया है कि " Kori is a Hindu Weaver . " 
 इस प्रकार कोरी हिन्दू जुलाहा है | जिसे सम्पूर्ण राज्य में कोरी, जुलाहा , हिन्दू जुलाहा, चंवर जुलाहा , कबीर पंथी जुलाहा , बुनकर कोली जुलाहा के उच्चारणों के साथ पुकारा जाता है |
इस उद्धरण के पश्चात कोई जांच, कोई टिप्पणी , कोई बहस मुबाहिसा और कोई शासनादेश  मायने नहीं रखता |
बहुजन समाज पार्टी के गठन में शेष दलितों के साथ साथ  कोरी भाइयों का भी अथक प्रयास रहा है  | इतना ही नहीं महात्मा गाँधी जी के साथ चाहे आज़ादी की लड़ाई हो या  स्व० कांसीराम जी के साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई , कोरी जुलाहा बुनकर समाज ने अपना खासा योग दान दिया है और मजबूती के साथ अपना वोट बैंक थामे रख कर उसका फायदा बसपा को पिछले कई चुनावों में दिया है |
लेकिन अब लगता है कि शायद बहन जी को इनकी ज़रुरत नहीं रह गयी है ............


मंगलवार, 25 जनवरी 2011

वंचित जातियों का उत्थान - डॉ लोहिया का अधूरा सपना

                           "वंचित जातियों का उत्थान - डॉ लोहिया का अधूरा सपना"


प्रिय मित्रों,

लोकतंत्र में जनता का राज्य होता है | जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन वोट द्वारा करती है | देश की आबादी का ८०% वंचितों का है परन्तु आज़ादी के ६० वर्षों के बाद भी दिल्ली की गद्दी पर वंचितों का राज्य नहीं हो पाया है | इसका कारण आर्येत्तर जातियों का छोटे छोटे वर्गों / जातियों में बँटे रहना है | अल्पसंख्यक द्विज जातियां इन आर्येत्तर जातियों को प्रागैतिहासिक काल से ही विभाजित रखकर शासन करने में सिद्धहस्त रही हैं | चुनावों में वे आज भी उन्हें जाति / धर्म के नाम पर बाँट कर तथा अपने वोट एकजुट रखकर सत्ता प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं | फिर सत्ता के ज़रिये अपने द्विज वर्ग का हित साधन करते हैं | इस प्रकार लोकतंत्र के बावजूद बहुसंख्यक निर्बल और अल्पसंख्यक सबल बन बैठता है |
वोट की ताक़त स्वतंत्रता के पश्चात महसूस की जाने लगी थी | पिछड़ों में मध्य वर्ग जागरूक होने लगा | पशु पालक जातियों यथा ग्वाल, अहीर, गोप, गोरा, घासी, मेहर, घोसी, कमरिया, कडेरी व यदुवंशी जातियों ने अपने को एकीकृत करके यादव नाम दिया | इसी तरह लोध, लोधा, लोष्ठ , लोष्ठा, लोधी,  मथुरिया लोधी राजपूत हो गए | कुर्मी ,चनऊ, पटेल, सैन्थ्वार कुर्मी कहे जाने लगे | चमारों की तो ५१ जातियों जिनमे पिप्पल, निम् , कर्दम, जैसल, जैसवार, जाटव, गहरवार, अहिरवार, जटिया, कुरील, रैदास, दोहर, दोहरे, डोहरा, रविदास, चमकाता, भगत चमकाता , रोहिदास, रोनिगर, रैगड़, भाम्बी, रोहित, खाल काढ, भगत चर्मकार , रैया, धोंसियार, डांबरे , उत्तराहा, दक्खिनाहा, नोना चमार , मोची , मूची, ऋषि, भैरवा, ढेड़, समगर , सागर, सगर, चम्बर, धुसिया और झुसिया ने अपने को केवल दो नामो चमार एवं जाटव से ही परिभाषित किया | इसी प्रकार व्यापार से जुड़े सूढी, हलवाई, रोनियार ,पंसारी, चौरसिया, मोदी, कसेरा, केशरी, ठठेरा, कलवार, सोनार, पतवार, कम्लापूरी वैश्य , सिंदूरिया बनिया, माहुरी वैश्य, अवध बनिया, वंगी वैश्य, वर्णवाल, अग्रहरी वैश्य (पोद्दार), कान्धू , कसौंधन वैश्य और  केसरवानी वैश्य जातियों ने स्वयं को बनिया के रूप में पिछड़ा वर्ग आयोग में पंजीकृत करा लिया तथा एक जगह वोट करने लगे हैं  और आपस में शादी विवाह करने लगे हैं|  इनकी उपस्थिति भी प्रदेश व राष्ट्रीय राजनीति में होने लगी है |
यादव राष्ट्रीय स्तर पर अन्य समकक्ष जातियों को अपने में जोड़ने हेतु प्रयत्नशील है | स्व० चौ० चरण सिंह ने अहीर ,जाट तथा  गुर्जर जातियों को जोड़ने का प्रयास किया था | परन्तु इसे तोड़ दिया गया | द्विज जातियों द्वारा पिछडो को पिछड़ा एवं अति पिछड़ा तथा दलितों को दलित एवं अति दलित में बांटने का प्रयास किया जा रहा है | जरूरत एकीकरण की है , विखंडीकरण की नहीं | परन्तु पिछडो में पीछे छूटे लोगों को आगे लाने की जिम्मेदारी विकसित पिछड़ों को ही निभानी होगी | किन्तु खेद जनक है कि अब वे भी द्विजवादी दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं और अपने को नव द्विज के रूप में स्थापित करने लगे हैं | कमोवेश वंचितों के प्रति उनकी सोच भी द्विजों जैसी हो गई है |
"सोशलिस्ट ने बाँधी गाँठ, पिछड़ा पाए सौ में साठ" 
डॉ राम मनोहर लोहिया ने पिछड़ों की राजनैतिक, आर्थिक, एवं सामाजिक स्थिति का गहन अध्ययन किया | आपने इनकी समस्याओं पर बहुत गहराई से मनन एवं चिंतन किया | आपने पिछड़ों को संगठित करने तथा उनकी समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में अग्रणी भूमिका निभाई | आपने सप्त क्रांति का सिद्धांत प्रतिपादित किया था | लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने इसे सम्पूर्ण क्रांति का नाम दिया | आपने पिछडो के लिए ६०% आरक्षण की वकालत की |
आपके अनुयायी स्व० कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले पिछड़ों को सरकारी सेवा में आरक्षण देने को अमली जामा पहनाया | देश की जनता ने सम्पूर्ण क्रांति के पुरोधाओं को सत्ता सौंप दी, परन्तु लोहिया के बाद सम्पूर्ण क्रांति का सपना आज भी अधूरा है | एक बार एक पत्रकार ने डॉ राम मनोहर लोहिया से कहा था कि एक समय आएगा जब मध्यवर्गीय पिछड़ा, अति पिछड़ा तथा दलितों का शोषण करेगा | तब क्या होगा ? डॉ लोहिया ने कहा था,  तब वंचित अन्य पिछड़ा वर्ग संगठित होगा और संख्या के आधार अपना हिस्सा लेगा | लगता है, वह समय अब आ गया है |
प्राचीन काल में वर्णवादी व्यवस्था में संगठित होने का तरीका रक्त सम्बन्ध रहा था | अन्तर्जातीय विवाह से वंचित खटिक, खतवे, गोढ़ी , गंगे ,गंगौत, गन्धर्व, खटवास, धींवर, चाई, चंद्रवंशी, तांती, तुरैहा, तियर, तियार, थारू, धानुक, नोनिया, कहार , नाई , नामशूद्र, प्रजापति, मांझी मझवार , बेलदार , बिन्द, बियार, भास्कर, माली, मल्लाह, मारकंडे, भोटियारी, राजधोब, राजभर, राजवंशी, किसान, लोध, केवट, खुल्वट तथा वनचर जातियां एक जगह संगठित हों तथा आपस में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करें | तभी वंचित समाज का कल्याण हो सकेगा | इनकी संख्या ३५-४० % है | परन्तु इनमे से कई जातियों का विधान सभा लोक सभा में प्रतिनिधित्व तक नहीं है | इनकी एकता व संगठित शक्ति का राष्ट्रीय एवं राज्य कि राजनीति में गहरा असर पड़ेगा |
समाजवादी समाज का निर्माण हमारा संवैधानिक उद्देश्य है, समता मूलक समाज हमारा लक्ष्य है | बिना जातिवाद को ख़त्म किये समाजवाद आना मुश्किल है | सरकार की जाति तोड़ो योजनायें निष्फल रही हैं | उल्टा जातिवाद को हर स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है |
दलितों एवं पिछड़ों के आरक्षण का लाभ इनकी मध्यमवर्गीय कहे जाने वाली जातियों ने ही उठाया है | या यूँ कहें कि दूसरों को लेने नहीं दिया है  | और नतीजतन एक नये प्रकार का वर्ग आकार ले रहा है जो लोकतंत्र के बावजूद गुलाम है,  आरक्षण के बावजूद वंचित  है, सामाजिक न्याय के बावजूद पीड़ित है, बहुसंख्यक होने के बावजूद उपेक्षित है और समाजवाद के बावजूद शोषित है | यही वो वर्ग है जो प्रत्येक स्तर पर आज भी अंतिम पायेदान पर है |
आइये हम सब इस उजड़े, पिछड़े, दलित, शोषित, उत्पीडित, बहिष्कृत और वास्तव में वंचित कर दिए गए समाज के लिए संगठित होकर संघर्ष करने का संकल्प लें | 





बुधवार, 5 जनवरी 2011

!! गुर्जर आरक्षण - आवश्यकता या राजनीति !!

                                          
राजस्थान में गुर्जर आरक्षण की आग पुनः भड़क चुकी है | अनुसूचित जनजाति के आरक्षण कोटे की मांग को लेकर गुर्जर समुदाय फिर से आक्रोशित है | कडकडाती ठण्ड में गुर्जर दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक पर बैठे अपनी मांगे मनवाने की जद्दोजहद में हैं | सार्वजनिक संपत्ति को भी निशाना बनाया गया और जाम लगाकर राजमार्गों की रफ़्तार थामने का भी प्रयास किया गया | पुलिसिया संघर्ष में अनेकों घायल हुए तो कई फिर जेल गए | सरकार द्वारा फिर वार्ता की पेशकश की गई है | फिलहाल सभी वार्ताएं बेनतीजा साबित हुई हैं |
दरअसल मामला इतना सीधा नहीं हैं जितना सरकारें समझती आई हैं | गुर्जरों के समकक्ष राजस्थान में एक और जाति है मीणा | मीणाओं का खान पान ,रहन सहन ,संस्कार, मानव शास्त्रीय व्यव्हार, शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति गुर्जरों से कदापि भिन्न नहीं है लेकिन इसी जनजातीय आरक्षण के बूते मीणाओं का न केवल राजस्थान सरकार में अच्छा दबदबा है बल्कि सरकारी योजनाओं का संचालन करने वाले राजस्थान के प्रशासन में मीणाओं की खासी भरमार है | इतना ही नहीं जनजातीय कोटे पर अपनी बादशाहत की बदौलत मीणाओं ने केन्द्रीय सेवाओं के उच्च पदों पर भी अपना झंडा गाड़ रखा है | केवल जनजातीय आरक्षण की बदौलत आई इस यकायक क्रांति की चमक ने गुर्जरों को चौंधिया कर रख दिया | सामाजिक ताने बाने में परस्पर बुने और आपस में गुंथे दो समकक्षीय समुदायों की विकासात्मक प्रक्रिया इतनी विभेद पूर्ण होगी कि एक मलाई खाए और दूसरे के हाथ खाली बर्तन तक न आये, ये गुर्जरों ने सोचा भी न था | संवैधानिक व्यवस्था ही निसंदेह कहीं न कहीं दोषपूर्ण है |
डॉ. लोहिया ने कहा था -" समाजवादी विचारधारा की सामाजिक सहिष्णुता ही पोषक है " | और यही समाजवाद  आज हमारे संविधान की आत्मा है | जब समाज से सहिष्णुता ही गायब हो जाएगी तो काहे का समाजवाद और कैसी संवैधानिक व्यवस्था ? गुर्जरों के आरक्षण का सर्वाधिक विरोध मीणा समाज द्वारा किया जाता रहा है | इसके पीछे मजेदार तर्क ये दिया जाता है कि गुर्जर अनूसूचित जनजाति के मानक पूरे नहीं करते | जब कि गुर्जर समुदाय जम्मू कश्मीर ,हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड व पंजाब सहित कई राज्यों में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित है | इतना ही नहीं तत्कालीन  केद्रीय वन मंत्री श्री नमो नारायण मीणा द्वारा गुर्जर आरक्षण का यह कर विरोध किया गया कि अगर गुर्जरों को जनजातीय आरक्षण दिया गया तो मीणा समाज प्रदेश सरकार को सबक सिखाएगा क्योकि ऐसा करने से मीणाओं का कोटा कम हो जायेगा | ऐसी घटिया सोच एक केन्द्रीय मंत्री जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठा शख्स रखता है तो आम मीणा का नजरिया सोचा जा सकता है |
यही असहिष्णुता समाज में वैमनस्य का कारण बनती जा रही है जो समाजवादी व्यवस्था के लिए न केवल खतरे की घंटी है बल्कि समाज के उन कमज़ोर और उपेक्षित वर्गों के लिए चुनौती भी है जो आरक्षण के सहारे राष्ट्र की मुख्य धारा में आना चाहते हैं और शिक्षा एवं विकास के ज़रिये अपनी आजीविका में सुधार लाना चाहते हैं | अब आरक्षण कोई नया प्रयोग तो है नहीं, ना ही ये किसी ख़ास जाति या समाज की संपत्ति ,बपौती या जायदाद है जो एक ही समाज इसका फायदा ले और दूसरे यदि इस की मांग करें तो उन्हें नियम कानून पढ़ा कर टरका दिया जाये | दुनिया के १२० से ज्यादा मुल्कों में किसी न किसी रूप में आरक्षण लागू है |  बहुसंख्यक दलित या पिछड़ों के सामने अल्पसंख्यक दलितों या पिछड़ों की उपेक्षा सरकारों के लिए अच्छा संकेत नहीं है | बहुसंख्यक दलित यदि ये सोचते हैं कि किसी अन्य जाति द्वारा कोटे में शामिल हो जाने से उनकी जाति का हिस्सा कम हो जायेगा तो ये बात आपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसी होगी क्योंकि आरक्षण से सबसे ज्यादा किसी का कोटा कम हुआ है तो सवर्णों का | अब दलित/पिछड़े  खुद किसी समाज के आरक्षण का  किस अधिकार से विरोध कर सकते हैं | और यदि दलित / पिछड़े ही एक दूसरे के आरक्षण का विरोध बंद नहीं करेंगे तो निश्चित ही एक दिन आरक्षण ख़त्म कर दिया जायेगा | वैसे भी यह व्यवस्था नितांत तात्कालिक एवं समीक्षात्मक है |  बाबा साहेब डा० अम्बेडकर की आरक्षण परिकल्पना सम्पूर्ण दलित समुदाय के लिए थी न कि दो -चार जातियों के विकास के लिए |
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व  में २३ मई २००८ को आरम्भ हुए इस आरक्षण आन्दोलन में जमकर सियासत भी हुयी | राजस्थान की तत्कालीन भाजपा सरकार में मंत्री श्री कालू लाल गुर्जर एवं विधायक प्रहलाद गुंजल ने आन्दोलन को सरकार के इशारे पर बाँट दिया | बँटे हुए गुर्जरों की अब मांगे भी अलग हो चुकी थीं | आधे गुर्जर अब जनजातीय कोटे की मांग छोड़ कर, मीणाओं के दबाब में आई वसुंधरा सरकार की पेशकश विशेष पिछड़ा वर्ग आरक्षण कोटा लेने को तैयार हो गए | जब कि इसी पिछड़े वर्ग की आरक्षण सूची में गुर्जर ३० सालों से हैं | किन्तु २००१ में पिछड़े वर्ग में जाटों के शामिल हो जाने से गुर्जरों के लिए बची खुची गुंजाइश भी जाती रही | २००४ के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले तत्कालीन बाजपेयी सरकार द्वारा गुर्जरों को जनजातीय दर्ज़ा देने का ऐलान भी किया गया था वो भी जयपुर जाकर | केन्द्र से भाजपा के सफाये के बाद गुर्जरों की  प्रदेश  भाजपा सरकार से ही आस बची थी | ये बात भी सच है कि गुर्जरों का विकास अनुसूचित जनजाति आरक्षण दिये बिना संभव  नहीं है और वे इसके मानक भी पूरे करते हैं | किन्तु उनकी ये मांग जयपुर व नई दिल्ली से हर दफा खारिज कर दी गई | फलस्वरूप आन्दोलन की परिणिति हुयी|
इधर बैंसला के लोकसभा चुनाव लड़ने व करारी हार ने आन्दोलन को पूरी तरह राजनैतिक व धड़ेबाजी में बाँट दिया | हालांकि  पूरे मामले में सचिन पायलट की चुप्पी रहस्यमय रही और उनकी सक्रियता भी उनके निर्वाचन क्षेत्र तक ही रही | यदि सचिन पायलट चाहते तो प्रदेश की गहलौत सरकार पर दबाब बना कर केंद्र सरकार को जनजातीय आरक्षण का प्रस्ताव भिजवा सकते थे और वहां से इसे मंज़ूरी भी दिला सकते थे लेकिन मीणा वोटों का कांग्रेस से छिटक जाने का डर भी था | अब लब्बोलुआब ये है कि बैंसला किसी भी सूरत कोई राह निकालना चाहते हैं ताकि बात रह जाये लेकिन धड़ेबाजी में बटें आन्दोलन और बिखरे हुए गुर्जरों की फिलहाल बात बनती नज़र नहीं आ रही |

 कहाँ तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए |
 कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए ||

रविवार, 2 जनवरी 2011

नव वर्ष हो मुबारक !!

सभी सजातीय बंधुओं को नए वर्ष की शुभ कामनाएं | आप जानते ही हैं चुनौतियों से लड़ते लड़ते फिर एक साल होने को आया है | हालात मुश्किलों भरे हैं | माहौल पेचीदा है| संभावनाएं शून्य हैं | उम्मीदें कमज़ोर हैं | नेतृत्व मूकदर्शी है | संगठन नाममात्र है | सरकार संवेदनहीन है | नीतियाँ पक्षपाती हैं | अधिकारी बहरे हैं | समाज लाचार है | लेकिन फैसला अब भी बाक़ी है और ज़रूरी भी |

अब बदलाव ही एक मात्र विकल्प है | आइये नए साल में शपथ लें कि समाज विरोधी ताक़तों का डट कर मुकाबला करेंगे, अन्याय और  भाई-भतीजाबाद की नीतियों पर चलने वाली एवं  बहुसंख्यक दलितों के सामने अल्पसंख्यक दलितों की उपेक्षा करने वाली इस आताताई सरकार को बदलेंगे और बदलाव लायेंगे  |