शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

जोगेंद्र नाथ भट्टाचार्य की पुस्तक में वर्णित कहार जाति के विश्लेषण का मूल पाठ से अनुवाद


प्रष्ट सं0  310     घरेलू सेवक
{ 2.-- उत्तर पश्चिम प्रान्त और बिहार 

कहार - इस जाति  का नाम संस्कृत के स्कंधकार से उदगत है ,जिसका तात्पर्य है कंधे पर सामान ढ़ोने वाला । इस जाति का मुख्य कार्य सामान ढोना है । लेकिन इनमे बहुत सी जातियां उपजातियां होती है,जिनमे कुछ तो यही कार्य करती हैं जबकि अन्य जातियां उपजातियां नाव खेना,मछली शिकार , अनाज की खरीद फरोख्त, छाँछ -टोकरी ,पल्ले, झाड़ू , हाथ के पंखे बनाने वाले (जिसे रूहेलखंड में डलेरा कहा गया ) के साथ साथ जाल बुनने का कार्य करते हैं । कहार  की प्रमुख उपजातियों में रावनी ,रमानी और तुराह हैं । रावनी और रमानी उत्तर भारत के प्रत्येक नगर में पाए जाते हैं ,वे कुलीगिरी, हाथ के पंखे बनाने वाले, घरेलू सेवक और निजी सहायक होते हैं । प्रायः हर अच्छे भले परिवार में एक रावनी जाति  का व्यक्ति घर में नौकर होता है जो सारे कार्य करता है । वहीँ तुराहा ,जो नाविक और मछुआरा कहलाता है मुख्यतः उत्तर पश्चिमी प्रान्त और बिहार में पाया जाता है । इनके बंगाल के ढाका,  नादिया (तत्कालीन बंगलादेश ) और हूगली के शाहगंज के बाजार में निवासरत होने के प्रमाण औरंगजेब के पौत्र अजीमो शान को भी मिले हैं ,जो बंगाल का काफी समय शासक भी रहा ।हालाँकि बंगाल की तुराह जाति प्रथक जाति के रूप में विकसित हो चुकी थी और वहां उसका कहार से कोई सम्बन्ध भी नहीं रह गया था । रावनी बंगाल  में ज्यादा संख्या में नहीं थे और प्रायः गया राज्य  के आसपास के क्षेत्र में बसे थे । जो अक्सर वहां शीत काल में आ जाते थे और गर्मियों में या जब उन्हें सुविधा होती, लौट जाते ।
कहार जाति का कोई भी समूह स्वच्छ शूद्र कहलाने का अधिकारी/योग्य  नहीं था ।मत्स्य आखेटक वर्ग गन्दा रहता और उससे लोगों द्वारा गन्दा व्यवहार ही किया जाता । हालाँकि रवानी  लोग मछली नहीं मारते थे फिर उनकी स्थिति तुराहा से ज्यादा अच्छी भी नहीं थी । इस जाति के ज्यादातर शराब पीने के आदी थे और खेतों के चूहे के अलावा कभी कभी सूअर भी खाते थे । इस जाति में विश्वस्त और आज्ञापालक नौकर दूंड़ना मुश्किल था । लेकिन हिन्दू परिवारों की जरूरत ने उन्हें स्वच्छ बनने  को विवश किया । जिस कर्म काण्ड में कहार जाति के व्यक्ति जुड़े  होते थे ,  वहां उच्च कोटि का ब्राहमण धार्मिक अनुष्ठान नहीं करता था । कहारों का पुजारी नीच कोटि का ब्राहमण होता था । अधिकाँश रावनी परिवार शिव और काली के उपासक होते थे और उनका कलकत्ता के निकट स्थित काली शक्तिपीठ पर बहुत विश्वास होता था । उनमे से ज्यादातर कलकत्ता आकर देवी का पूजन करना नहीं भूलते थे । जब वे कंधे पर वजन चढाते थे या उतारते थे तो जय काली कलकत्ते वाली का उद्घोष किया करते थे ।
कहार जाति की आबादी 1891 के अनुसार नीचे  दी गयी है ;-
उत्तर पश्चिम प्रान्त --------1,208,530
बंगाल ----------------------621,176

310 DOMESTIC SERVANTS. 

§ 2. — N.- W. Provinces and Behar, 

Kahar. — This caste derives its name from the 
Sanskrit word Skandhakara^ which means one who 
carries things on his shoulders. The primary occupa- 
tion of this caste is carrying litters. But there are 
several sub-castes among them, and while some of 
these practise their proper profession, the others are 
either boatmen, fishermen, grain parchers, basket-makers, 
or weavers. The most important sub-castes of the 
Eahars are the Bawani and the Turah. The Rawanis 
are to be found in large numbers in every town 
of Northern India. They serve as litter carriers, 
punka-pullers, scullions, water-carriers and personal 
attendants. In every well-to-do family there is at least 
one Bawani to serve as the " maid of all work." The 
Turahs, who are boatmen and fishermen, are to be found 
chiefly in Behar and N.-W. Provinces. They have 
some colonies in Bengal, in the ancient towns of Dacca 
and Nadiya, and in the market town of Shah Ganj near 
Hooghly, founded by Azim Oshan, the grandson of 
Aurangzebe, who was for some years the Grovernor of 
Bengal. The Turahs of Bengal have, however, formed 
themselves into a separate caste, and the fact that they 
are a branch of the Kahar caste is not even known to 
them. Of the Rawanis very few are domiciled in 
Bengal. Those found in this part of the country are 
chiefly natives of Gaya, who come every year in the 
beginning of the winter season, and go oaok to their 
native home in June or July, or when they deem it 
convenient 

No class of Kahars can be said to have the right of 
being regarded as clean Sudras. The fishing classes 
are certainly unclean, and they are treated as such. 
Although the Rawanis do not catch fish, yet even they 
ought not to stand in a better position. A great many 
of them are in the habit of drinking spirits, and eating 
field rats and even pork. But it is difficult to get more 
311

trnstworthj and obedient servants, and the necessity of 
Hindu families has made them a clean caste. No good 
Brahman, however, officiates as a priest for the perform- 
ance of a religious ceremony in which a Kahar is con- 
cerned. The Kahar's priest is treated as a degraded 
Brahman, and his Guru or spiritual guide is usually an 
ascetic. Most of the Bawanis are worshippers of Siva 
and Kali, and there are very few Vishnuvites among 
them. They have great reverence for the shrine oi 
Kali near Calcutta. Those of them who come to Calcutta 
never fail to give a puja there, and evep in the districts 
remote from Calcutta, their usual cry, when they 
take a litter on their shoulders or drop it, is, Jai Kali 
Calcuttawali* The Kahar population of India is as 
stated below : — 

N.-W. Provinces ... ... ... 1,208,530 

Bengal ... ... ... ... 621,176 

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

सवाल बरक़रार है.............!

हम तो फिर भी हैं श्रमिक, धरा पे सो भी जायेंगे ।
वो सोचें अपनी खैरियत, कि किस तरह मनायेंगे ।
ये कैसे नीतिकार हैं, जो दुर्दशा पे मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।

 
वो प्रश्न हैं अनुत्तरित, जुड़े जो अस्तित्व से,

हमारे हर सवाल का, अभी जवाब शेष है।
हमारे उस विकास का, नया आयाम क्या हुआ ?
जो शोषणों पे लाते तुम, वो विराम क्या हुआ ?
हमारे नदी घाट के, वो वायदे कहाँ गए ?
जो आप देने वाले थे, वो फायदे कहाँ गए ?
हरेक मोड़, हर गली, सवाल पूछती यही 
चुनाव घोषणाओं पे, ये आज कैसा मौन है
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।

लोकतंत्र है यहाँ, मुकर भी जाओगे तो क्या 
व्यवस्था मूक है सदा, पलट भी जाओगे तो क्या 
मगर वो क्या करे फ़क़त, जो तेरी आस पे टिका 
तेरी तलाश में रहा, तेरे लिए नहीं बिका।
तेरे लिए नहीं हटा, तेरे लिए अड़ा रहा ।
तेरे लिए डटा रहा, तेरे लिए खड़ा रहा  ।
उठाये कब से घूमता हूँ, वायदों की पोटली 
जो देखने में है हसीं, पर असलियत में खोखली
वो घोषणा हवा हुई, वो सब्ज़ बाग़ धुल गए 
जरा नशा हुआ नहीं, कि तुम तो पूरे खुल गए 
कोई अमल शुरू नहीं, व्यवस्था अब भी मौन हैं,
ये नायकों के वेश में,  पता लगाओ कौन है ।

कभी जो शांत दीखता था, आज वो भड़क रहा ।  
सुबक रहा, सुलग रहा, ये वर्षो से दहक रहा ।  
हमारी छातियों में क्रोध, बन के जो भभक रहा
जो फट गया कभी सुनो, ज्वालामुखी धधक रहा ।
तो सोच लो तबाही की, तुम्हें वो कल्पना नहीं ।
जो रोक ले निषाद को, तो ऐसा कुछ बना नहीं ।
हैं शूल सारे चुभ रहे, पथिक मगर झुको नहीं ।
पड़ाव मोह जाल है, रुको नहीं , रुको नहीं 
हैं लक्ष्य अब पुकारता , जो भेद दे, वो बाण दो ।
कि शूरवीर हो तुम्हीं, प्रमाण दो ...प्रमाण दो ।
जो सो रहे है उन रगों में,  इन्कलाब चाहिए ।
सवाल दर सवाल है, हमें जवाब चाहिए ।

सवाल बरक़रार है, हमें हिसाब चाहिए ।