बुधवार, 26 दिसंबर 2012
मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
गर्व से कहें हम तुरैहा है
कश्यप
टाइटिल लिखने की वजह से नासमझ तुरैहा जाति के लोगों का बड़ा नुक्सान हुआ है
। जब से कश्यप शब्द जाति के रूप में पिछड़े वर्ग में दर्ज हुआ है तब से
विभिन्न जनपदों में तुरैहा जाति के प्रमाण पत्र बनना बन्द से हो गए | लोगों ने पहले कश्यप को अपना गोत्र बताकर लिखना आरम्भ किया फिर उसे अपनी जाति बताने लगे और अपनी वास्तविक जाति को छुपाने लगे । इससे जहाँ एक ओर जनगणना आंकड़ों में तुरैहा जाति की संख्या घटने लगी वहीँ तुरैहा समाज के लोगों के सामने समस्याएँ भी आनी शुरु हो गयी ।
आज आवश्यकता है कि हम समाज उत्थान के लिए आगे आयें और गर्व से कहें हम तुरैहा है ,मछुआ समुदाय के अंग हैं ।
आज आवश्यकता है कि हम समाज उत्थान के लिए आगे आयें और गर्व से कहें हम तुरैहा है ,मछुआ समुदाय के अंग हैं ।
सोमवार, 10 दिसंबर 2012
हाकिम मेरे हालत पर तो खा गया तरस । बाबू से ख़त का आज तक मजमूँ नहीं बना ।
स्वजाति के मोह में दूसरी जातियों को आरक्षण से वंचित करने वाले कहीं और नहीं
बल्कि मंत्रालयों में बैठे है । ये आरोप नहीं बल्कि हकीकत है । और इसे
प्रमाणित भी किया जा सकता है । सब जानते हैं कि संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950
में संशोधन की बहुत लम्बी प्रक्रिया हैं ,जिसे SC /STSR&T I के शोध के
पश्चात् राज्यसरकार की सबल संस्तुति , तत्पश्चात NCSC / NCST / RGI आदि की
हाँ के पश्चात गृहमंत्रालय ,अधिकारिता मंत्रालय, कैबिनेट समिति से होता
हुआ संसद तक जाना होता है । वहां लम्बी बहस होती है , पास हुआ तो ठीक वर्ना
वोटिंग में सरकार गिर भी सकती है ।अब भला कोई सरकार इतना जोखिम क्यों लेगी ? दूसरों को सशक्त करने के चक्कर कोई सरकार कमजोर क्यों होना चाहेगी ?
इसके लिए हमारे सरकारी दफ्तरों में एक ढर्रा है लिपकीय त्रुटि । लिपकीय त्रुटि के जरिये अच्छे अच्छे आदेशों को पलीता लगाया जा सकता है । एक बार गलत आदेश जान बूझ कर जारी कर दिया जाता है उसके बाद उसका अनुपालन करने वालों की लम्बी फौज बैठी रहती है जो हर हाल में अपना काम कर दिखाती है ।
उदाहरणार्थ :- 1
==========
संविधान अनुसूचित आदेश 1950, संशोधन आदेश 1976 में मध्य प्रदेश में क्रम 35 पर स्पष्टतः Kumhar जाति अंकित है जो 2002 आते अपने आप Kumar हो गयी । अब चूँकि Kumar जाति का आदेश आ गया तो मध्यप्रदेश के आठ जिलों में बेचारे कुम्हार अपना चाक गिरेबाँ में लटकाये अपना गिरेबाँ चाक किये डालते थे लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा । नतीजतन आठों जनपदों में कुम्हार जाति के SC प्रमाण पत्र बंद हो गए । बिना कुछ किये संविधान संशोधन हो गया । हर्र लगी न फिटकरी ....रंग चोखा । इति सिद्धम ।
उदाहरणार्थ :-2
============
उडीसा में नारायण बेहरा बनाम उडीसा सरकार 1978 के मामले में केंद्र सरकार ने 23 मई 1981 को पत्रांक BC 12016/22/80-SC & BCD -IV के माध्यम से DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखने का आदेश दिया ,लेकिन बाबूशाही और उनका स्वजातवाद हावी रहा । नतीजतन उडीसा में क्रम सँ 24 पर तो DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखा गया । लेकिन मध्य प्रदेश और उससे निकले छत्तीसगढ़ के क्रम सँ 19 को छोड़ दिया गया गया । बाबू कहते हैं उडीसा वालों ने 31 साल मुकदमा लड़ा । आपको क्या ऐसे ही फ्री में दे दें । जाकर मध्य प्रदेश /छतीसगढ़ के लिए दोबारा 31 साल मुकदमा लड़ो ।
उदाहरणार्थ :-3
=============
उत्तर प्रदेश में 1961 ,2002 में धुरिया जाति का आदेश निकालते समय Dhuriya शब्द का कचूमर निकाल दिया गया । इसकी स्पेलिंग कभी भी शुद्ध नहीं लिखी गयी कभी Thuriya , कभी थुरीबा लिखा गया । परिणाम स्वरुप धुरिया जाति कहीं की नहीं रही ।
उदाहरणार्थ :4
==========
जन गणना 1961 में वर्णित अनुसूचित जातियों की सूची में कहार की उपजाति दलेरे को जानबूझ कर दलेसे Dalesey लिख दिया । परिणाम स्वरुप दलेरा जाति आरक्षण से वंचित हो गयी ।
इसके लिए हमारे सरकारी दफ्तरों में एक ढर्रा है लिपकीय त्रुटि । लिपकीय त्रुटि के जरिये अच्छे अच्छे आदेशों को पलीता लगाया जा सकता है । एक बार गलत आदेश जान बूझ कर जारी कर दिया जाता है उसके बाद उसका अनुपालन करने वालों की लम्बी फौज बैठी रहती है जो हर हाल में अपना काम कर दिखाती है ।
उदाहरणार्थ :- 1
==========
संविधान अनुसूचित आदेश 1950, संशोधन आदेश 1976 में मध्य प्रदेश में क्रम 35 पर स्पष्टतः Kumhar जाति अंकित है जो 2002 आते अपने आप Kumar हो गयी । अब चूँकि Kumar जाति का आदेश आ गया तो मध्यप्रदेश के आठ जिलों में बेचारे कुम्हार अपना चाक गिरेबाँ में लटकाये अपना गिरेबाँ चाक किये डालते थे लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा । नतीजतन आठों जनपदों में कुम्हार जाति के SC प्रमाण पत्र बंद हो गए । बिना कुछ किये संविधान संशोधन हो गया । हर्र लगी न फिटकरी ....रंग चोखा । इति सिद्धम ।
उदाहरणार्थ :-2
============
उडीसा में नारायण बेहरा बनाम उडीसा सरकार 1978 के मामले में केंद्र सरकार ने 23 मई 1981 को पत्रांक BC 12016/22/80-SC & BCD -IV के माध्यम से DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखने का आदेश दिया ,लेकिन बाबूशाही और उनका स्वजातवाद हावी रहा । नतीजतन उडीसा में क्रम सँ 24 पर तो DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखा गया । लेकिन मध्य प्रदेश और उससे निकले छत्तीसगढ़ के क्रम सँ 19 को छोड़ दिया गया गया । बाबू कहते हैं उडीसा वालों ने 31 साल मुकदमा लड़ा । आपको क्या ऐसे ही फ्री में दे दें । जाकर मध्य प्रदेश /छतीसगढ़ के लिए दोबारा 31 साल मुकदमा लड़ो ।
उदाहरणार्थ :-3
=============
उत्तर प्रदेश में 1961 ,2002 में धुरिया जाति का आदेश निकालते समय Dhuriya शब्द का कचूमर निकाल दिया गया । इसकी स्पेलिंग कभी भी शुद्ध नहीं लिखी गयी कभी Thuriya , कभी थुरीबा लिखा गया । परिणाम स्वरुप धुरिया जाति कहीं की नहीं रही ।
उदाहरणार्थ :4
==========
जन गणना 1961 में वर्णित अनुसूचित जातियों की सूची में कहार की उपजाति दलेरे को जानबूझ कर दलेसे Dalesey लिख दिया । परिणाम स्वरुप दलेरा जाति आरक्षण से वंचित हो गयी ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)