रविवार, 24 नवंबर 2013

Election....... means ..…"Fishermen first",

My definition of Election....... means ..…"Fishermen first",
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चुनावी राजनीति और जातीय गणित को समझे मछुआ समुदाय ।
दलीय प्रतिबद्धताओं को त्याग कर दलीय दलदल से निकले और मछुआ प्रत्याशियों के हित कमर कसे समाज ।
2014 लोक सभा का चुनाव मुहाने पर है और हमारा SC आरक्षण का प्रस्ताव लोकसभा में पेश होने के इंतज़ार में धुल खा रहा है । विलम्ब का कारण यह नहीं कि फलां पार्टी हमारे समाज को कुछ देना नहीं चाहती , बल्कि टालमटोल का सबब यह है कि हम लेने वालों में से हैं, … देने वालों में से नहीं अर्थात सत्ताधारी राजनैतिक दल में हमारे मछुआ समुदाय का प्रतिनिधित्व नगण्य सा है या बहुत कम है । और सौभाग्य से कुछ है भी तो वे लोग दलीय मर्यादा की रस्सी से बंधी गाय से बढ़कर नहीं जो स्वामी भक्ति की अतिशयता की हद किये डालते हैं और दलीय चारा चरते हुए गाहे बगाहे सामाजिक कार्यक्रमों में निकलते हैं और सिर्फ दलीय राग छेड़ अपनी विवशता का कीर्तन करते हैं ।
हमें दलीय सीमाओं को तोड़ कर सामाजिक रूप से सशक्त होना होगा और अधिक से अधिक मछुआ प्रत्याशी जिताकर संसद भेजने होंगे । जब केंद्रीय सत्ता में अथवा लोकसभा में ही हमारी आवाज़ को बुलंद करने वाले सांसदों का अभाव होगा तो हमारी बात कैसे और क्यों सरकार के कानों तक पहुंचेगी । अगर धुन के पक्के सिर्फ चार मछुआ MP ठान लें तो मजाल है जो संसद का सत्र एक दिन भी चल जाए ।
भारत के प्रत्येक राज्य में हमारी मछुआ आबादी है , सत्तरह राज्यों में हम SC/ST के रूप में हैं बाकी में OBC अथवा विमुक्त ।
एक हो जाये तो मछुआ समुदाय अपने संख्या बल पर देश की संसद में कम से कम 60 सांसद चुनकर भेज सकता है किन्तु विभक्त संगठन और बंटा हुआ समाज प्रायः हर चुनाव में हाथ मलता रह जाता है । हम एक नेता और एक नीति के लिए तरसते ही रहे । खेमों और धड़ों में बँटना और ऐन मौके पर बिकना ,बिखरना और बहकना हमारी नियति रही हैं । हमारे वर्त्तमान में झूठे स्वाभिमान का मोह पल रहा हैं और व्यवस्था जनित संड़ाध को अपने में समेटे हमारा समाज आगे बढ़ने का दिवास्वप्न देख रहा है जो बिना त्याग , निस्वार्थभाव और बलिदानी जज्बे के सफल होने वाला नहीं हैं ।
निषाद वैभव की पुनर्प्राप्ति के लिए आइये संकल्पित होकर मतदान करें और शपथ लें कि " वोट और बेटी समाज को ही देंगे " और आगे बढ़ अपना अधिकार लेंगे ।