इसी लिए कोहराम मचा है !!
करता तू इनकार रहा है ,
जो इनका अधिकार रहा है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!
स्वर्ग तुम्हारा टूट रहा है ,
भर्म तुम्हारा छूट रहा है ,
बिन वेतन का दास तुम्हारा ,
चंगुल से अब छूट रहा है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!
जिनको अब तक लूट रहा था ,
सांकल से वह छूट रहा है ,
ईश्वर का आडम्बर तेरा ,
मातम का वह फंदा तेरा ,
पुनर्जन्म का धंधा तेरा ,
स्वर्ग-नरक का चंदा तेरा,
वर्ण-व्यवस्था गन्दा तेरा ,
सब कुछ तो अब टूट रहा है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!
पोथी और पुथन्नों को तू ,
गढ़ने का मक्कार रहा है ,
बैठे-ठाले खाने वाला ,
चालू व हुशियार रहा है ,
रटा रटाया , लिखा लिखाया ,
विद्याओं को छिपा छिपाया ,
पर हमने भी छेद किया है ,
हमने उनको जान लिया है ,
हमने उनको छान लिया है ,
शोषण के सब हथकंडे है ,
परत-परत संज्ञान लिया है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!
{साभार - दलित साहित्य -श्री गुरु प्रसाद मदन की श्रेष्ठ कविताएँ }
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