पुरातात्विक विश्लेषकों के अभिमतों की विवेचना कर मछुआ समुदाय का इतिहास लोगों के सामने रखों तो असलियत स्वीकारने में हिचकते है ...कहते हैं हम तो राजपूत थे । इतिहासकारों के सौ डेढ़ सौ साल पुराने तथ्यों का उल्लेख कर भारत की आदि निवासी मछुआ जाति पर कुछ लिखो तो कहते हैं .... हमारे दादे परदादे क्या थे ...हमें नहीं पता ....हम कश्यप हैं और महर्षि कश्यप की संतान हैं । हमारी साठ हजार परदादियाँ थी । धीवर, कहार, केवट ,मल्लाह के नाम से चिढने वाला समाज आज अपनी असलियत को भूल आधुनिकता की तथाकथित चादर तान सो जाना चाहता हैं । युवा कहते हैं ..हमें आरक्षण की क्या जरूरत हैं ..हम अपनी मेहनत से ही सब कुछ पाना चाहते हैं । आरक्षण तो भंगी और चमार या उनके समकक्ष होने की पहचान है । ज्यादा कहो ..तो कहते हैं ....हमें OBC का आरक्षण मिल तो रहा है ...क्या परेशानी है ?
विरोध नहीं करने की आदत ने हमारे अन्दर ही हमारे शत्रु पैदा कर दिए है ...जो विरोध करने वाले के पीछे लग जाते हैं और आपस में टांग खींच कर खुश होते हैं । सरकारें मनगढ़ंत निर्णय कर हमें और नुक्सान पहुंचा रही हैं ...हम एकता का ही रोना रोते रहे ।
वस्तुतः निषाद, केवट ,मांझी , मल्लाह , नाखुदा , जहाजी , एक ही शब्द हैं, लिहाजा एक जाति हैं । जबकि वास्तव में ये शब्द भाषाई एतबार से अलग है । निषाद संस्कृत का शब्द है ..जबकि केवट और मांझी उसी के हिंदी रूपांतर हैं ..इसी प्रकार मल्लाह उर्दू का शब्द हैं जबकि नाखुदा और जहाजी इसी के फारसी रूपान्तर है । इसी को अंग्रेजी में बोटमैन या फैरीमैन कहते हैं तो क्या एक ही अर्थ वाले सभी शब्द अलग अलग हो गए ? और अलग अलग जाति या प्रकार हो गये ... बिखरते गये ।
इसी प्रकार कहार शब्द उर्दू है जो कुलीगिरी काम काम करने वालों के लिए प्रयुक्त किया जाता था ..जिसे अमीरों ने पालकियों के वाहकों से जोड़ दिया । वास्तव में ये भी संस्कृत के स्कंधकार से बना हैं । इसी प्रकार धीवर धैवर्त से उद्धरत ..तत्पश्चात धीमर ,झीमर झिम्मर चिम्मड़ के रूप में अपभ्रंशित हैं । सरकारों में बैठे आठवाँ पास बाबू इन्हें अलग अलग मान कर क्रम संख्याएं बाँट रहे हैं ....और नित नई व्याख्याएं पेशकर रहे हैं । समाज बंटा जा रहा हैं .....हमारे लोग अपना अतीत राजवंशों और रजवाड़ों में तलाशते घूम रहे हैं ।
मेरे सामने टीवी पर मोदी का पुणे के फर्ग्युसन कालेज में दिया व्याख्यान लाइव चल रहा है ...चीन का भय दिखा कर ही सही ......मोदी जी लोगों को एक जुट करने का आह्वान कर रहे हैं ...और इसमें युवाओं को महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं ..विश्व व्यापार में भारत की ऐतिहासिकता और हमारी प्राचीन मरीन इंजीनियरिंग का हवाला देकर मोदी भाई ताली बजवा रहे हैं ....पता नहीं हमारे युवा मछुआ समाज का गौरव और एकजुटता की आवश्यकता कब महसूस करेंगे ?
विरोध नहीं करने की आदत ने हमारे अन्दर ही हमारे शत्रु पैदा कर दिए है ...जो विरोध करने वाले के पीछे लग जाते हैं और आपस में टांग खींच कर खुश होते हैं । सरकारें मनगढ़ंत निर्णय कर हमें और नुक्सान पहुंचा रही हैं ...हम एकता का ही रोना रोते रहे ।
वस्तुतः निषाद, केवट ,मांझी , मल्लाह , नाखुदा , जहाजी , एक ही शब्द हैं, लिहाजा एक जाति हैं । जबकि वास्तव में ये शब्द भाषाई एतबार से अलग है । निषाद संस्कृत का शब्द है ..जबकि केवट और मांझी उसी के हिंदी रूपांतर हैं ..इसी प्रकार मल्लाह उर्दू का शब्द हैं जबकि नाखुदा और जहाजी इसी के फारसी रूपान्तर है । इसी को अंग्रेजी में बोटमैन या फैरीमैन कहते हैं तो क्या एक ही अर्थ वाले सभी शब्द अलग अलग हो गए ? और अलग अलग जाति या प्रकार हो गये ... बिखरते गये ।
इसी प्रकार कहार शब्द उर्दू है जो कुलीगिरी काम काम करने वालों के लिए प्रयुक्त किया जाता था ..जिसे अमीरों ने पालकियों के वाहकों से जोड़ दिया । वास्तव में ये भी संस्कृत के स्कंधकार से बना हैं । इसी प्रकार धीवर धैवर्त से उद्धरत ..तत्पश्चात धीमर ,झीमर झिम्मर चिम्मड़ के रूप में अपभ्रंशित हैं । सरकारों में बैठे आठवाँ पास बाबू इन्हें अलग अलग मान कर क्रम संख्याएं बाँट रहे हैं ....और नित नई व्याख्याएं पेशकर रहे हैं । समाज बंटा जा रहा हैं .....हमारे लोग अपना अतीत राजवंशों और रजवाड़ों में तलाशते घूम रहे हैं ।
मेरे सामने टीवी पर मोदी का पुणे के फर्ग्युसन कालेज में दिया व्याख्यान लाइव चल रहा है ...चीन का भय दिखा कर ही सही ......मोदी जी लोगों को एक जुट करने का आह्वान कर रहे हैं ...और इसमें युवाओं को महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं ..विश्व व्यापार में भारत की ऐतिहासिकता और हमारी प्राचीन मरीन इंजीनियरिंग का हवाला देकर मोदी भाई ताली बजवा रहे हैं ....पता नहीं हमारे युवा मछुआ समाज का गौरव और एकजुटता की आवश्यकता कब महसूस करेंगे ?
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