शनिवार, 11 दिसंबर 2010

|| आरती भगवान श्री कालू देव ||

                          "तुरैहा समाज के इष्ट पुरुष - भगवान श्री कालू देव "


ओउम जय कालू देवा, प्रभु जय कालू देवा |  
नारद तुम गुण गावें, इन्द्र करें सेवा || ओउम जय....

तुम तुराये गढ़ स्वामी , बलिया वंश पति |
सोलह सिंह की सेना , तुमरे द्वार बंधी || ओउम जय....

नाप लिए दस पग में ,  तुम कंचन जंघा |
तुमरे तेज के आगे , हार गयी गंगा || ओउम जय .....

इन्द्र तुम्हें गुरु माने , चरण धोय पीता |
तुम रक्षक हम सबके , तुम जग जल जीता || ओउम जय ....

क्रोधित होकर वासुकि , तुम पर फुंफकारे |
विष की भीषण ज्वाला , तन पड़ गए कारे || ओउम जय ....

हाल सुना तब चन्दन , हरि दौड़े लाये |
तब से तुम देवों में , कालू कहलाये || ओउम जय ....

पूरण होवें कारज , जो तुम को ध्यावें |
तुमरे भजन तुरैहा , प्रेम सहित गावें || ओउम जय ....

श्री कालू जी की आरती , जो कोई नर गावे |
कहत मछिंदर बाबा , वो नर तर जावे || ओउम जय ....

1 टिप्पणी: