"वंचित जातियों का उत्थान - डॉ लोहिया का अधूरा सपना"
लोकतंत्र में जनता का राज्य होता है | जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन वोट द्वारा करती है | देश की आबादी का ८०% वंचितों का है परन्तु आज़ादी के ६० वर्षों के बाद भी दिल्ली की गद्दी पर वंचितों का राज्य नहीं हो पाया है | इसका कारण आर्येत्तर जातियों का छोटे छोटे वर्गों / जातियों में बँटे रहना है | अल्पसंख्यक द्विज जातियां इन आर्येत्तर जातियों को प्रागैतिहासिक काल से ही विभाजित रखकर शासन करने में सिद्धहस्त रही हैं | चुनावों में वे आज भी उन्हें जाति / धर्म के नाम पर बाँट कर तथा अपने वोट एकजुट रखकर सत्ता प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं | फिर सत्ता के ज़रिये अपने द्विज वर्ग का हित साधन करते हैं | इस प्रकार लोकतंत्र के बावजूद बहुसंख्यक निर्बल और अल्पसंख्यक सबल बन बैठता है |
वोट की ताक़त स्वतंत्रता के पश्चात महसूस की जाने लगी थी | पिछड़ों में मध्य वर्ग जागरूक होने लगा | पशु पालक जातियों यथा ग्वाल, अहीर, गोप, गोरा, घासी, मेहर, घोसी, कमरिया, कडेरी व यदुवंशी जातियों ने अपने को एकीकृत करके यादव नाम दिया | इसी तरह लोध, लोधा, लोष्ठ , लोष्ठा, लोधी, मथुरिया लोधी राजपूत हो गए | कुर्मी ,चनऊ, पटेल, सैन्थ्वार कुर्मी कहे जाने लगे | चमारों की तो ५१ जातियों जिनमे पिप्पल, निम् , कर्दम, जैसल, जैसवार, जाटव, गहरवार, अहिरवार, जटिया, कुरील, रैदास, दोहर, दोहरे, डोहरा, रविदास, चमकाता, भगत चमकाता , रोहिदास, रोनिगर, रैगड़, भाम्बी, रोहित, खाल काढ, भगत चर्मकार , रैया, धोंसियार, डांबरे , उत्तराहा, दक्खिनाहा, नोना चमार , मोची , मूची, ऋषि, भैरवा, ढेड़, समगर , सागर, सगर, चम्बर, धुसिया और झुसिया ने अपने को केवल दो नामो चमार एवं जाटव से ही परिभाषित किया | इसी प्रकार व्यापार से जुड़े सूढी, हलवाई, रोनियार ,पंसारी, चौरसिया, मोदी, कसेरा, केशरी, ठठेरा, कलवार, सोनार, पतवार, कम्लापूरी वैश्य , सिंदूरिया बनिया, माहुरी वैश्य, अवध बनिया, वंगी वैश्य, वर्णवाल, अग्रहरी वैश्य (पोद्दार), कान्धू , कसौंधन वैश्य और केसरवानी वैश्य जातियों ने स्वयं को बनिया के रूप में पिछड़ा वर्ग आयोग में पंजीकृत करा लिया तथा एक जगह वोट करने लगे हैं और आपस में शादी विवाह करने लगे हैं| इनकी उपस्थिति भी प्रदेश व राष्ट्रीय राजनीति में होने लगी है |
यादव राष्ट्रीय स्तर पर अन्य समकक्ष जातियों को अपने में जोड़ने हेतु प्रयत्नशील है | स्व० चौ० चरण सिंह ने अहीर ,जाट तथा गुर्जर जातियों को जोड़ने का प्रयास किया था | परन्तु इसे तोड़ दिया गया | द्विज जातियों द्वारा पिछडो को पिछड़ा एवं अति पिछड़ा तथा दलितों को दलित एवं अति दलित में बांटने का प्रयास किया जा रहा है | जरूरत एकीकरण की है , विखंडीकरण की नहीं | परन्तु पिछडो में पीछे छूटे लोगों को आगे लाने की जिम्मेदारी विकसित पिछड़ों को ही निभानी होगी | किन्तु खेद जनक है कि अब वे भी द्विजवादी दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं और अपने को नव द्विज के रूप में स्थापित करने लगे हैं | कमोवेश वंचितों के प्रति उनकी सोच भी द्विजों जैसी हो गई है |
आपके अनुयायी स्व० कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले पिछड़ों को सरकारी सेवा में आरक्षण देने को अमली जामा पहनाया | देश की जनता ने सम्पूर्ण क्रांति के पुरोधाओं को सत्ता सौंप दी, परन्तु लोहिया के बाद सम्पूर्ण क्रांति का सपना आज भी अधूरा है | एक बार एक पत्रकार ने डॉ राम मनोहर लोहिया से कहा था कि एक समय आएगा जब मध्यवर्गीय पिछड़ा, अति पिछड़ा तथा दलितों का शोषण करेगा | तब क्या होगा ? डॉ लोहिया ने कहा था, तब वंचित अन्य पिछड़ा वर्ग संगठित होगा और संख्या के आधार अपना हिस्सा लेगा | लगता है, वह समय अब आ गया है |
प्राचीन काल में वर्णवादी व्यवस्था में संगठित होने का तरीका रक्त सम्बन्ध रहा था | अन्तर्जातीय विवाह से वंचित खटिक, खतवे, गोढ़ी , गंगे ,गंगौत, गन्धर्व, खटवास, धींवर, चाई, चंद्रवंशी, तांती, तुरैहा, तियर, तियार, थारू, धानुक, नोनिया, कहार , नाई , नामशूद्र, प्रजापति, मांझी मझवार , बेलदार , बिन्द, बियार, भास्कर, माली, मल्लाह, मारकंडे, भोटियारी, राजधोब, राजभर, राजवंशी, किसान, लोध, केवट, खुल्वट तथा वनचर जातियां एक जगह संगठित हों तथा आपस में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करें | तभी वंचित समाज का कल्याण हो सकेगा | इनकी संख्या ३५-४० % है | परन्तु इनमे से कई जातियों का विधान सभा लोक सभा में प्रतिनिधित्व तक नहीं है | इनकी एकता व संगठित शक्ति का राष्ट्रीय एवं राज्य कि राजनीति में गहरा असर पड़ेगा |
समाजवादी समाज का निर्माण हमारा संवैधानिक उद्देश्य है, समता मूलक समाज हमारा लक्ष्य है | बिना जातिवाद को ख़त्म किये समाजवाद आना मुश्किल है | सरकार की जाति तोड़ो योजनायें निष्फल रही हैं | उल्टा जातिवाद को हर स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है |
दलितों एवं पिछड़ों के आरक्षण का लाभ इनकी मध्यमवर्गीय कहे जाने वाली जातियों ने ही उठाया है | या यूँ कहें कि दूसरों को लेने नहीं दिया है | और नतीजतन एक नये प्रकार का वर्ग आकार ले रहा है जो लोकतंत्र के बावजूद गुलाम है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद पीड़ित है, बहुसंख्यक होने के बावजूद उपेक्षित है और समाजवाद के बावजूद शोषित है | यही वो वर्ग है जो प्रत्येक स्तर पर आज भी अंतिम पायेदान पर है |
आइये हम सब इस उजड़े, पिछड़े, दलित, शोषित, उत्पीडित, बहिष्कृत और वास्तव में वंचित कर दिए गए समाज के लिए संगठित होकर संघर्ष करने का संकल्प लें |
प्रिय मित्रों,
लोकतंत्र में जनता का राज्य होता है | जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन वोट द्वारा करती है | देश की आबादी का ८०% वंचितों का है परन्तु आज़ादी के ६० वर्षों के बाद भी दिल्ली की गद्दी पर वंचितों का राज्य नहीं हो पाया है | इसका कारण आर्येत्तर जातियों का छोटे छोटे वर्गों / जातियों में बँटे रहना है | अल्पसंख्यक द्विज जातियां इन आर्येत्तर जातियों को प्रागैतिहासिक काल से ही विभाजित रखकर शासन करने में सिद्धहस्त रही हैं | चुनावों में वे आज भी उन्हें जाति / धर्म के नाम पर बाँट कर तथा अपने वोट एकजुट रखकर सत्ता प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं | फिर सत्ता के ज़रिये अपने द्विज वर्ग का हित साधन करते हैं | इस प्रकार लोकतंत्र के बावजूद बहुसंख्यक निर्बल और अल्पसंख्यक सबल बन बैठता है |
वोट की ताक़त स्वतंत्रता के पश्चात महसूस की जाने लगी थी | पिछड़ों में मध्य वर्ग जागरूक होने लगा | पशु पालक जातियों यथा ग्वाल, अहीर, गोप, गोरा, घासी, मेहर, घोसी, कमरिया, कडेरी व यदुवंशी जातियों ने अपने को एकीकृत करके यादव नाम दिया | इसी तरह लोध, लोधा, लोष्ठ , लोष्ठा, लोधी, मथुरिया लोधी राजपूत हो गए | कुर्मी ,चनऊ, पटेल, सैन्थ्वार कुर्मी कहे जाने लगे | चमारों की तो ५१ जातियों जिनमे पिप्पल, निम् , कर्दम, जैसल, जैसवार, जाटव, गहरवार, अहिरवार, जटिया, कुरील, रैदास, दोहर, दोहरे, डोहरा, रविदास, चमकाता, भगत चमकाता , रोहिदास, रोनिगर, रैगड़, भाम्बी, रोहित, खाल काढ, भगत चर्मकार , रैया, धोंसियार, डांबरे , उत्तराहा, दक्खिनाहा, नोना चमार , मोची , मूची, ऋषि, भैरवा, ढेड़, समगर , सागर, सगर, चम्बर, धुसिया और झुसिया ने अपने को केवल दो नामो चमार एवं जाटव से ही परिभाषित किया | इसी प्रकार व्यापार से जुड़े सूढी, हलवाई, रोनियार ,पंसारी, चौरसिया, मोदी, कसेरा, केशरी, ठठेरा, कलवार, सोनार, पतवार, कम्लापूरी वैश्य , सिंदूरिया बनिया, माहुरी वैश्य, अवध बनिया, वंगी वैश्य, वर्णवाल, अग्रहरी वैश्य (पोद्दार), कान्धू , कसौंधन वैश्य और केसरवानी वैश्य जातियों ने स्वयं को बनिया के रूप में पिछड़ा वर्ग आयोग में पंजीकृत करा लिया तथा एक जगह वोट करने लगे हैं और आपस में शादी विवाह करने लगे हैं| इनकी उपस्थिति भी प्रदेश व राष्ट्रीय राजनीति में होने लगी है |
यादव राष्ट्रीय स्तर पर अन्य समकक्ष जातियों को अपने में जोड़ने हेतु प्रयत्नशील है | स्व० चौ० चरण सिंह ने अहीर ,जाट तथा गुर्जर जातियों को जोड़ने का प्रयास किया था | परन्तु इसे तोड़ दिया गया | द्विज जातियों द्वारा पिछडो को पिछड़ा एवं अति पिछड़ा तथा दलितों को दलित एवं अति दलित में बांटने का प्रयास किया जा रहा है | जरूरत एकीकरण की है , विखंडीकरण की नहीं | परन्तु पिछडो में पीछे छूटे लोगों को आगे लाने की जिम्मेदारी विकसित पिछड़ों को ही निभानी होगी | किन्तु खेद जनक है कि अब वे भी द्विजवादी दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं और अपने को नव द्विज के रूप में स्थापित करने लगे हैं | कमोवेश वंचितों के प्रति उनकी सोच भी द्विजों जैसी हो गई है |
"सोशलिस्ट ने बाँधी गाँठ, पिछड़ा पाए सौ में साठ"
डॉ राम मनोहर लोहिया ने पिछड़ों की राजनैतिक, आर्थिक, एवं सामाजिक स्थिति का गहन अध्ययन किया | आपने इनकी समस्याओं पर बहुत गहराई से मनन एवं चिंतन किया | आपने पिछड़ों को संगठित करने तथा उनकी समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में अग्रणी भूमिका निभाई | आपने सप्त क्रांति का सिद्धांत प्रतिपादित किया था | लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने इसे सम्पूर्ण क्रांति का नाम दिया | आपने पिछडो के लिए ६०% आरक्षण की वकालत की |आपके अनुयायी स्व० कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले पिछड़ों को सरकारी सेवा में आरक्षण देने को अमली जामा पहनाया | देश की जनता ने सम्पूर्ण क्रांति के पुरोधाओं को सत्ता सौंप दी, परन्तु लोहिया के बाद सम्पूर्ण क्रांति का सपना आज भी अधूरा है | एक बार एक पत्रकार ने डॉ राम मनोहर लोहिया से कहा था कि एक समय आएगा जब मध्यवर्गीय पिछड़ा, अति पिछड़ा तथा दलितों का शोषण करेगा | तब क्या होगा ? डॉ लोहिया ने कहा था, तब वंचित अन्य पिछड़ा वर्ग संगठित होगा और संख्या के आधार अपना हिस्सा लेगा | लगता है, वह समय अब आ गया है |
प्राचीन काल में वर्णवादी व्यवस्था में संगठित होने का तरीका रक्त सम्बन्ध रहा था | अन्तर्जातीय विवाह से वंचित खटिक, खतवे, गोढ़ी , गंगे ,गंगौत, गन्धर्व, खटवास, धींवर, चाई, चंद्रवंशी, तांती, तुरैहा, तियर, तियार, थारू, धानुक, नोनिया, कहार , नाई , नामशूद्र, प्रजापति, मांझी मझवार , बेलदार , बिन्द, बियार, भास्कर, माली, मल्लाह, मारकंडे, भोटियारी, राजधोब, राजभर, राजवंशी, किसान, लोध, केवट, खुल्वट तथा वनचर जातियां एक जगह संगठित हों तथा आपस में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करें | तभी वंचित समाज का कल्याण हो सकेगा | इनकी संख्या ३५-४० % है | परन्तु इनमे से कई जातियों का विधान सभा लोक सभा में प्रतिनिधित्व तक नहीं है | इनकी एकता व संगठित शक्ति का राष्ट्रीय एवं राज्य कि राजनीति में गहरा असर पड़ेगा |
समाजवादी समाज का निर्माण हमारा संवैधानिक उद्देश्य है, समता मूलक समाज हमारा लक्ष्य है | बिना जातिवाद को ख़त्म किये समाजवाद आना मुश्किल है | सरकार की जाति तोड़ो योजनायें निष्फल रही हैं | उल्टा जातिवाद को हर स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है |
दलितों एवं पिछड़ों के आरक्षण का लाभ इनकी मध्यमवर्गीय कहे जाने वाली जातियों ने ही उठाया है | या यूँ कहें कि दूसरों को लेने नहीं दिया है | और नतीजतन एक नये प्रकार का वर्ग आकार ले रहा है जो लोकतंत्र के बावजूद गुलाम है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद पीड़ित है, बहुसंख्यक होने के बावजूद उपेक्षित है और समाजवाद के बावजूद शोषित है | यही वो वर्ग है जो प्रत्येक स्तर पर आज भी अंतिम पायेदान पर है |
आइये हम सब इस उजड़े, पिछड़े, दलित, शोषित, उत्पीडित, बहिष्कृत और वास्तव में वंचित कर दिए गए समाज के लिए संगठित होकर संघर्ष करने का संकल्प लें |
Dalit toh bahut hain lekin vanchit khuch hi hain. Vanchit samaj ekjut ho aur aage badhe. Agli sarkaar vanchiton ki hi hogi .
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