शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

कहारस्थान : एक सार्थक मांग ,जिसे गणतंत्र के नाम पर वापस लिया

जादी के आखरी दशक में देशभर में राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियाँ काफी तेजी से प्रारम्भ हो गई थीं। 100 वर्षों की स्वतंत्रता संग्राम के चलते अंग्रेजों के देश छोड़कर जाने के आसार दिखने लगे थे। और ये निर्धारित हो गया था कि अब अंग्रेजी राजसत्ता ज्यादा दिनों चलने वाली नहीं हैं । एक जहाँ सिखस्थान (बाद में खालिसतान ) की मांग पंजाब में मास्टर तारासिंह उठा रहे थें। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी उत्तर पूर्व में डा0 जेड.ए. किंजों नागालेंड की मांग कर रहे थे। मिजोरम में लालडेगा, झारखंड, में बिहार, छोटा नागपुर, मध्यभारत, महा कौशल में डा0 जयपाल सिंह पृथक झारखंड गणतंत्र की मांग लेकर चल पड़े थे। देश का पिछड़ा आदिवासी निषाद (भोई) समुदाय भी आन्दोलित हो रहा था, तब भोपाल स्टेट के डा0 इन्द्रजीत सिंह ने आल इंडिया कहार महासभा का गठन किया और इसकी जनरल मिटिंग में पारित प्रस्ताव, जिसके माध्यम से पृथक कहारस्थान की मांग तात्कालिक लार्ड पेथिक लारेन्स (ब्रिटिश केबिनेट मिशन लंदन) वायसराय दिल्ली को एक ज्ञापन आल इंडिया कहार महासभा द्वारा दिनांक 20/04/1946 को दिया गया।
                  सिख धर्म के उत्थान में कहार समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। इस कारण पंजाब के सामाजिक नेताओंने कहारस्थान पर भारी जोर दिया। जिस समय कांग्रेस आंदोलनों के फलस्वरूप साइमन कमीशन भारत आया था, उस समय हमारे नेताओं जिनमें डा0 इन्द्रजीत सिंह के साथ श्री महावीर प्रसाद , श्री दुर्गादत्तसिंह कुशन बिजनौर,रायबहादुर ऑफ नवाब रामपुर सर चौधरी नत्थू सिंह तुराहा, श्री गुलजारी मलजी बाथम पीलीभीत आदि बुद्विजीवी समाज के नेता थें, उन्होंने देश की स्वतंत्रता के समय कहारस्थान की मांग की थी। इस कारण देश के दूसरे प्रातों में भी कुछ इस प्रकार की मांगें उठी थी। छूत एवं अछूत का प्रश्न भी गर्माहट के साथ उठा था। यह प्रश्न बाबासाहेब अबेँडकर जी ने उठाया था। जिस समय समाज का प्रबुद्ध वर्ग जाति का नाम बताने में लज्जा अनुभव करता था, उस समय डा0 इन्द्रजीत सिंह जी ने सार्वजनिक मञ्च से कहार महासभा का झंडा उठाया था, जिसमें निषाद महासभा का यथा संभव सहयोग मिला था। इसी समय लगभग सन 30-31 में होंशंगाबाद में बाबू गुलाबसिंह बाबने जी की अध्यक्षता में कहार सम्मेलन का वृहद् आयोजन किया गया था, जिसमें भोपाल सहित देश के विभिन्न प्रान्तों से आए नवयुवकों ने स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया था, डा0 सहाब समाज को संगठित करने, उनकी समस्याओं को अखिल भारतीय स्तर पर ब्रिटिश तथा स्थानीय शासन के सामने नियमित रूप से रखते रहे। राजनीति के मञ्च पर विशेष रूचि के साथ उन्होंने सन 1945 के पश्चात भाग लिया।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के समय ही हमारे नेताओं को अनुमान हो गया था कि स्वतंत्रता के पश्चात हमारे समाज के साथ न्याय नहीं किया जावेगा और हमारा समाज अंग्रेजों के चंगुल से छूटकर हिन्दू सवर्णों की गुलामी कि ओर अग्रसर हो जायेगा । इसीकारण कहारस्थान की मांग की गई थी, मास्टर तारासिंह जी ने भी खालिस्तान मांगा था। सन् 1946 में देश की अन्तरिम सरकार बनी थी तब लाहौर से प्रकाशित डान अखबार ने एक कार्टून छापा था, नीचे लिखा था, पंडित नेहरू वरूण देव यानि जलदेव के दरबार में अर्थात अन्तरिम सरकार में हमारे समाज का प्रतिनिधि लेने की बात चल रही थी। कांग्रेस के द्वारा आश्वासन देने पर समाज ने भारत स्वतंत्रता के पक्ष में कहारस्थान की मांग वापस ले ली थी।
              इस समय समाज को गोत्रों के आधार पर संगठित करने के प्रयास त्याग दिया था, क्योंकि भारत में भिन्न भिन्न प्रदेशों में अनेंकों गोत्र, उपजातियां हैं, इसी समय समाज का पत्र कर्णधार का प्रकाशन भोपाल से किया, कुछ समय पश्चात् उसका प्रकाशन एक प्रकाशन मंडल बनाकर झांसी से प्रकाशित किया गया, जिसके मुख्य प्रकाशक श्रीसुन्दरलाल जी रायकवार थे। निषाद समुदाय की राजनीतिक गतिविधयों का प्रमुख केन्द्र भोपाल रहा, ओर राजनैतिक चेतना का केन्द्र बिन्दु अखिल भारतीय निषाद समाज का " कर्णधार " नामक अखबार
रहा है।

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों..........


हुत हो चुकी अब अनदेखी, आर करो या पार करो।
दिल्ली चलकर करो धमाका, सत्ता पर प्रहार करो ।।

चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।
एक महाभारत दिल्ली में निश्चित अबकी बार करो ।।

 रक्त पिपासू देहली वाली सड़कों ने आह्वान किया ।
अब निषाद दें रक्त, यहाँ वीरों ने निज बलिदान दिया ।

स्वतंत्रता संघर्ष प्रमाण है, जो सड़कों पर आया है ।
जिस समाज ने रक्त दिया ,संघर्ष किया, कुछ पाया है ।

उठ निषाद ! अधिकार समर की सेनाएँ तैयार करो ।
चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।।

जिस दिन तेरा लहू सड़क पर दिल्ली की बह जायेगा ।
उस दिन सूरज अधिकारों की कथा स्वयं कह जायेगा ।

आरक्षण अधिकार हमारा ,और नहीं टल पायेगा ।
अगर ठान लो तो संसद का, सत्र नहीं चल पायेगा |

दिल्ली की सड़कों पर आकर, तुम सत्ता पर वार करो ।
चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।।

साठ बरस से वंचित मछुआ, अब अंगडाई लेता है
अपने हक़ के लिए चुनौती,  कांग्रेस को देता है।

उलटी गिनती शुरू हो गयी, कांग्रेस के जाने की ।
राहुल कितनी कोशिश करलो, अबके नाम बचाने की।

मनमोहन मछुआ को हक दो या जाना स्वीकार करो।।
चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।।

कापी राईट @ अरुण कुमार तुरैहा
█║▌│█│║▌║││█║▌│║█