शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों..........


हुत हो चुकी अब अनदेखी, आर करो या पार करो।
दिल्ली चलकर करो धमाका, सत्ता पर प्रहार करो ।।

चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।
एक महाभारत दिल्ली में निश्चित अबकी बार करो ।।

 रक्त पिपासू देहली वाली सड़कों ने आह्वान किया ।
अब निषाद दें रक्त, यहाँ वीरों ने निज बलिदान दिया ।

स्वतंत्रता संघर्ष प्रमाण है, जो सड़कों पर आया है ।
जिस समाज ने रक्त दिया ,संघर्ष किया, कुछ पाया है ।

उठ निषाद ! अधिकार समर की सेनाएँ तैयार करो ।
चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।।

जिस दिन तेरा लहू सड़क पर दिल्ली की बह जायेगा ।
उस दिन सूरज अधिकारों की कथा स्वयं कह जायेगा ।

आरक्षण अधिकार हमारा ,और नहीं टल पायेगा ।
अगर ठान लो तो संसद का, सत्र नहीं चल पायेगा |

दिल्ली की सड़कों पर आकर, तुम सत्ता पर वार करो ।
चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।।

साठ बरस से वंचित मछुआ, अब अंगडाई लेता है
अपने हक़ के लिए चुनौती,  कांग्रेस को देता है।

उलटी गिनती शुरू हो गयी, कांग्रेस के जाने की ।
राहुल कितनी कोशिश करलो, अबके नाम बचाने की।

मनमोहन मछुआ को हक दो या जाना स्वीकार करो।।
चलो निषादों ! दिल्ली पहुँचों, संसद पर अधिकार करो ।।

कापी राईट @ अरुण कुमार तुरैहा
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