सोमवार, 29 नवंबर 2010

" नया सवेरा "

आज़ादी मिले 63 साल हो गए, लेकिन आज भी हमारा तुरैहा समाज वहीँ का वहीँ पड़ा, अपनी बदहाली पर रो रहा है | देश की तमाम जातियां आज हर क्षेत्र में विकसित हो गयी हैं किन्तु हम किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ पाए | समाज के बच्चे ज्यों ही कुछ समझदार होने लगते हैं , उन्हें घर वाले किसी न किसी काम में लगा देते हैं | लड़कियों की शिक्षा के बारे में बात करिए,तो जबाब मिलेगा कि हमें कौन सी नौकरी करवानी है ? शिक्षा के अभाव में लोगों को ये तक पता नहीं है कि देश में हो क्या रहा है और उन्हें क्या करना चाहिए ?

रविवार, 28 नवंबर 2010

" सबक सीखे कांग्रेस "

हाल ही में हुऐ  बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने साबित किया है कि झूठ, फरेब , अय्यारी, मक्कारी और बदले की भावना से की जाने वाली राजनीति का यही हश्र होता है | केंद्र की सरकार यह सोचे कि कोरी घोषणाओं की बदौलत लोगों को फुसलाकर सरकार बनालेगी तो ये स्वप्न फिलहाल टूटता ही नज़र आया | कांग्रेस २००३ से मछुआ समुदाय को छलती चली आ रही है | १६ पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्ज़ा देने सम्बन्धी प्रस्ताव को कांग्रेस ही लटकाए बैठी रही| जब कि मुलायम सिंह जी की सरकार में उक्त प्रस्ताव चार दफे केंद्र को संस्तुति सहित भेजा गया | मायावती जी ने तो हद ही कर दी , सरकार बनाने के २२ दिनों के भीतर मूल प्रस्ताव वापस मंगाकर निरस्त करवा दिया , जैसे बहन जी इसी मुद्दे पर जीत कर आयीं हों |  जब समाज ने दबाब बनाया तो महज २ पन्नो की चिठ्ठी केंद्र को भेजकर बसपा ने पिंड छुढ़ा लिया और गेंद फिर से  केंद्र के पाले में डाल दी | हमें फ़ुटबाल समझ कर इन लोगों ने अपने गोल मारे और जीतने पर अपनी फ़तेह का जश्न  मनाने चले गए , हमारी खाली गेंदे मैदान में अपनी तकदीर बदलने वाले  मसीहा की अब तलक मुन्तजिर  रही हैं |

शनिवार, 27 नवंबर 2010

" कल की सोचें "

कल की सोचें , कल का निर्णय आज ही लेना होगा| क्योकि आने वाला कल बेहद मुश्किलों भरा और संघर्ष पूर्ण होगा| यदि हमने अपने ऐशो आराम छोड़कर आने वाले समाज की चिंता नहीं की तो आने वाली नस्लें हमें बुरा कहती नज़र आएँगी| शिक्षित समाज ही विकास कर सकता है,इसके लिए आवश्यक है कि हम जागरूकता लाये और अपने खर्चो मे कटोती करके अपने बच्चो को शिक्षा दिलाये साथ ही समाज का संगठन बनाकर उसमे अपने योगदान सुनिश्चित करे

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

" अपनी मदद खुद करें "

अब वक़्त आ गया है , समाज अपना निर्णय खुद ले | अपने विकास के लिए सरकारी योजनाओं का मुंह ताकना बंद करना होगा | सरकारें भी समाजों की ताक़त और मूड देखकर अपने पत्ते खोलती रही हैं.| इसलिए आवश्यक है कि अपने आप को संगठित करके अपनी एकता कायम रखें और बच्चों की शिक्षा व संस्कारों  पर ध्यान दें| यदि हमारे पढ़े  लिखे नौजवान , समाज के धनवान व्यक्ति एवं ऊंचे ओहदों पर बैठे साधन संपन्न लोग ही समाज की समस्याओं की तरफ से आँखें मूंदे बैठे रहेंगे तो बिरादरी का भला करने या आवाज़ उठाने कोई बनिया -बामन तो आएगा  नहीं ? और अगर आएगा भी तो अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर हमें धोखा ही देगा | हम लोग हमेशा पिछलग्गू बनकर ही जीतें आये हैं , कभी आगे बढ़ कर नहीं देखा | कभी किसी भाई को मौका मिला भी तो अपने ही सबसे पहले उसकी टांगें खींचते नज़र आये | आपसी कलह और वैमनस्य हमारे तुरैहा समाज का दुश्मन बना हुआ है | जबकि हम मायावती या मुलायम सिंह को दोष देते रहे हैं |                                    
"ये और बात सफीना डूबा लिया मैंने ,                                                 
मगर खुदा न कहा तुझको नाखुदा मैंने "

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

"जागो तुरैहा बंधुओं "

Priye Turaiha Bhaiyo, Ab samay aa gaya hai ki hum aalasy tyag kar samaj hit ka chintan karein. Yadi educated log hi ghar baith jayeinge toh samaj ko disha kaun dega ? Aaiye miljul kar samaj ki problems pe dyan dein aur samaj ko naye siray se taiyyar karein. Educated, United and Organised people Can servive"