शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

" अपनी मदद खुद करें "

अब वक़्त आ गया है , समाज अपना निर्णय खुद ले | अपने विकास के लिए सरकारी योजनाओं का मुंह ताकना बंद करना होगा | सरकारें भी समाजों की ताक़त और मूड देखकर अपने पत्ते खोलती रही हैं.| इसलिए आवश्यक है कि अपने आप को संगठित करके अपनी एकता कायम रखें और बच्चों की शिक्षा व संस्कारों  पर ध्यान दें| यदि हमारे पढ़े  लिखे नौजवान , समाज के धनवान व्यक्ति एवं ऊंचे ओहदों पर बैठे साधन संपन्न लोग ही समाज की समस्याओं की तरफ से आँखें मूंदे बैठे रहेंगे तो बिरादरी का भला करने या आवाज़ उठाने कोई बनिया -बामन तो आएगा  नहीं ? और अगर आएगा भी तो अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर हमें धोखा ही देगा | हम लोग हमेशा पिछलग्गू बनकर ही जीतें आये हैं , कभी आगे बढ़ कर नहीं देखा | कभी किसी भाई को मौका मिला भी तो अपने ही सबसे पहले उसकी टांगें खींचते नज़र आये | आपसी कलह और वैमनस्य हमारे तुरैहा समाज का दुश्मन बना हुआ है | जबकि हम मायावती या मुलायम सिंह को दोष देते रहे हैं |                                    
"ये और बात सफीना डूबा लिया मैंने ,                                                 
मगर खुदा न कहा तुझको नाखुदा मैंने "