बुधवार, 26 दिसंबर 2012
मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
गर्व से कहें हम तुरैहा है
कश्यप
टाइटिल लिखने की वजह से नासमझ तुरैहा जाति के लोगों का बड़ा नुक्सान हुआ है
। जब से कश्यप शब्द जाति के रूप में पिछड़े वर्ग में दर्ज हुआ है तब से
विभिन्न जनपदों में तुरैहा जाति के प्रमाण पत्र बनना बन्द से हो गए | लोगों ने पहले कश्यप को अपना गोत्र बताकर लिखना आरम्भ किया फिर उसे अपनी जाति बताने लगे और अपनी वास्तविक जाति को छुपाने लगे । इससे जहाँ एक ओर जनगणना आंकड़ों में तुरैहा जाति की संख्या घटने लगी वहीँ तुरैहा समाज के लोगों के सामने समस्याएँ भी आनी शुरु हो गयी ।
आज आवश्यकता है कि हम समाज उत्थान के लिए आगे आयें और गर्व से कहें हम तुरैहा है ,मछुआ समुदाय के अंग हैं ।
आज आवश्यकता है कि हम समाज उत्थान के लिए आगे आयें और गर्व से कहें हम तुरैहा है ,मछुआ समुदाय के अंग हैं ।
सोमवार, 10 दिसंबर 2012
हाकिम मेरे हालत पर तो खा गया तरस । बाबू से ख़त का आज तक मजमूँ नहीं बना ।
स्वजाति के मोह में दूसरी जातियों को आरक्षण से वंचित करने वाले कहीं और नहीं
बल्कि मंत्रालयों में बैठे है । ये आरोप नहीं बल्कि हकीकत है । और इसे
प्रमाणित भी किया जा सकता है । सब जानते हैं कि संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950
में संशोधन की बहुत लम्बी प्रक्रिया हैं ,जिसे SC /STSR&T I के शोध के
पश्चात् राज्यसरकार की सबल संस्तुति , तत्पश्चात NCSC / NCST / RGI आदि की
हाँ के पश्चात गृहमंत्रालय ,अधिकारिता मंत्रालय, कैबिनेट समिति से होता
हुआ संसद तक जाना होता है । वहां लम्बी बहस होती है , पास हुआ तो ठीक वर्ना
वोटिंग में सरकार गिर भी सकती है ।अब भला कोई सरकार इतना जोखिम क्यों लेगी ? दूसरों को सशक्त करने के चक्कर कोई सरकार कमजोर क्यों होना चाहेगी ?
इसके लिए हमारे सरकारी दफ्तरों में एक ढर्रा है लिपकीय त्रुटि । लिपकीय त्रुटि के जरिये अच्छे अच्छे आदेशों को पलीता लगाया जा सकता है । एक बार गलत आदेश जान बूझ कर जारी कर दिया जाता है उसके बाद उसका अनुपालन करने वालों की लम्बी फौज बैठी रहती है जो हर हाल में अपना काम कर दिखाती है ।
उदाहरणार्थ :- 1
==========
संविधान अनुसूचित आदेश 1950, संशोधन आदेश 1976 में मध्य प्रदेश में क्रम 35 पर स्पष्टतः Kumhar जाति अंकित है जो 2002 आते अपने आप Kumar हो गयी । अब चूँकि Kumar जाति का आदेश आ गया तो मध्यप्रदेश के आठ जिलों में बेचारे कुम्हार अपना चाक गिरेबाँ में लटकाये अपना गिरेबाँ चाक किये डालते थे लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा । नतीजतन आठों जनपदों में कुम्हार जाति के SC प्रमाण पत्र बंद हो गए । बिना कुछ किये संविधान संशोधन हो गया । हर्र लगी न फिटकरी ....रंग चोखा । इति सिद्धम ।
उदाहरणार्थ :-2
============
उडीसा में नारायण बेहरा बनाम उडीसा सरकार 1978 के मामले में केंद्र सरकार ने 23 मई 1981 को पत्रांक BC 12016/22/80-SC & BCD -IV के माध्यम से DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखने का आदेश दिया ,लेकिन बाबूशाही और उनका स्वजातवाद हावी रहा । नतीजतन उडीसा में क्रम सँ 24 पर तो DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखा गया । लेकिन मध्य प्रदेश और उससे निकले छत्तीसगढ़ के क्रम सँ 19 को छोड़ दिया गया गया । बाबू कहते हैं उडीसा वालों ने 31 साल मुकदमा लड़ा । आपको क्या ऐसे ही फ्री में दे दें । जाकर मध्य प्रदेश /छतीसगढ़ के लिए दोबारा 31 साल मुकदमा लड़ो ।
उदाहरणार्थ :-3
=============
उत्तर प्रदेश में 1961 ,2002 में धुरिया जाति का आदेश निकालते समय Dhuriya शब्द का कचूमर निकाल दिया गया । इसकी स्पेलिंग कभी भी शुद्ध नहीं लिखी गयी कभी Thuriya , कभी थुरीबा लिखा गया । परिणाम स्वरुप धुरिया जाति कहीं की नहीं रही ।
उदाहरणार्थ :4
==========
जन गणना 1961 में वर्णित अनुसूचित जातियों की सूची में कहार की उपजाति दलेरे को जानबूझ कर दलेसे Dalesey लिख दिया । परिणाम स्वरुप दलेरा जाति आरक्षण से वंचित हो गयी ।
इसके लिए हमारे सरकारी दफ्तरों में एक ढर्रा है लिपकीय त्रुटि । लिपकीय त्रुटि के जरिये अच्छे अच्छे आदेशों को पलीता लगाया जा सकता है । एक बार गलत आदेश जान बूझ कर जारी कर दिया जाता है उसके बाद उसका अनुपालन करने वालों की लम्बी फौज बैठी रहती है जो हर हाल में अपना काम कर दिखाती है ।
उदाहरणार्थ :- 1
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संविधान अनुसूचित आदेश 1950, संशोधन आदेश 1976 में मध्य प्रदेश में क्रम 35 पर स्पष्टतः Kumhar जाति अंकित है जो 2002 आते अपने आप Kumar हो गयी । अब चूँकि Kumar जाति का आदेश आ गया तो मध्यप्रदेश के आठ जिलों में बेचारे कुम्हार अपना चाक गिरेबाँ में लटकाये अपना गिरेबाँ चाक किये डालते थे लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा । नतीजतन आठों जनपदों में कुम्हार जाति के SC प्रमाण पत्र बंद हो गए । बिना कुछ किये संविधान संशोधन हो गया । हर्र लगी न फिटकरी ....रंग चोखा । इति सिद्धम ।
उदाहरणार्थ :-2
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उडीसा में नारायण बेहरा बनाम उडीसा सरकार 1978 के मामले में केंद्र सरकार ने 23 मई 1981 को पत्रांक BC 12016/22/80-SC & BCD -IV के माध्यम से DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखने का आदेश दिया ,लेकिन बाबूशाही और उनका स्वजातवाद हावी रहा । नतीजतन उडीसा में क्रम सँ 24 पर तो DEWAR जाति के आगे धीबरा ,केऊटा और कैबर्ता लिखा गया । लेकिन मध्य प्रदेश और उससे निकले छत्तीसगढ़ के क्रम सँ 19 को छोड़ दिया गया गया । बाबू कहते हैं उडीसा वालों ने 31 साल मुकदमा लड़ा । आपको क्या ऐसे ही फ्री में दे दें । जाकर मध्य प्रदेश /छतीसगढ़ के लिए दोबारा 31 साल मुकदमा लड़ो ।
उदाहरणार्थ :-3
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उत्तर प्रदेश में 1961 ,2002 में धुरिया जाति का आदेश निकालते समय Dhuriya शब्द का कचूमर निकाल दिया गया । इसकी स्पेलिंग कभी भी शुद्ध नहीं लिखी गयी कभी Thuriya , कभी थुरीबा लिखा गया । परिणाम स्वरुप धुरिया जाति कहीं की नहीं रही ।
उदाहरणार्थ :4
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जन गणना 1961 में वर्णित अनुसूचित जातियों की सूची में कहार की उपजाति दलेरे को जानबूझ कर दलेसे Dalesey लिख दिया । परिणाम स्वरुप दलेरा जाति आरक्षण से वंचित हो गयी ।
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
तुलसी दास कृत रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड की कुछ चौपाइयाँ और उनके निहितार्थ
तुलसी दास कृत रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड की कुछ चौपाइयाँ और उनके निहितार्थ
============================
चौपाई :
* लखब सनेहु सुभायँ सुहाएँ। बैरु प्रीति नहिं दुरइँ दुराएँ॥
अस कहि भेंट सँजोवन लागे। कंद मूल फल खग मृग मागे॥1॥
भावार्थ:- भरत के सुंदर स्वभाव से मैं (केवट) उनके स्नेह को पहचान लूँगा।
वैर और प्रेम छिपाने से नहीं छिपते। ऐसा कहकर वह (केवट ) भेंट का सामान
सजाने लगा। उसने कंद, मूल, फल, पक्षी और हिरन मँगवाए॥1॥
निहितार्थ
:- केवट ने भरत के लिए अपने जाति वालों के लिए कंद, मूल, फल, पक्षी और
हिरन मँगवाए | इससे स्पष्ट है केवट/निषाद जाति शिकारी और माँसाहारी थी और
साथ ही जंगल में रहने के कारण उस समय यह समाज कंद, मूल, फल, एवं मांसभक्षी
भी था।
* मीन पीन पाठीन पुराने। भरि भरि भार कहारन्ह आने॥
मिलन साजु सजि मिलन सिधाए। मंगल मूल सगुन सुभ पाए॥2॥
भावार्थ:-कहार लोग पुरानी और मोटी पहिना नामक मछलियों के भार (टोकरे)
भर-भरकर लाए। भेंट का सामान सजाकर मिलने के लिए चले तो मंगलदायक शुभ-शकुन
मिले
निहितार्थ :- कहार जाति के लोग प्राचीन काल से ही मछली का शिकार करते रहे है ,इस प्रकार यह मांसभक्षी जाति है।
अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें। दीन दयाल अनुग्रह तोरें॥
फिरती बार मोहि जो देबा। सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा॥4॥
भावार्थ:-हे नाथ! हे दीनदयाल! आपकी कृपा से अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। लौटती
बार आप मुझे जो कुछ देंगे, वह प्रसाद मैं सिर चढ़ाकर लूँगा॥4॥
निहितार्थ :- केवट ने राम से लौटते समय पधारने और मजदूरी/उतराई देने को कहा
था जिसे राम ने अनसुना कर दिया और वापसी में पुष्पक विमान पर सवार होकर
लंका से सीधे अयोध्या पहुंचे और राजकाज में संलिप्त होगये । इस प्रकार केवट
के हिस्से में प्रतीक्षा का अंतहीन सिलसिला आज भी अनवरत चालू है ।
कपटी कायर कुमति कुजाती। लोक बेद बाहेर सब भाँती॥
राम कीन्ह आपन जबही तें। भयउँ भुवन भूषन तबही तें॥1॥
भावार्थ:-मैं कपटी, कायर, कुबुद्धि और कुजाति हूँ और लोक-वेद दोनों से सब
प्रकार से बाहर हूँ। पर जब से श्री रामचन्द्रजी ने मुझे अपनाया है, तभी से
मैं विश्व का भूषण हो गया॥1॥\
निहितार्थ :- केवट जाति को तुलसी
दास ने कपटी, कायर, कुबुद्धि और कुजाति और लोक-वेद दोनों से सब प्रकार से
बाहर यानी अस्पर्श्य/अछूत बताया है जो प्रमाण है कि हम अन्त्यज हैं और
अनुसूचित जाति आरक्षण पाने के प्राचीन अधिकारी हैं । यह समाज प्राचीन काल
से ही बहिष्कृत है |
लोक बेद सब भाँतिहिं नीचा। जासु छाँह छुइ लेइअ सींचा॥
तेहि भरि अंक राम लघु भ्राता। मिलत पुलक परिपूरित गाता॥2॥
भावार्थ:-(वे कहते हैं-) जो निषाद जाति का व्यक्ति लोक और वेद दोनों में
सब प्रकार से नीच माना जाता है, जिसकी छाया के छू जाने से भी स्नान करना
होता है, उसी निषाद से अँकवार भरकर (हृदय से चिपटाकर) श्री रामचन्द्रजी के
छोटे भाई भरतजी (आनंद और प्रेमवश) शरीर में पुलकावली से परिपूर्ण हो मिल
रहे हैं॥2॥
निहितार्थ :- इस चौपाई से प्रमाणित है निषाद /मछुआ
समुदाय प्राचीन काल से ही अछूत था और समाज एवं हिन्दू धर्म में अत्यंत नीच
एवं अन्त्यज माना जाता था | अस्पर्श्यता के कारण निषाद की छाया तक से छू
जाने पर हिन्दू धर्म के लोग अशुद्द होजाते थे | अतः स्पष्ट है हम अनुसूचित
जाति के उस आरक्षण के वर्षों से पात्र है जो हमें सरकारें जानबूझ कर चमारों
के भय से नहीं दे रही हैं ।
प्रेम पुलकि केवट कहि नामू। कीन्ह दूरि तें दंड प्रनामू॥
राम सखा रिषि बरबस भेंटा। जनु महि लुठत सनेह समेटा॥3॥
भावार्थ:-फिर प्रेम से पुलकित होकर केवट (निषादराज) ने अपना नाम लेकर दूर
से ही वशिष्ठजी को दण्डवत प्रणाम किया। ऋषि वशिष्ठजी ने रामसखा जानकर उसको
जबर्दस्ती हृदय से लगा लिया। मानो जमीन पर लोटते हुए प्रेम को समेट लिया
हो॥3॥
निहितार्थ :- केवट , जिसे तुलसी दास ने इसी स्थान पर यहाँ
निषादराज भी कहा है , द्वारा वशिष्ट को दूर से ही अपनी जाति बताकर प्रणाम
किया गया , क्योकि वह अछूत जाति का व्यक्ति था । किन्तु अज्ञानता वश
भावनाओं में उन्होंने उसे गले से लगा लिया ।
* रघुपति भगति सुमंगल मूला। नभ सराहि सुर बरिसहिं फूला॥
एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं। बड़ बसिष्ठ सम को जग माहीं॥4॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी की भक्ति सुंदर मंगलों का मूल है, इस प्रकार कहकर
सराहना करते हुए देवता आकाश से फूल बरसाने लगे। वे कहने लगे- जगत में इसके (
केवट ) समान सर्वथा नीच कोई नहीं और वशिष्ठजी के समान बड़ा कौन है?॥4॥
निहितार्थ :- वशिष्ठ जी द्वारा अछूत केवट को गले लगाया देख देवता कहने लगे
कि स्वभाव ,लक्षण ,प्रकृति ,प्रवृति में पूरे विश्व में केवट के समान
निपट (मूर्ख, अधम, अछूत , पतित, दलित ) कोई नहीं ,और विद्वता में वशिष्ठ
से बढ़कर कोई नहीं । पता नहीं .....सरकारों को इससे बड़ा प्रमाण कहाँ मिलेगा
...हमारे अछूत और दलित होने का ।
दोहा :
* समुझि मोरि करतूति कुलु प्रभु महिमा जियँ जोइ।
जो न भजइ रघुबीर पद जग बिधि बंचित सोइ॥195॥
भावार्थ:-मेरी करतूत और कुल को समझकर और प्रभु श्री रामचन्द्रजी की महिमा
को मन में देख (विचार) कर (अर्थात कहाँ तो मैं नीच जाति और नीच कर्म करने
वाला जीव, और कहाँ अनन्तकोटि ब्रह्माण्डों के स्वामी भगवान श्री
रामचन्द्रजी! पर उन्होंने मुझ जैसे नीच को भी अपनी अहैतु की कृपा वश अपना
लिया- यह समझकर) जो रघुवीर श्री रामजी के चरणों का भजन नहीं करता, वह जगत
में विधाता के द्वारा ठगा गया है॥195॥
निहितार्थ :- मछुआ समुदाय
के पिछड़ेपन , दुर्दशा और प्रतिनिधित्व हीनता का संज्ञान लेकर सरकार को इसे
अनुसूचित जाति घोषित कर तत्काल SC आरक्षण उपलब्ध करना चाहिए ।
Copy Right Research Matter @ Arun Kumar Turaiha
शनिवार, 6 अक्टूबर 2012
जोगेंद्र नाथ भट्टाचार्य की पुस्तक में वर्णित कहार जाति के विश्लेषण का मूल पाठ से अनुवाद
प्रष्ट सं0 310 घरेलू सेवक
{ 2.-- उत्तर पश्चिम प्रान्त और बिहार
कहार - इस जाति का नाम संस्कृत के स्कंधकार से उदगत है ,जिसका तात्पर्य है कंधे पर सामान ढ़ोने वाला । इस जाति का मुख्य कार्य सामान ढोना है । लेकिन इनमे बहुत सी जातियां उपजातियां होती है,जिनमे कुछ तो यही कार्य करती हैं जबकि अन्य जातियां उपजातियां नाव खेना,मछली शिकार , अनाज की खरीद फरोख्त, छाँछ -टोकरी ,पल्ले, झाड़ू , हाथ के पंखे बनाने वाले (जिसे रूहेलखंड में डलेरा कहा गया ) के साथ साथ जाल बुनने का कार्य करते हैं । कहार की प्रमुख उपजातियों में रावनी ,रमानी और तुराह हैं । रावनी और रमानी उत्तर भारत के प्रत्येक नगर में पाए जाते हैं ,वे कुलीगिरी, हाथ के पंखे बनाने वाले, घरेलू सेवक और निजी सहायक होते हैं । प्रायः हर अच्छे भले परिवार में एक रावनी जाति का व्यक्ति घर में नौकर होता है जो सारे कार्य करता है । वहीँ तुराहा ,जो नाविक और मछुआरा कहलाता है मुख्यतः उत्तर पश्चिमी प्रान्त और बिहार में पाया जाता है । इनके बंगाल के ढाका, नादिया (तत्कालीन बंगलादेश ) और हूगली के शाहगंज के बाजार में निवासरत होने के प्रमाण औरंगजेब के पौत्र अजीमो शान को भी मिले हैं ,जो बंगाल का काफी समय शासक भी रहा ।हालाँकि बंगाल की तुराह जाति प्रथक जाति के रूप में विकसित हो चुकी थी और वहां उसका कहार से कोई सम्बन्ध भी नहीं रह गया था । रावनी बंगाल में ज्यादा संख्या में नहीं थे और प्रायः गया राज्य के आसपास के क्षेत्र में बसे थे । जो अक्सर वहां शीत काल में आ जाते थे और गर्मियों में या जब उन्हें सुविधा होती, लौट जाते ।
कहार जाति का कोई भी समूह स्वच्छ शूद्र कहलाने का अधिकारी/योग्य नहीं था ।मत्स्य आखेटक वर्ग गन्दा रहता और उससे लोगों द्वारा गन्दा व्यवहार ही किया जाता । हालाँकि रवानी लोग मछली नहीं मारते थे फिर उनकी स्थिति तुराहा से ज्यादा अच्छी भी नहीं थी । इस जाति के ज्यादातर शराब पीने के आदी थे और खेतों के चूहे के अलावा कभी कभी सूअर भी खाते थे । इस जाति में विश्वस्त और आज्ञापालक नौकर दूंड़ना मुश्किल था । लेकिन हिन्दू परिवारों की जरूरत ने उन्हें स्वच्छ बनने को विवश किया । जिस कर्म काण्ड में कहार जाति के व्यक्ति जुड़े होते थे , वहां उच्च कोटि का ब्राहमण धार्मिक अनुष्ठान नहीं करता था । कहारों का पुजारी नीच कोटि का ब्राहमण होता था । अधिकाँश रावनी परिवार शिव और काली के उपासक होते थे और उनका कलकत्ता के निकट स्थित काली शक्तिपीठ पर बहुत विश्वास होता था । उनमे से ज्यादातर कलकत्ता आकर देवी का पूजन करना नहीं भूलते थे । जब वे कंधे पर वजन चढाते थे या उतारते थे तो जय काली कलकत्ते वाली का उद्घोष किया करते थे ।
कहार जाति की आबादी 1891 के अनुसार नीचे दी गयी है ;-
उत्तर पश्चिम प्रान्त --------1,208,530
बंगाल ----------------------621,176
310 DOMESTIC SERVANTS. § 2. — N.- W. Provinces and Behar, Kahar. — This caste derives its name from the Sanskrit word Skandhakara^ which means one who carries things on his shoulders. The primary occupa- tion of this caste is carrying litters. But there are several sub-castes among them, and while some of these practise their proper profession, the others are either boatmen, fishermen, grain parchers, basket-makers, or weavers. The most important sub-castes of the Eahars are the Bawani and the Turah. The Rawanis are to be found in large numbers in every town of Northern India. They serve as litter carriers, punka-pullers, scullions, water-carriers and personal attendants. In every well-to-do family there is at least one Bawani to serve as the " maid of all work." The Turahs, who are boatmen and fishermen, are to be found chiefly in Behar and N.-W. Provinces. They have some colonies in Bengal, in the ancient towns of Dacca and Nadiya, and in the market town of Shah Ganj near Hooghly, founded by Azim Oshan, the grandson of Aurangzebe, who was for some years the Grovernor of Bengal. The Turahs of Bengal have, however, formed themselves into a separate caste, and the fact that they are a branch of the Kahar caste is not even known to them. Of the Rawanis very few are domiciled in Bengal. Those found in this part of the country are chiefly natives of Gaya, who come every year in the beginning of the winter season, and go oaok to their native home in June or July, or when they deem it convenient No class of Kahars can be said to have the right of being regarded as clean Sudras. The fishing classes are certainly unclean, and they are treated as such. Although the Rawanis do not catch fish, yet even they ought not to stand in a better position. A great many of them are in the habit of drinking spirits, and eating field rats and even pork. But it is difficult to get more
311 trnstworthj and obedient servants, and the necessity of Hindu families has made them a clean caste. No good Brahman, however, officiates as a priest for the perform- ance of a religious ceremony in which a Kahar is con- cerned. The Kahar's priest is treated as a degraded Brahman, and his Guru or spiritual guide is usually an ascetic. Most of the Bawanis are worshippers of Siva and Kali, and there are very few Vishnuvites among them. They have great reverence for the shrine oi Kali near Calcutta. Those of them who come to Calcutta never fail to give a puja there, and evep in the districts remote from Calcutta, their usual cry, when they take a litter on their shoulders or drop it, is, Jai Kali Calcuttawali* The Kahar population of India is as stated below : — N.-W. Provinces ... ... ... 1,208,530 Bengal ... ... ... ... 621,176
मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012
सवाल बरक़रार है.............!
हम तो फिर भी हैं श्रमिक, धरा पे सो भी जायेंगे ।
वो सोचें अपनी खैरियत, कि किस तरह मनायेंगे ।
ये कैसे नीतिकार हैं, जो दुर्दशा पे मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।
वो प्रश्न हैं अनुत्तरित, जुड़े जो अस्तित्व से,
हमारे हर सवाल का, अभी जवाब शेष है।
हमारे उस विकास का, नया आयाम क्या हुआ ?
जो शोषणों पे लाते तुम, वो विराम क्या हुआ ?
हमारे नदी घाट के, वो वायदे कहाँ गए ?
जो आप देने वाले थे, वो फायदे कहाँ गए ?
हरेक मोड़, हर गली, सवाल पूछती यही
चुनाव घोषणाओं पे, ये आज कैसा मौन है
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।
लोकतंत्र है यहाँ, मुकर भी जाओगे तो क्या
व्यवस्था मूक है सदा, पलट भी जाओगे तो क्या
मगर वो क्या करे फ़क़त, जो तेरी आस पे टिका
तेरी तलाश में रहा, तेरे लिए नहीं बिका।
तेरे लिए नहीं हटा, तेरे लिए अड़ा रहा ।
तेरे लिए डटा रहा, तेरे लिए खड़ा रहा ।
उठाये कब से घूमता हूँ, वायदों की पोटली
जो देखने में है हसीं, पर असलियत में खोखली
वो घोषणा हवा हुई, वो सब्ज़ बाग़ धुल गए
जरा नशा हुआ नहीं, कि तुम तो पूरे खुल गए
कोई अमल शुरू नहीं, व्यवस्था अब भी मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।
कभी जो शांत दीखता था, आज वो भड़क रहा ।
सुबक रहा, सुलग रहा, ये वर्षो से दहक रहा ।
हमारी छातियों में क्रोध, बन के जो भभक रहा
जो फट गया कभी सुनो, ज्वालामुखी धधक रहा ।
तो सोच लो तबाही की, तुम्हें वो कल्पना नहीं ।
जो रोक ले निषाद को, तो ऐसा कुछ बना नहीं ।
हैं शूल सारे चुभ रहे, पथिक मगर झुको नहीं ।
पड़ाव मोह जाल है, रुको नहीं , रुको नहीं ।
हैं लक्ष्य अब पुकारता , जो भेद दे, वो बाण दो ।
कि शूरवीर हो तुम्हीं, प्रमाण दो ...प्रमाण दो ।
जो सो रहे है उन रगों में, इन्कलाब चाहिए ।
सवाल दर सवाल है, हमें जवाब चाहिए ।
सवाल बरक़रार है, हमें हिसाब चाहिए ।
वो सोचें अपनी खैरियत, कि किस तरह मनायेंगे ।
ये कैसे नीतिकार हैं, जो दुर्दशा पे मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।
वो प्रश्न हैं अनुत्तरित, जुड़े जो अस्तित्व से,
हमारे हर सवाल का, अभी जवाब शेष है।
हमारे उस विकास का, नया आयाम क्या हुआ ?
जो शोषणों पे लाते तुम, वो विराम क्या हुआ ?
हमारे नदी घाट के, वो वायदे कहाँ गए ?
जो आप देने वाले थे, वो फायदे कहाँ गए ?
हरेक मोड़, हर गली, सवाल पूछती यही
चुनाव घोषणाओं पे, ये आज कैसा मौन है
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।
लोकतंत्र है यहाँ, मुकर भी जाओगे तो क्या
व्यवस्था मूक है सदा, पलट भी जाओगे तो क्या
मगर वो क्या करे फ़क़त, जो तेरी आस पे टिका
तेरी तलाश में रहा, तेरे लिए नहीं बिका।
तेरे लिए नहीं हटा, तेरे लिए अड़ा रहा ।
तेरे लिए डटा रहा, तेरे लिए खड़ा रहा ।
उठाये कब से घूमता हूँ, वायदों की पोटली
जो देखने में है हसीं, पर असलियत में खोखली
वो घोषणा हवा हुई, वो सब्ज़ बाग़ धुल गए
जरा नशा हुआ नहीं, कि तुम तो पूरे खुल गए
कोई अमल शुरू नहीं, व्यवस्था अब भी मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।
कभी जो शांत दीखता था, आज वो भड़क रहा ।
सुबक रहा, सुलग रहा, ये वर्षो से दहक रहा ।
हमारी छातियों में क्रोध, बन के जो भभक रहा
जो फट गया कभी सुनो, ज्वालामुखी धधक रहा ।
तो सोच लो तबाही की, तुम्हें वो कल्पना नहीं ।
जो रोक ले निषाद को, तो ऐसा कुछ बना नहीं ।
हैं शूल सारे चुभ रहे, पथिक मगर झुको नहीं ।
पड़ाव मोह जाल है, रुको नहीं , रुको नहीं ।
हैं लक्ष्य अब पुकारता , जो भेद दे, वो बाण दो ।
कि शूरवीर हो तुम्हीं, प्रमाण दो ...प्रमाण दो ।
जो सो रहे है उन रगों में, इन्कलाब चाहिए ।
सवाल दर सवाल है, हमें जवाब चाहिए ।
सवाल बरक़रार है, हमें हिसाब चाहिए ।
गुरुवार, 27 सितंबर 2012
क्या बसपा बदल रही है .......

विधान सभा चुनाव 2012 में पराजित बसपा फिलवक्त अपना घर चाक चौबंद करने में जुटी है | सवर्णों और खासकर ब्राह्मणों से विधान सभा चुनाव में धोखा खाई बसपा इस दफा पिछड़े वर्ग पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है ,खास तौर पर उन 17 अति पिछड़ी जातियों पर जिन्हें अनुसूचित जातियों का दर्जा आज नहीं तो कल अवश्य मिलना है | ऐसे में बसपा समय रहते इस वोट बैंक पर अन्य पार्टियों से पहले हाथ रख कर बढ़त लेना चाहती है | इसकी शुरुआत भी मायावती ने राम अचल राजभर को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कर दी है साथ ही लोक सभा टिकट बंटवारे में तमाशबीन कही जाने वाली जातियों को भी प्रतिनिधित्व देना आरम्भ कर दिया है | इतना ही नहीं अब तक कैडर बेस जाति (चमार समूह) के लिए आरक्षित बसपा जिला अध्यक्ष का पद भी कश्यप /निषाद /मछुआरों सहित इन्हीं अति पिछड़ों को देना शुरू कर दिया है जो बसपा के बदले स्वरुप को प्रतिबिंबित करता है |
आंवला ,गोरखपुर लोकसभा टिकट सहित संगठन में पद तो दिए हैं ,सबसे चौंकाने वाला टिकट शाहजहाँपुर SC लोकसभा क्षेत्र से स्व० वीरांगना फूलन देवी जी के पति श्री उम्मेद सिंह को दिया है | यानि मायावती मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार हो गयी हैं कि जब दिल्ली का मछुआरा SC में घोषित है तो यूपी का भी होना ही चाहिए अर्थात मायावती ने SC के लिए आरक्षित किसी वस्तु पर पहली बार चमार के अतिरिक्त किसी अन्य का दावा स्वीकार किया है | ये निसंदेह स्वाभाविक तो है ही प्रसंशनीय भी है | हालाँकि मायावती का एक चरित्र मछुआ समाज ने तब भी देखा था जब 2007 में सरकार बनाते ही पहली ही कैबिनेट मीटिंग में 17 अति पिछड़ी जातियों के प्रस्ताव को केंद्र से मूल रूप में वापस मंगाते हुए निरस्त कर दिया था । जिसके जख्म समाज में आज भी ताज़ा हैं लेकिन आज बसपा और मायावती का चिंतन बदल गया लगता है ।ये बदलाव यूं ही नहीं है, जातीय राजनीति की मंझी हुयी खिलाड़ी मायावती ने साढ़े तीन प्रतिशत के अंतर से विधान सभा चुनाव हारते ही सत्ता की लोभी जातियों के स्थान पर अपने सामाजिक बदलाव की बाट जोह रही जातियों को साथ में रख कर आगे बढ़ने का मन बनाया | सत्ता की लड़ाई में ये जातियां न सिर्फ भरोसे मंद साबित होंगी बल्कि इनकी राजनैतिक स्थिति वर्तमान समाजवादी सरकार के आचरण से भी तय होने जा रही है | छः माह बीतने के बाद भी समाजवादी सरकार ने आज तक 17 अति पिछड़ी जातियों के बारे कोई बयान तक नहीं दिया , केंद्र सरकार को संस्तुत प्रस्ताव भेजना तो दूर रहा । इसके साथ ही आधा दर्जन निषाद/मछुआ सपा विधायकों को और शेष वरिष्ठ निषाद/मछुआ नेताओं को खाली बैठा कर कागजी घोड़े दौड़ा रही प्रदेश सरकार इन वर्गों की उपेक्षा का संकेत दे रही है । ऐसे में इन वर्गों में निराशा का माहौल भी व्याप्त होना स्वाभाविक है ।
सत्ता से वंचित खटिक, खतवे, गोढ़ी , गंगे ,गंगौत, गन्धर्व, खटवास, धींवर, चाई, चंद्रवंशी, तांती, तुरैहा, तियर, तियार, थारू, धानुक, नोनिया, लोनिया , लौनिया चौहान , कहार, कुम्हार , नाई , नामशूद्र, प्रजापति, मांझी मझवार , बिन्द बेलदार , बियार, भास्कर, माली, मल्लाह, मारकंडे, भोटियारी, राजधोब, भर राजभर, राजवंशी, किसान, लोध, केवट, खुल्वट तथा वनचर जातियां एक जगह संगठित होकर मतदान कर दे तो राजनैतिक बदलाव निश्चित है | इसी बदलाव में इन वंचित जातियों का उत्थान भी छिपा है | इनकी संख्या ३५-४० % है | परन्तु इनमे से कई जातियों का विधान सभा लोक सभा में प्रतिनिधित्व तक नहीं है | इन जातियों की एकता व संगठित शक्ति का राष्ट्रीय एवं राज्य की राजनीति में गहरा असर पड़ेगा ।
क्या डॉ अम्बेडकर और कांसीराम जी के मिशन से भटक कर सवर्णों को गले लगा कर धोखा खा चुकी बसपा पुनः अपने एजेंडे पर आ रही है ?
क्या बसपा बदल रही है.................. या आसन्न चुनाव को देख 17 अति पिछड़ी जातियों में बिखराव कर रही है .....ये एक बड़ा सवाल है इन जातियों के सामने ।
शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
...एक तो होना ही पड़ेगा !
एक
बार मैं बनारस गया तो गंगा में जल विहार का आनंद लेने के लिए नौका में जा
बैठा | नाव खेने वालों से जब मैंने उनकी जाति पूछी तो एक ही परिवार के पांच
लोग अपनी अलग अलग जाति बता रहे थे | किसी ने कहा वे मल्लाह है, किसी ने
निषाद तो किसी ने केवट , कोई साहनी, कोई मांझी बता रहा था | वे सब इस पर भी
सहमत थे कि वे सुरहिया और चाईं भी हैं | उन्हें अपने आपको बिन्द बेलदार से
अलग नहीं मानने में भी कोई संकोच नहीं था | कश्यप ,कहार, धींवर भी उन्ही
में से होने बताये | जाहिर है इस गंभीर विषय को कोई समाजशास्त्री या जानकार
ही समझ सकता है , हाईस्कूल पास लेखपाल पटवारी नहीं | अतः जातिगत भ्रम होना
लाजमी है |
आज हमारे लोग जाति के कई नाम की जिस समस्या से
जूझ रहे हैं , उस प्रकार की समस्या चमार जाति के सामने 1955 -56 में ही आ
गई थी | तब चमार जाति 51 उपजातियों में बंटी थी और लोग अपने आपको भिन्न
भिन्न नामों से बताते थे | किन्तु शर्मवश चमार नहीं कहते थे | जबकि
नियमानुसार अनुसूचित जाति का लाभ केवल चमार वर्ग को था क्योकि SC सूची में
चमार ही वर्णित था | फलस्वरूप दोहरे ,कुरील, जैसवार ,सहित 51 उपजातियों के
लोग आरक्षण से वंचित होने लगे क्योकि उनकी पहचान चमार नाम से न हो कर अन्य
नामों से थी |
जब मामला गंभीर होगया और इनके जाति प्रमाणपत्र
तक बनना बंद हो गए तो इन्होने सचिवालय ,जनगणना कार्यालय, गृहमंत्रालय और
SC /ST आयोग में बैठे अपने आकाओं और भाई बिरादरों से समपर्क साधा | खटाखट
आदेश जारी होते गए और बाकायदा गृहमंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर स्पस्ट कर
दिया कि चमार का तात्पर्य उसकी सभी उपजातियों से है | इस प्रकार पिप्पल,
निम् , कर्दम, जैसल, जैसवार, जाटव, जटिया, गहरवार, अहिरवार, कुरील, रैदास,
दोहर, दोहरे, डोहरा, डोहरे, चमकटा , भगत चमकटा , रोनिगर, रैगड़, रैगर
,रैह्गर,रायगर, भाम्बी , खालकाढ, चर्मकार, रैया, धोंसियार, डांबरे ,
उत्तराहा, दक्खिनाहा, नोना चमार , चमरमंगता, चमड़िया, चामगर, रोहित,
रोहिदास, रविदास ,रुईदास , रविदासी, रामदसिया, रविदसिया, सतनामी , मोची ,
मूची, ऋषि, भैरवा, बैरवा, ढेड़, समगर , सागर, सगर, चंवर ,चम्बर, चुम्बर ,
धुसिया और झुसिया उपजातियां चमार जाति के अंतर्गत परिभाषित हो गयी | किन्तु
इन लोगों ने इस संकट से हमेशा के लिए निबटने के लिए एक समझदारी का काम
किया .......अपनी पहचान एक ही नाम से घोषित करने का निर्णय लिया | वो नाम
चमार है | आज चमार खुल के कहता है कि मैं चमार हूँ |
अब
वक़्त आ गया है कि हमें भी एक नेता , एक नीति, एक नियत, एक नाम और एक
प्लेटफार्म पर आकर अखिल भारतीय स्तर पर एक जातीय स्टेटस के लिए संघर्ष करना
चाहिए |
शनिवार, 1 सितंबर 2012
लोध और मल्लाह अलग अलग जातियां
हमारे कुछ लोग लोध जाति को मल्लाह जाति से सम्बंधित बताते हैं और दोनों जातियों को विवाह सम्बन्ध द्वारा एक होने की सलाह देते हैं । लोध
और मल्लाह दो अलग अलग जातियां हैं | लोध एक पारंपरिक कृषक जाति है जबकि
मल्लाह / निषाद मूलतः शिकारी ,आखेटक, और नाविक जाति है ,साथ ही भूमिहीन भी |
इस कारण लोध एक प्रथक जाति है और मछुआ संस्कृति से सर्वथा भिन्न है |
हालांकि आगरा, फिरोजाबाद, कन्नोज कानपुर में कुछ निषाद परिवारों के लोध में
शादी व्याह के उदाहरण हैं जो केवल उन्ही परिवारों में है समृद्ध, शिक्षित
और विकसित है,गरीब नहीं
निषाद
जातियों का मुख्य व्यवसाय कृषि कभी नहीं रहा | हो सकता है मजबूरी वश नदी
,पोखर तालाब सूख जाने के कारण कतिपय निषादों ने खेती शुरू कर दी हो लेकिन
निषाद जातियों के मानवशास्त्री अध्ययन में उनके शिकारी , पक्षी आखेटक,
मत्स्य आखेटक , सिंघाड़ा उत्पादक व खीरा
ककड़ी उगाने का कार्य करना प्रमाणित हुआ है | जबकि लोध जाति जाट एवं कुर्मी
की भाँति मुख्यतः कृषक जाति है , नाव चलाना तो दूर लोध ने आज तक मच्छली का
शिकार नहीं किया | लोध जाति मुख्यत शाकाहारी है जबकि निषाद जातियां मूलत
मांसाहारी | मछुआ समुदाय एक बहिष्कृत समाज है | आज भी इस जाति के लोगों के
मकान बीच गाँव में न होकर गाँव के बाहरी हिस्सों में पाए गए हैं , ये तथ्य
शोध में प्रमाणित हो चुका है | इसी कारण हमारे लोग अनूसूचित जाति के मानक
पूरे करते पाए गए , जबकि लोध अपना सम्बन्ध लोध क्षत्रीय , लोध राजपूत से
बताते हैं | दोनों वर्गों में समानता का प्रश्न ही नहीं उठता व निषाद
संस्कृति से लोध जाति का प्रत्यक्षतः कोई सम्बन्ध प्रमाणित नहीं होता |
जहाँ तक दोनों जातियों के एकीकरण की बात है तो ये मुख्यतः राजनैतिक विषय
है | राजनेता अपना आधार बढ़ाने के लिए दूसरी जातियों में सम्बन्ध जोड़ने और
जातीय आधार बढ़ाने के पक्षधर रहे हैं ,ये कदम सही हो सकता है | लेकिन जब
एकीकरण की बात हो तो लोध ही क्यों........ समस्त पिछड़े वर्ग और दलित समाज
को एक होना चाहिए | हमें सभी Husbandry जातियों जैसे शिकारी ,आखेटक
,पशुपालक ,गूजर ,गडरिया ,खटिक , चिड़ीमार , मछुआरा, बहेलिया आदि जातियों को
पहले एकजुट होना चाहिए , लोध ही क्यों ......?
जहाँ तक दोनों जातियों के एकीकरण की बात है तो ये मुख्यतः राजनैतिक विषय
है | राजनेता अपना आधार बढ़ाने के लिए दूसरी जातियों में सम्बन्ध जोड़ने और
जातीय आधार बढ़ाने के पक्षधर रहे हैं ,ये कदम सही हो सकता है | लेकिन जब
एकीकरण की बात हो तो लोध ही क्यों........ समस्त पिछड़े वर्ग और दलित समाज
को एक होना चाहिए | हमें सभी Husbandry जातियों जैसे शिकारी ,आखेटक
,पशुपालक ,गूजर ,गडरिया ,खटिक , चिड़ीमार , मछुआरा, बहेलिया आदि जातियों को
पहले एकजुट होना चाहिए , लोध ही क्यों ......?
बिना सामाजिक आन्दोलन के राजनैतिक आन्दोलन बेकार
हमें सामाजिक आन्दोलन के सहारे राजनैतिक आन्दोलन तैयार करना होगा | बिना
सामाजिक आन्दोलन के राजनैतिक आन्दोलन निष्प्रभावी ही रहेगा | चमारों ने
पहले सामाजिक आन्दोलन चलाया और शिक्षा ग्रहण करके शासन प्रशासन में जम गए |
शासन प्रशासन में ऊपर तक जमे चमार राजनैतिक आन्दोलन चलाने वालों की रीढ़
बन गए | और सत्ता हासिल कर स्वयं को रूलिंग कास्ट आफ इंडिया तक कहने लगे |
जब इसके ठीक उलट हमारे मछुआ भाई बिना पढ़े ही नेतागर्दी करने लगे , और
राजनैतिक आन्दोलन चलाकर कुर्सी के दिवास्वप्न देखने लगे | जबकि समाज में
शिक्षा का प्रतिशत 2 % रहगया | अब बिना जागरूक हुए समाज तो बहकना ही था सो
खेमों और पार्टियों में बँटता चला गया और अपनी ताक़त को क्षीण करता चला गया
|
आवश्यकता इस बात की है के पहले हम अपने सामाजिक अधिकार प्राप्त करें
तब राजसत्ता की ओर उन्मुख हों अन्यथा अपने और दुसरे नेताओं के हाथों इस्तेमाल होते रहेंगे |
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
उपयुक्त समय का इंतज़ार करें एवं संयमित होकर अपनी लड़ाई लड़ें
समाजवादी पार्टी मायावती की तरह मछुआ आरक्षण की प्रबल विरोधी नहीं है |
मायावती ने मछुआ आरक्षण रद्द करके और मूल प्रस्ताव केंद्र से आनन् फानन में
वापस मँगा कर निरस्त करके केवल चमार जाति का हित साधने का का कार्य किया
था । मायावती को डर था कि मछुआरे SC में आ गए तो आधा चमार समूह घर बैठ
जायेगा ,बेरोजगार हो जायेगा | इसलिए उसने अम्बेडकर महासभा और अपने पालतू निषाद
नेताओं को विरोध के लिए आगे कर दिया | ऐसा समाजवादी पार्टी ने अब तक तो
नहीं किया है। यह भी स्पष्ट है कि मछुआ समुदाय के आरक्षण से सपा के मूल वोट बैंक यादव और
मुसलमान का कोई नुक्सान नहीं होगा | इसलिए मछुआ आरक्षण देने में
सपा की नियत में कोई खोट नहीं नज़र नहीं आता |
समाजवादी पार्टी आरक्षण का विरोध नहीं कर रही है बल्कि प्रमोशन में दिए जाने वाले आरक्षण का विरोध मुद्दों के आधार पर कर रही है | जिसके राजनैतिक नफे नुक्सान की भी वही जिम्मेदार है | जाहिर है सपा की समर्थक पिछड़ी जाति के लोगों को प्रमोशन में कोई आरक्षण नहीं मिलता सो वह उन लोगों के साथ है | राजनीति में पक्ष और विपक्ष बन जाना स्वाभाविक है |
कांग्रेस निश्चय ही दवाब में है और यदि सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी या गठबंधन के तहत सपा के साथ रहेगी तो उसके प्रस्ताव को टालेगी नहीं , इसका फायदा और नुक्सान भी दोनों दल ही उठाएंगे| आरक्षण की इस लड़ाई में 17 जातियों को जो दल भी धोखा देना चाहेगा ,,,,बहुत बड़ा नुकसान उठाएगा | क्योकि इस लड़ाई में 8 % मछुआ /निषाद समाज, 3 % कुम्हार प्रजापति, और २% राजभर सहित 1 % लोनिया चौहान भी शामिल हैं | इस प्रकार 14 % वोट बैंक को ज्यादा देर धोखा देना आसान नहीं होगा | हम संयमित होकर अपनी लड़ाई लड़ेंगे ताकि हम कोई इल्जाम न आये |
सपा की उत्तर प्रदेश में सरकार है | हमारे पास उसपर फिलहाल भरोसा करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं | निसंदेह वह इलेक्शन तक मछुआरों के धैर्य की परीक्षा भी नहीं लेना चाहेगी सो यह मुद्दा 2014 के चुनाव से पहले तय होना निश्चित हैं | अन्यथा जीवन का अंतिम लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे मुलायम सिंह और उनके सामने प्रधान मंत्री बनने का आखरी मौका बेकार ही जायेगा ......राजनीति के माहिर खिलाडी मुलायम सिंह इस निर्णायक मोड़ पर 8 % मछुआ/ निषाद समाज सहित 14 % जातियों का एकतरफा वोट नहीं गंवाना चाहेंगे | अतः आवश्यकता उपयुक्त समय के इंतज़ार की और संगठित रहकर अपनी शक्ति को बढ़ाने की है |
समाजवादी पार्टी आरक्षण का विरोध नहीं कर रही है बल्कि प्रमोशन में दिए जाने वाले आरक्षण का विरोध मुद्दों के आधार पर कर रही है | जिसके राजनैतिक नफे नुक्सान की भी वही जिम्मेदार है | जाहिर है सपा की समर्थक पिछड़ी जाति के लोगों को प्रमोशन में कोई आरक्षण नहीं मिलता सो वह उन लोगों के साथ है | राजनीति में पक्ष और विपक्ष बन जाना स्वाभाविक है |
कांग्रेस निश्चय ही दवाब में है और यदि सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी या गठबंधन के तहत सपा के साथ रहेगी तो उसके प्रस्ताव को टालेगी नहीं , इसका फायदा और नुक्सान भी दोनों दल ही उठाएंगे| आरक्षण की इस लड़ाई में 17 जातियों को जो दल भी धोखा देना चाहेगा ,,,,बहुत बड़ा नुकसान उठाएगा | क्योकि इस लड़ाई में 8 % मछुआ /निषाद समाज, 3 % कुम्हार प्रजापति, और २% राजभर सहित 1 % लोनिया चौहान भी शामिल हैं | इस प्रकार 14 % वोट बैंक को ज्यादा देर धोखा देना आसान नहीं होगा | हम संयमित होकर अपनी लड़ाई लड़ेंगे ताकि हम कोई इल्जाम न आये |
सपा की उत्तर प्रदेश में सरकार है | हमारे पास उसपर फिलहाल भरोसा करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं | निसंदेह वह इलेक्शन तक मछुआरों के धैर्य की परीक्षा भी नहीं लेना चाहेगी सो यह मुद्दा 2014 के चुनाव से पहले तय होना निश्चित हैं | अन्यथा जीवन का अंतिम लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे मुलायम सिंह और उनके सामने प्रधान मंत्री बनने का आखरी मौका बेकार ही जायेगा ......राजनीति के माहिर खिलाडी मुलायम सिंह इस निर्णायक मोड़ पर 8 % मछुआ/ निषाद समाज सहित 14 % जातियों का एकतरफा वोट नहीं गंवाना चाहेंगे | अतः आवश्यकता उपयुक्त समय के इंतज़ार की और संगठित रहकर अपनी शक्ति को बढ़ाने की है |
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