
विधान सभा चुनाव 2012 में पराजित बसपा फिलवक्त अपना घर चाक चौबंद करने में जुटी है | सवर्णों और खासकर ब्राह्मणों से विधान सभा चुनाव में धोखा खाई बसपा इस दफा पिछड़े वर्ग पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है ,खास तौर पर उन 17 अति पिछड़ी जातियों पर जिन्हें अनुसूचित जातियों का दर्जा आज नहीं तो कल अवश्य मिलना है | ऐसे में बसपा समय रहते इस वोट बैंक पर अन्य पार्टियों से पहले हाथ रख कर बढ़त लेना चाहती है | इसकी शुरुआत भी मायावती ने राम अचल राजभर को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कर दी है साथ ही लोक सभा टिकट बंटवारे में तमाशबीन कही जाने वाली जातियों को भी प्रतिनिधित्व देना आरम्भ कर दिया है | इतना ही नहीं अब तक कैडर बेस जाति (चमार समूह) के लिए आरक्षित बसपा जिला अध्यक्ष का पद भी कश्यप /निषाद /मछुआरों सहित इन्हीं अति पिछड़ों को देना शुरू कर दिया है जो बसपा के बदले स्वरुप को प्रतिबिंबित करता है |
आंवला ,गोरखपुर लोकसभा टिकट सहित संगठन में पद तो दिए हैं ,सबसे चौंकाने वाला टिकट शाहजहाँपुर SC लोकसभा क्षेत्र से स्व० वीरांगना फूलन देवी जी के पति श्री उम्मेद सिंह को दिया है | यानि मायावती मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार हो गयी हैं कि जब दिल्ली का मछुआरा SC में घोषित है तो यूपी का भी होना ही चाहिए अर्थात मायावती ने SC के लिए आरक्षित किसी वस्तु पर पहली बार चमार के अतिरिक्त किसी अन्य का दावा स्वीकार किया है | ये निसंदेह स्वाभाविक तो है ही प्रसंशनीय भी है | हालाँकि मायावती का एक चरित्र मछुआ समाज ने तब भी देखा था जब 2007 में सरकार बनाते ही पहली ही कैबिनेट मीटिंग में 17 अति पिछड़ी जातियों के प्रस्ताव को केंद्र से मूल रूप में वापस मंगाते हुए निरस्त कर दिया था । जिसके जख्म समाज में आज भी ताज़ा हैं लेकिन आज बसपा और मायावती का चिंतन बदल गया लगता है ।ये बदलाव यूं ही नहीं है, जातीय राजनीति की मंझी हुयी खिलाड़ी मायावती ने साढ़े तीन प्रतिशत के अंतर से विधान सभा चुनाव हारते ही सत्ता की लोभी जातियों के स्थान पर अपने सामाजिक बदलाव की बाट जोह रही जातियों को साथ में रख कर आगे बढ़ने का मन बनाया | सत्ता की लड़ाई में ये जातियां न सिर्फ भरोसे मंद साबित होंगी बल्कि इनकी राजनैतिक स्थिति वर्तमान समाजवादी सरकार के आचरण से भी तय होने जा रही है | छः माह बीतने के बाद भी समाजवादी सरकार ने आज तक 17 अति पिछड़ी जातियों के बारे कोई बयान तक नहीं दिया , केंद्र सरकार को संस्तुत प्रस्ताव भेजना तो दूर रहा । इसके साथ ही आधा दर्जन निषाद/मछुआ सपा विधायकों को और शेष वरिष्ठ निषाद/मछुआ नेताओं को खाली बैठा कर कागजी घोड़े दौड़ा रही प्रदेश सरकार इन वर्गों की उपेक्षा का संकेत दे रही है । ऐसे में इन वर्गों में निराशा का माहौल भी व्याप्त होना स्वाभाविक है ।
सत्ता से वंचित खटिक, खतवे, गोढ़ी , गंगे ,गंगौत, गन्धर्व, खटवास, धींवर, चाई, चंद्रवंशी, तांती, तुरैहा, तियर, तियार, थारू, धानुक, नोनिया, लोनिया , लौनिया चौहान , कहार, कुम्हार , नाई , नामशूद्र, प्रजापति, मांझी मझवार , बिन्द बेलदार , बियार, भास्कर, माली, मल्लाह, मारकंडे, भोटियारी, राजधोब, भर राजभर, राजवंशी, किसान, लोध, केवट, खुल्वट तथा वनचर जातियां एक जगह संगठित होकर मतदान कर दे तो राजनैतिक बदलाव निश्चित है | इसी बदलाव में इन वंचित जातियों का उत्थान भी छिपा है | इनकी संख्या ३५-४० % है | परन्तु इनमे से कई जातियों का विधान सभा लोक सभा में प्रतिनिधित्व तक नहीं है | इन जातियों की एकता व संगठित शक्ति का राष्ट्रीय एवं राज्य की राजनीति में गहरा असर पड़ेगा ।
क्या डॉ अम्बेडकर और कांसीराम जी के मिशन से भटक कर सवर्णों को गले लगा कर धोखा खा चुकी बसपा पुनः अपने एजेंडे पर आ रही है ?
क्या बसपा बदल रही है.................. या आसन्न चुनाव को देख 17 अति पिछड़ी जातियों में बिखराव कर रही है .....ये एक बड़ा सवाल है इन जातियों के सामने ।
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