शनिवार, 5 जनवरी 2013

सवाल बरक़रार है...........
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हम तो फिर भी हैं श्रमिक, धरा पे सो भी जायेंगे ।
वो सोचें अपनी खैरियत, कि किस तरह मनायेंगे ।
ये कैसे नीतिकार हैं, जो दुर्दशा पे मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।

वो प्रश्न हैं अनुत्तरित, जुड़े जो अस्तित्व से,
हमारे हर सवाल का, अभी जवाब शेष है।
हमारे उस विकास का, नया आयाम क्या हुआ ?
जो शोषणों पे लाते तुम, वो विराम क्या हुआ ?
हमारे नदी घाट के, वो वायदे कहाँ गए ?
जो आप देने वाले थे, वो फायदे कहाँ गए ?
हरेक मोड़, हर गली, सवाल पूछती यही
चुनाव घोषणाओं पे, ये कैसा तेरा मौन है
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।

लोकतंत्र है यहाँ, मुकर भी जाओगे तो क्या
व्यवस्था मूक है सदा, पलट भी जाओगे तो क्या
मगर वो क्या करे फ़क़त, जो तेरी आस पे टिका
तेरी तलाश में रहा, तेरे लिए नहीं बिका।
तेरे लिए नहीं हटा, तेरे लिए अड़ा रहा ।
तेरे लिए डटा रहा, तेरे लिए खड़ा रहा ।
उठाये कब से घूमता हूँ, वायदों की पोटली
जो देखने में है हसीं, पर असलियत में खोखली
वो घोषणा हवा हुई, वो सब्ज़ बाग़ धुल गए
जरा नशा हुआ नहीं, कि तुम तो पूरे खुल गए
कोई अमल शुरू नहीं, व्यवस्था अब भी मौन हैं,
ये नायकों के वेश में, पता लगाओ कौन है ।

हमारी छातियों में क्रोध, बन के जो भभक रहा ।
कभी जो शांत दीखता था, आज वो भड़क रहा ।
सुबक रहा, सुलग रहा, ये वर्षो से दहक रहा ।
फटेगा एक दिन सुनो, ज्वालामुखी धधक रहा ।
तो सोच लो तबाही की, तुम्हें वो कल्पना नहीं ।
जो रोक ले निषाद को, तो ऐसा कुछ बना नहीं ।
हैं शूल सारे चुभ रहे, पथिक मगर झुको नहीं ।
पड़ाव मोह जाल है, रुको नहीं , रुको नहीं ।
हैं लक्ष्य अब पुकारता , जो भेद दे, वो बाण दो ।
कि शूरवीर हो तुम्हीं, प्रमाण दो ...प्रमाण दो ।
जो सो रहे है उन रगों में, इन्कलाब चाहिए ।
सवाल दर सवाल है, हमें जवाब चाहिए ।
सवाल बरक़रार है, हमें हिसाब चाहिए ।

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