अब वक़्त आ गया है कि उत्तर प्रदेश में निवासरत मछुआ समुदाय की जातियों
को अनुसूचित जातियों में सम्मिलित करने सम्बन्धी प्रस्ताव पर समाजवादी
पार्टी केंद्र सरकार से मजबूत पैरवी भी करे।
उत्तर प्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी की अबतक की कार्यशैली और रणनीति समाज के हिसाब से फायदेमंद रही हैं । सपा ने विधान सभा चुनाव 2012 में समाज से वादा किया था कि वह सत्ता प्राप्ति के पश्चात इन जातियों को अनुसूचित जातियों की परिधि में लाएगी और अनुसूचित जाति की सुविधा देते हुए इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल भी करेगी । हालाँकि संविधान अनुच्छेद 341 (1) के अंतर्गत यह शक्तियां केंद्र सरकार और संसद में निहित हैं और राज्य सरकार की भूमिका केवल परामर्श एवं संस्तुति सहित आवश्यक प्रस्ताव भेजने तक ही सीमित रहती है ।
गुजरे पूरे दोनों माह इन जातियों के लिए सर्वश्रष्ठ रहे । जहाँ फरवरी में सरकार ने विशाल रैली आयोजित करके इन जातियों के जज्बे को आँका जिस पर ये जातियां भारी पड़ीं और लखनऊ की सड़कों पर आन डटी वहीँ इनकी उमड़ी भारी तादाद से उत्साहित सरकार ने तुरंत केन्द्र सरकार को सिफारिशी पत्र भेजते हुये शीघ्र ही कैबिनेट की संस्तुति को उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति /जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की 400 प्रष्टों की आख्या के साथ संलग्न कर प्रेषित किया । इतना ही नहीं पिछली बार के कटु अनुभव से चेतते हुए सपा सरकार ने इस दफा अपने रणनीतिकारों को प्रस्ताव के मूल्यांकन में लगाया और एक उत्कृष्ट प्रस्ताव तैयार कर केंद्र को कार्रवाही के लिए प्रेषित किया । शुकवार को विधान सभा सत्र के अंतिम दिन सदन में ध्वनि मत से संकल्प पास करके को केंद्र सरकार को भेजा। यहाँ तक तो सपा ने अपने काम को देर सवेर ही सही .....भली भांति सही सही अंजाम दिया । अब सिर्फ केंद्र सरकार को गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से सूचना प्रकाशित करनी हैं ।
लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार इस प्रस्ताव को लेकर उतना उत्साह नहीं दिखा रही जितना प्रदेश सरकार और मछुआ जातियों ने दिखाया । कांग्रेस सरकार अल्पमत में है और सपा के समर्थन की बैशाखी पर टिकी है । अब सपा को चाहिए कि वह अपने 24 लोक सभा और 12 राज्यसभा सांसदों के माध्यम से कांग्रेस पर दवाब बनाये और इस प्रस्ताव को रद्दी की टोकरी में जाने से बचाए अन्यथा इस प्रस्ताव के लटक जाने और ठन्डे बस्ते में जाने पर कांग्रेस के साथ साथ सपा भी बराबर की दोषी प्रमाणित होगी । लेकिन हमें सिर्फ सपा के सहारे अपनी लड़ाई नहीं छोडनी होगी बल्कि अपना समर्थन सडक पर उतर कर दिखाना होगा । सारी पार्टियाँ हमारे पीछे खड़ी नज़र आएँगी ।
मेरी राय में सपा के सभी सांसदों को मछुआ समुदाय के लोग पत्र भेजें और बताएं उनकी लड़ाई अंतिम स्तर पर है । जहाँ पर सपा के एक एक सदस्य का समर्थन मायने रखता है । हालाकिं इस मुद्दे पर भाजपा का भी नीतिगत समर्थन है क्योकि उसके चुनावी एजेंडे में भी यह बिंदु था । बसपा से समर्थन की उम्मीद बेमानी है । महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे से जूझ रही कांग्रेस यदि इस प्रस्ताव को मानकर मछुआ समुदाय को उसका बहुप्रतीक्षित अधिकार उपलब्ध करा देती है तो यूपी में मरणासन्न कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती हैं ।
उत्तर प्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी की अबतक की कार्यशैली और रणनीति समाज के हिसाब से फायदेमंद रही हैं । सपा ने विधान सभा चुनाव 2012 में समाज से वादा किया था कि वह सत्ता प्राप्ति के पश्चात इन जातियों को अनुसूचित जातियों की परिधि में लाएगी और अनुसूचित जाति की सुविधा देते हुए इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल भी करेगी । हालाँकि संविधान अनुच्छेद 341 (1) के अंतर्गत यह शक्तियां केंद्र सरकार और संसद में निहित हैं और राज्य सरकार की भूमिका केवल परामर्श एवं संस्तुति सहित आवश्यक प्रस्ताव भेजने तक ही सीमित रहती है ।
गुजरे पूरे दोनों माह इन जातियों के लिए सर्वश्रष्ठ रहे । जहाँ फरवरी में सरकार ने विशाल रैली आयोजित करके इन जातियों के जज्बे को आँका जिस पर ये जातियां भारी पड़ीं और लखनऊ की सड़कों पर आन डटी वहीँ इनकी उमड़ी भारी तादाद से उत्साहित सरकार ने तुरंत केन्द्र सरकार को सिफारिशी पत्र भेजते हुये शीघ्र ही कैबिनेट की संस्तुति को उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति /जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की 400 प्रष्टों की आख्या के साथ संलग्न कर प्रेषित किया । इतना ही नहीं पिछली बार के कटु अनुभव से चेतते हुए सपा सरकार ने इस दफा अपने रणनीतिकारों को प्रस्ताव के मूल्यांकन में लगाया और एक उत्कृष्ट प्रस्ताव तैयार कर केंद्र को कार्रवाही के लिए प्रेषित किया । शुकवार को विधान सभा सत्र के अंतिम दिन सदन में ध्वनि मत से संकल्प पास करके को केंद्र सरकार को भेजा। यहाँ तक तो सपा ने अपने काम को देर सवेर ही सही .....भली भांति सही सही अंजाम दिया । अब सिर्फ केंद्र सरकार को गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से सूचना प्रकाशित करनी हैं ।
लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार इस प्रस्ताव को लेकर उतना उत्साह नहीं दिखा रही जितना प्रदेश सरकार और मछुआ जातियों ने दिखाया । कांग्रेस सरकार अल्पमत में है और सपा के समर्थन की बैशाखी पर टिकी है । अब सपा को चाहिए कि वह अपने 24 लोक सभा और 12 राज्यसभा सांसदों के माध्यम से कांग्रेस पर दवाब बनाये और इस प्रस्ताव को रद्दी की टोकरी में जाने से बचाए अन्यथा इस प्रस्ताव के लटक जाने और ठन्डे बस्ते में जाने पर कांग्रेस के साथ साथ सपा भी बराबर की दोषी प्रमाणित होगी । लेकिन हमें सिर्फ सपा के सहारे अपनी लड़ाई नहीं छोडनी होगी बल्कि अपना समर्थन सडक पर उतर कर दिखाना होगा । सारी पार्टियाँ हमारे पीछे खड़ी नज़र आएँगी ।
मेरी राय में सपा के सभी सांसदों को मछुआ समुदाय के लोग पत्र भेजें और बताएं उनकी लड़ाई अंतिम स्तर पर है । जहाँ पर सपा के एक एक सदस्य का समर्थन मायने रखता है । हालाकिं इस मुद्दे पर भाजपा का भी नीतिगत समर्थन है क्योकि उसके चुनावी एजेंडे में भी यह बिंदु था । बसपा से समर्थन की उम्मीद बेमानी है । महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे से जूझ रही कांग्रेस यदि इस प्रस्ताव को मानकर मछुआ समुदाय को उसका बहुप्रतीक्षित अधिकार उपलब्ध करा देती है तो यूपी में मरणासन्न कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती हैं ।
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