बुधवार, 15 दिसंबर 2010

इसी लिए कोहराम मचा है !!

इसी लिए कोहराम मचा है !!
करता तू इनकार रहा है ,
जो इनका अधिकार रहा है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!

स्वर्ग तुम्हारा टूट रहा है , 
भर्म तुम्हारा छूट रहा है ,
बिन वेतन का दास तुम्हारा ,
चंगुल से अब छूट रहा है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!

जिनको अब तक लूट रहा था ,
सांकल से वह छूट रहा है ,
ईश्वर का आडम्बर तेरा ,
मातम का वह फंदा तेरा ,
पुनर्जन्म का धंधा तेरा ,
स्वर्ग-नरक का चंदा तेरा,
वर्ण-व्यवस्था गन्दा तेरा ,
सब कुछ तो अब टूट रहा है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!

पोथी और पुथन्नों को तू ,
गढ़ने का मक्कार रहा है ,
बैठे-ठाले  खाने वाला ,
चालू व हुशियार रहा है ,
रटा रटाया , लिखा लिखाया ,
विद्याओं को छिपा छिपाया ,
पर हमने भी छेद किया है ,
हमने उनको जान लिया है ,
हमने उनको छान लिया है ,
शोषण के सब हथकंडे है ,
परत-परत संज्ञान लिया है |
इसी लिए कोहराम मचा है !!

{साभार -  दलित साहित्य -श्री गुरु प्रसाद मदन की श्रेष्ठ कविताएँ  }

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

" अम्बेडकर - शोषितों और दलितों के मसीहा "

" इस दुनिया में आत्मसम्मान से जीना सीखो | दुनिया में कुछ करके दिखाने के लिए आपको अपने लक्ष्य निर्धारित करने होंगे | संघर्ष करने वाला अकेला ही चल पड़ता है | हो सकता है कि इस बीमार व्यवस्था को सुधारने वाले का कहीं जिक्र भी न हो ,लेकिन अब लाचारी और बेबसी के युग का अंत हो गया है और नया वक़्त शुरू हुआ है | आपके राजनीति में आने और कानून बनाने की ताक़त हासिल कर लेने के बाद कुछ भी असंभव नहीं रहेगा |"

डा० भीमराव रामजी अम्बेडकर , भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष चुने गए और आपका सबसे बड़ा योगदान मौलिक अधिकारों के साथ साथ राज्य को दिए गए नीति निर्देशक सिद्धांत रहे , जिसकी वज़ह से हमें स्वतन्त्रता, समानता और अस्पर्शता से छुटकारा मिला | आपने सम्पूर्ण जीवन भर भारतीय जातीय व्यवस्था में व्याप्त अस्पर्शता के विरुद्ध संघर्ष किया | भारत में दलित बौद्ध आन्दोलन का श्रेय भी आपको ही जाता है |

14 अप्रैल १८९१ को महाराष्ट्र की अस्पर्श कही जाने वाली "महार" जाति में जन्म लेने वाले डा० भीम राव अम्बेडकर ने , जो कि प्रसिद्द न्यायविद ,  दलितों के सशक्त नेता , बौद्ध नवजागरण के सूत्रधार और भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पी भी थे , जीवन में अनेक बार सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया था | आपको विद्यालय में कोने में बैठने को मजबूर किया जाता था और मास्टर आपकी  पुस्तकें तक नहीं छूते थे | इसी क्रूरता और भेदभाव से लड़ते लड़ते १९०८ में आपने मैट्रिक पास किया |  इसके पश्चात आपने बम्बई यूनिवर्सिटी से राजनैतिक विज्ञानं और अर्थशात्र में स्नातक परीक्षा पास की | १९१३ में आपने इग्लैण्ड और अमेरिका के विश्वविद्ध्यालयों से कानून में परास्नातक के साथ साथ राजनैतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में शोध करते हुए डाक्टरेट की उपाधियाँ भी प्राप्त कीं |

भारत लौट कर आपने पाक्षिक समाचार पत्र "मूक नायक" आरम्भ किया तथा अस्पर्शता के विरुद्ध पूरे भारत में सभाएं कीं | १९१९ में लन्दन में भारतीय स्वतन्त्रता की तैयारी को लेकर आयोजित सम्मलेन में  अंग्रेज सरकार के आमंत्री की हैसियत से आपने दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की ज़ोरदार वकालत की | शोषित वर्गों के शैक्षिक एवं सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिए आपने बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन किया | आप बम्बई विधान परिषद् के सदस्य रहे और अस्पर्शता के विरुद्ध आपने कई सक्रिय आन्दोलन चलाये | अछूतों के अधिकारों को लेकर आपने महाड के आन्दोलन का भी नेतृत्व किया |

मुख्य राजनैतिक दलों द्वारा जाति प्रथा को महत्त्व दिए जाने से अम्बेडकर प्राय: उनकी आलोचना करते थे | आप अछूतों के पृथक निर्वाचक मंडलों के पक्षधर रहे और इसी कारण महात्मा गांधी से आपका विरोध रहा | गांधी को डर था कि इस विभाजन से आगामी पीढ़ियों के लिए हिन्दू समाज बँट जायेगा | आखिरकार लम्बी ज़द्दोजहद  के बाद २४/९/१९३२ को पूना पैक्ट हुआ |

नासिक के निकट येओला कांफ्रेंस में भाषण देते समय आपने बौद्ध धर्म अपनाने की इच्छा व्यक्त की क्योंकि इसमें जातीय व्यवस्था नहीं होती | आपने बौद्ध धर्म अपना कर पूरे भारत का भ्रमण किया | १९५५ में आपने भारतीय बौद्ध महासभा का गठन किया तथा १९५६ में "बुद्ध और उनका धर्म" पर अपना कार्य पूर्ण किया | एक औपचारिक जन समारोह में आपने ५,००,००० अनुयाईयों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की और हिन्दू धर्म व हिन्दू दर्शन को नकारते व त्यागते हुए बौद्ध धर्म की २२ प्रतिज्ञाएं लीं |

१९३६ में आपने स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया और मध्य विधान सभा में १५ सीटें जीत लीं | आपने कांग्रेस द्वारा अछूतों को हरिजन कहे जाने पर सख्त ऐतराज़ जताया | आपने अनेक पुस्तकों की रचना की जिनमे प्रमुखत: "जातीय उन्मूलन", "पाकिस्तान पर विचार", "कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया ?", "शूद्र कौन हैं ?", और "अछूत - अस्पर्शता के उदगम पर शोध " हैं |

आज़ादी के बाद अम्बेडकर को देश का प्रथम कानून मंत्री और संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया | आपने बुद्ध संघीय आत्मा को भारतीय और पाश्चात्य विचारों के साथ समावेशित करते हुए संविधान को मूर्त स्वरुप प्रदान किया | आपने कमजोरों, दबे-कुचलों और विशेषत: महिलाओं के लिए संविधान में ख़ास प्रावधान किये | 

आपने १९५१ में कैबिनेट से हिन्दू कोड बिल के विरोध में इस्तीफ़ा इसलिए दे दिया क्योंकि आप संसद में लिंगीय आधार पर समान विरासत, समान वैवाहिक नियम और समान अर्थव्यवस्था का कानून चाहते थे | बाद में आप राज्य सभा में चुने गए और अपनी मृत्यु ६ दिसंबर १९५६ तक आजीवन सांसद रहे |

दलितों के धर्म युद्ध हेतु आप आने वाली पीढ़ियों के लिए एक परम शक्तिशाली हथियार सौंप कर गए | आरक्षण के प्रावधान का उपयोग करके अनेक दलित शिक्षित हो गए और अपनी आजीविका में सुधार ले आये | आपकी प्रेरणा आज मानवाधिकारों में भी परिलक्षित हो रही है | आज हमें अनेक दलित राजनैतिक दल , दलित प्रकाशक, और दलित कर्मचारी संगठन आपके प्रयासों से ही नज़र आ रहे हैं | इस प्रेरणा को गंभीरतापूर्वक आगे ले जाने की आवश्यकता है | दलित एजेंडा अग्रसर रहे, इसका दायित्व हमें ही उठाना होगा | जातीय व्यवस्था ने भारतीय समाज को आज भी नहीं छोड़ा है | हम आज भी अस्पर्शता का शिकार हो रहे हैं | जब दलित सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हो जायेंगे, तभी बाबा साहेब डा० अम्बेडकर का सपना पूरा होगा |

बाबा साहेब डा० अम्बेडकर ने कहा था " मेरी अंतिम सलाह यही है कि आप शिक्षित बनो, जागरूक हो, संगठित रहो और अपने आप पर भरोसा रखो | यह युद्ध पूर्ण अर्थों में आध्यात्मिक है, इसमें सांसारिकता व भौतिकता की चाह नहीं होगी | ये मानवीय आस्तित्व के पुनरुद्धार की लड़ाई  है |  "

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

|| आरती भगवान श्री कालू देव ||

                          "तुरैहा समाज के इष्ट पुरुष - भगवान श्री कालू देव "


ओउम जय कालू देवा, प्रभु जय कालू देवा |  
नारद तुम गुण गावें, इन्द्र करें सेवा || ओउम जय....

तुम तुराये गढ़ स्वामी , बलिया वंश पति |
सोलह सिंह की सेना , तुमरे द्वार बंधी || ओउम जय....

नाप लिए दस पग में ,  तुम कंचन जंघा |
तुमरे तेज के आगे , हार गयी गंगा || ओउम जय .....

इन्द्र तुम्हें गुरु माने , चरण धोय पीता |
तुम रक्षक हम सबके , तुम जग जल जीता || ओउम जय ....

क्रोधित होकर वासुकि , तुम पर फुंफकारे |
विष की भीषण ज्वाला , तन पड़ गए कारे || ओउम जय ....

हाल सुना तब चन्दन , हरि दौड़े लाये |
तब से तुम देवों में , कालू कहलाये || ओउम जय ....

पूरण होवें कारज , जो तुम को ध्यावें |
तुमरे भजन तुरैहा , प्रेम सहित गावें || ओउम जय ....

श्री कालू जी की आरती , जो कोई नर गावे |
कहत मछिंदर बाबा , वो नर तर जावे || ओउम जय ....

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

" बिखरी हुई ताक़त "

हम लोग शिकवा- शिकायतें ही करते रह गए और दूसरे अपना काम निकलवा कर ले गए | हम साधनों की कमी का ही रोना रोते रहे और दूसरे सत्ता व शासन में अपनी पकड़ बनाते चले गए | उन्होंने अपनी जातीय पहचान को बढाया और संगठन बना कर अपने वोटों को एक जुट करके राजनैतिक शक्ति हासिल करते हुए सरकार का हिस्सा बन बैठे , जब कि हम न तो साधनों में पीछे थे, न संख्याबल में | न अनुभवहीन ही थे और न ही मृतप्राय , फिर भी हमें कोई राजनैतिक दल  गिनने को तैयार नहीं, शक्ति के रूप में जानना और हमसे डरना तो दूर की कौड़ी रही | कारण स्पष्ट हैं- बिखरी हुई ताक़त, लुप्तप्राय् मान- सम्मान और राजनैतिक इच्छाशक्ति का घोर अभाव |  इसलिए बिखरे और बँटे हुए लोगों से किसे और कैसा भय ?
अपनी आबादी पर यदि हम गौर करें तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश की करीब ९० विधानसभा सीटों पर हमारा वोट है | प्रत्येक सीट पर कम से कम दस हज़ार से लेकर एक लाख तक तुरैहा मछुआरा वोट है| मध्य यूपी में अपने और अन्य मछुआरा उपजातियों की बदौलत हम ४० सीटों पर, पूर्वांचल की ८० सीटों पर , बुंदेलखंड की मछुआ व् नाविक जातियां  ४० सीटों पर  एवं ब्रजक्षेत्र की ५० सीटों पर तुरैहा समाज अपने अन्य सजातीय वोटों की ताक़त पर निर्णायक की भूमिका में है| इस तरह पूरे उत्तरप्रदेश की ३०० विधानसभा क्षेत्रों में हमारी हैसियत महत्वपूर्ण है| यह आंकड़ा सरकार बनाने और गिराने के लिए पर्याप्त है| इस संख्याबल से हमारा समाज भारी उलटफेर कर सकता है| या कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि जो दल हमारी मांगों पर विचार न करे, उसे हरा दें, हटा दें |  
लेकिन ये आंकड़ा सिर्फ कागज़ी ही है, हकीकत से कोसों दूर | एक नेता और एक नियत एक अभाव में हमारे सभी प्रयास अँधेरे में तीर चलाने जैसे हैं |७ जातियों और ४३ उपजातियों में बँटा यह समाज अपना एक सर्वमान्य संगठन तक नहीं बना पाया है , एक नेतृत्व की तो बात ही छोड़ दीजिये | अब नेतृत्व के अभाव में कैसे संघर्ष किया जाए, किन मुद्दों को उठाया जाए और किस प्रकार अपनी बात सरकार में बैठे संवेदनहीन और सरोकार से दूर रहने वाले लोगों तक पहुंचाई जाए , ये बड़ा विचारणीय प्रश्न है | ये ज्वलंत बिंदु हैं, ये पहेलियाँ हैं और मुंहबांये खड़े सवाल हैं समाज के नौजवानों के लिए, और चुनौतियाँ  हैं समाज के हर उस व्यक्ति के लिए, जो अपनी जाति से ज़रा सा भी लगाव रखता है|  अपनी बिखरी ताक़त को सहेजना होगा| अपना सोया स्वाभिमान जगाना होगा| अपनी बात के लिए मरना सीखना होगा| अपने विकास के लिए दूसरों का मुंह ताकना बंद करना होगा| अपने संगठन से अपनी ताक़त खुद बनानी होगी | इसके लिए अपने मतभेद भुलाने होंगे| आपसी वैमनस्य को भूलकर भाईचारे की भावना को विकसित करना होगा| अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए समाज की एकता को दांव पर लगाने वाले जयचंदों की शिनाख्त कर उन्हें समाज से धकियाना होगा| समाज का हित सोचने वालों को ढूंढ ढूंढ कर आगे लाना होगा, निश्चय ही ये ही वो भागीरथ होंगे, जो समाज में क्रान्ति की गंगा ले आयेंगे | इसके लिए हमें इंतज़ार नहीं, शुरुआत करना होगी क्योंकि २०१२ अब ज्यादा दूर नहीं है

"वो मुतमईन है , पत्थर पिघल नहीं सकता |  
 मैं बेक़रार हूँ , आवाज़ में असर के लिए ||

सोमवार, 29 नवंबर 2010

" नया सवेरा "

आज़ादी मिले 63 साल हो गए, लेकिन आज भी हमारा तुरैहा समाज वहीँ का वहीँ पड़ा, अपनी बदहाली पर रो रहा है | देश की तमाम जातियां आज हर क्षेत्र में विकसित हो गयी हैं किन्तु हम किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ पाए | समाज के बच्चे ज्यों ही कुछ समझदार होने लगते हैं , उन्हें घर वाले किसी न किसी काम में लगा देते हैं | लड़कियों की शिक्षा के बारे में बात करिए,तो जबाब मिलेगा कि हमें कौन सी नौकरी करवानी है ? शिक्षा के अभाव में लोगों को ये तक पता नहीं है कि देश में हो क्या रहा है और उन्हें क्या करना चाहिए ?

रविवार, 28 नवंबर 2010

" सबक सीखे कांग्रेस "

हाल ही में हुऐ  बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने साबित किया है कि झूठ, फरेब , अय्यारी, मक्कारी और बदले की भावना से की जाने वाली राजनीति का यही हश्र होता है | केंद्र की सरकार यह सोचे कि कोरी घोषणाओं की बदौलत लोगों को फुसलाकर सरकार बनालेगी तो ये स्वप्न फिलहाल टूटता ही नज़र आया | कांग्रेस २००३ से मछुआ समुदाय को छलती चली आ रही है | १६ पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्ज़ा देने सम्बन्धी प्रस्ताव को कांग्रेस ही लटकाए बैठी रही| जब कि मुलायम सिंह जी की सरकार में उक्त प्रस्ताव चार दफे केंद्र को संस्तुति सहित भेजा गया | मायावती जी ने तो हद ही कर दी , सरकार बनाने के २२ दिनों के भीतर मूल प्रस्ताव वापस मंगाकर निरस्त करवा दिया , जैसे बहन जी इसी मुद्दे पर जीत कर आयीं हों |  जब समाज ने दबाब बनाया तो महज २ पन्नो की चिठ्ठी केंद्र को भेजकर बसपा ने पिंड छुढ़ा लिया और गेंद फिर से  केंद्र के पाले में डाल दी | हमें फ़ुटबाल समझ कर इन लोगों ने अपने गोल मारे और जीतने पर अपनी फ़तेह का जश्न  मनाने चले गए , हमारी खाली गेंदे मैदान में अपनी तकदीर बदलने वाले  मसीहा की अब तलक मुन्तजिर  रही हैं |

शनिवार, 27 नवंबर 2010

" कल की सोचें "

कल की सोचें , कल का निर्णय आज ही लेना होगा| क्योकि आने वाला कल बेहद मुश्किलों भरा और संघर्ष पूर्ण होगा| यदि हमने अपने ऐशो आराम छोड़कर आने वाले समाज की चिंता नहीं की तो आने वाली नस्लें हमें बुरा कहती नज़र आएँगी| शिक्षित समाज ही विकास कर सकता है,इसके लिए आवश्यक है कि हम जागरूकता लाये और अपने खर्चो मे कटोती करके अपने बच्चो को शिक्षा दिलाये साथ ही समाज का संगठन बनाकर उसमे अपने योगदान सुनिश्चित करे

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

" अपनी मदद खुद करें "

अब वक़्त आ गया है , समाज अपना निर्णय खुद ले | अपने विकास के लिए सरकारी योजनाओं का मुंह ताकना बंद करना होगा | सरकारें भी समाजों की ताक़त और मूड देखकर अपने पत्ते खोलती रही हैं.| इसलिए आवश्यक है कि अपने आप को संगठित करके अपनी एकता कायम रखें और बच्चों की शिक्षा व संस्कारों  पर ध्यान दें| यदि हमारे पढ़े  लिखे नौजवान , समाज के धनवान व्यक्ति एवं ऊंचे ओहदों पर बैठे साधन संपन्न लोग ही समाज की समस्याओं की तरफ से आँखें मूंदे बैठे रहेंगे तो बिरादरी का भला करने या आवाज़ उठाने कोई बनिया -बामन तो आएगा  नहीं ? और अगर आएगा भी तो अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर हमें धोखा ही देगा | हम लोग हमेशा पिछलग्गू बनकर ही जीतें आये हैं , कभी आगे बढ़ कर नहीं देखा | कभी किसी भाई को मौका मिला भी तो अपने ही सबसे पहले उसकी टांगें खींचते नज़र आये | आपसी कलह और वैमनस्य हमारे तुरैहा समाज का दुश्मन बना हुआ है | जबकि हम मायावती या मुलायम सिंह को दोष देते रहे हैं |                                    
"ये और बात सफीना डूबा लिया मैंने ,                                                 
मगर खुदा न कहा तुझको नाखुदा मैंने "

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

"जागो तुरैहा बंधुओं "

Priye Turaiha Bhaiyo, Ab samay aa gaya hai ki hum aalasy tyag kar samaj hit ka chintan karein. Yadi educated log hi ghar baith jayeinge toh samaj ko disha kaun dega ? Aaiye miljul kar samaj ki problems pe dyan dein aur samaj ko naye siray se taiyyar karein. Educated, United and Organised people Can servive"