शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

अरे भाई ! हमें भी जानकारी है मगर ....

प्रायः अधिकारी लोग मछुआ जातियों के बुद्धिजीवियों को बुद्धूजीवी समझते है और आरक्षण के मुआमले में हमारे लोगों को कानून पढा कर खामोश कर देना चाहते है । सत्ता के गलियारों में बैठे फाइलों का ढेर लगाए बैठे वे अधिकारी जो SC आरक्षण की बदौलत ही उच्च पदों पर आसीन है ...रोड़े अटकाते आये हैं । वे हर बार भूल जाते हैं कि 62 साल से वे जिस आरक्षण की रोटी तोड़ रहे हैं उस पर मछुआ समुदाय का भी उनके समान अधिकार है । हमें बेवकूफ़ समझने वाले जान लें .....हमने E J Kitts को पढ़ा है , हमने J N Bhattacharya को पढ़ा है , हमने M A Sheering को पढ़ा है । हमने H A Rose को पढ़ा है , हमने Blunt को समझा है , हमने  E T Atkinson को जाना है । हमने Denzil Ibbetson को पढ़ा है, हमने E D Maclagan को पढ़ा है, हमने H C Conybeare को पढ़ा है , हमने C H Brone को पढ़ा है, हमने H R Nevill को पढ़ा है, हमने W Crook को रट रखा है । हमने Risley को पढ़ा है ,हमने G S Ghurye को पढ़ा है । हमने R V Russel & Heera Lal को पढ़ा है ,हमने W C Abel को पढ़ा है इतना ही नहीं हमने A C Turner को भी खोज निकाला है।
हमने छेदी लाल साथी को संस्तुतियों सहित पढ़ा है , हमें डॉ बाबा साहब अंबेडकर के सम्पूर्ण वांग्मय को भी  पढ़ा है । इतना ही नहीं हमने 1891, 1901 , 1911, 1931 , 1951, 1961 ,1971, 1981 ,1991, 2001 की जनगणना रिपोर्टों को भी ध्यान से पढ़ा है ।
हमें भैया राम मुंडा बनाम अनिरुद्ध पटार 1971 , नारायण बेहरा बनाम उडीसा राज्य 1978 , शिवपूजन प्रसाद बनाम उ0प्र0 सरकार 1980 सहित राधेश्याम बनाम दिल्ली सरकार जैसे ऐतिहासिक नजीर बने सर्वोच्च / उच्च न्यायालयों के निर्णयों की भी अच्छी जानकारी है । इतने नाम 62 साल से आरक्षण की रोटी तोड़ रहा कोई SC अधिकारी गिना नहीं पायेगा .....अजी ! गिनाना तो दूर ...उसने नाम सुने तक नहीं होंगे । फिर हमारी फ़ाइल को आपत्तियां लगाकर रोकना और हमारे समाज को 62 सालों से संवैधानिक अधिकारों से वंचित करते रहना क्या देशदोह नहीं ? क्या ये मानवता के विरुद्ध षड्यंत्र नहीं ? क्या ये भद्दा मजाक नहीं ? क्या ये जिन्दा भाई भतीजा वाद नहीं ? क्या ये पद का दुरूपयोग नहीं ?
हमारे पास 1879 से लेकर 2012 तक के दस्तावेज मौजूद हैं क्योकि हमारे यहाँ दुनिया सबसे नायाब खजाना विश्व प्रसिद्द रजा लाइब्रेरी हैं । लेकिन इतना सब होने के बावजूद हम कमजोर है । कारण ........ हमारे लोग सोये हैं , संगठित नहीं हैं , अधिकारों की आवश्यकता को आज भी जान नहीं पा रहे है । अशिक्षा ,अन्धविश्वास और नशे के जाल में फंसे है । जो पढ़ लिख गए वे समाज के प्रति अपने दायित्वों को तिलांजलि दे चुके हैं ।

समय करवट ले रहा है .....2013/ 2014 का लोकसभा चुनाव दस्तक दे रहा है ...यदि मछुआ समुदाय ने अतीत से सबक सीखा और राजनैतिक शक्ति को संचित कर लिया तो चुनाव पूर्व ही सत्ता में बैठी लालची पार्टियाँ आपके आगे झुक जायेगी ।

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