समाज के नेतृत्व के सवाल पर सब चुप हो जाते है ,
युवा कहता है - मैं बेरोजगार हूँ , मुझे कैरियर बनाना है , पढ़ना है , समाज के विषय में और लोग सोंचे ।
सरकारी नौकरी वाला कहता है - मैं सर्विस रूल से बँधा हूँ , खुलकर सामने नहीं आ सकता । मुझे जाने दो ।
प्राइवेट नौकरी वाला कहता है - पूरा समय नौकरी में ही निकल जाता है , समाज के लिए कहाँ से समय निकालूं ।
दुकानदार कहता है - दूकान बंद करके जाऊँगा तो धंधा चौपट हो जायेगा ।
व्यापारी कहता है - रुपया दे सकता हूँ लेकिन समय नहीं । 100 रुपया देगा और 500 लोगों से कहेगा कि मैंने चन्दा दिया है ।
रिटायर्ड अधिकारी कर्मचारी कहता है - शुगर का मरीज हूँ ,हर आधे घंटे में पेशाब करना पड़ता है , हार्ट का मरीज हूँ दौड़ भाग नहीं कर सकता । घर बैठे राय दे सकता हूँ , पैसा तो अब रहा ही नहीं ।
किसान और मजदूर अशिक्षित और कम संसाधनों की वजह से मजबूर हो जाते हैं ।
ऐसे में समाज को नया नेतृत्व कैसे मिले ?
या ऐसे में उसी बैरी पिया पर फिर दिल न लाया जाए तो क्या किया जाए ?
युवा कहता है - मैं बेरोजगार हूँ , मुझे कैरियर बनाना है , पढ़ना है , समाज के विषय में और लोग सोंचे ।
सरकारी नौकरी वाला कहता है - मैं सर्विस रूल से बँधा हूँ , खुलकर सामने नहीं आ सकता । मुझे जाने दो ।
प्राइवेट नौकरी वाला कहता है - पूरा समय नौकरी में ही निकल जाता है , समाज के लिए कहाँ से समय निकालूं ।
दुकानदार कहता है - दूकान बंद करके जाऊँगा तो धंधा चौपट हो जायेगा ।
व्यापारी कहता है - रुपया दे सकता हूँ लेकिन समय नहीं । 100 रुपया देगा और 500 लोगों से कहेगा कि मैंने चन्दा दिया है ।
रिटायर्ड अधिकारी कर्मचारी कहता है - शुगर का मरीज हूँ ,हर आधे घंटे में पेशाब करना पड़ता है , हार्ट का मरीज हूँ दौड़ भाग नहीं कर सकता । घर बैठे राय दे सकता हूँ , पैसा तो अब रहा ही नहीं ।
किसान और मजदूर अशिक्षित और कम संसाधनों की वजह से मजबूर हो जाते हैं ।
ऐसे में समाज को नया नेतृत्व कैसे मिले ?
या ऐसे में उसी बैरी पिया पर फिर दिल न लाया जाए तो क्या किया जाए ?
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