शनिवार, 13 अप्रैल 2013

......जानते हैं

सअले अहले हुकूमत जानते हैं ।
कौन क्या, किसकी है कीमत जानते हैं ॥
आप नाहक ही यहाँ चिल्ला रहे हो ।
चुप रहो !  सब माबदौलत जानते हैं 
आप माथे की शिकन को क्या पढेंगे ?
आप बस लिक्खी इबारत जानते हैं ॥
मुफलिसी को आप तोहमत दे रहे है ।
हम मगर इसकी हरारत जानते हैं ॥
मुझको तेरी आदतें बतला रहे हैं ।
तुझको जो मेरी बदौलत जानते हैं ॥ 
आज भी तनहा हूँ मैं, उनसे बिछुड़ कर ।
और वो मेरी शराफत जानते हैं ॥ 
आशनाई है मुसलसल रौशनी से  ।
हम अंधेरों की सियासत जानते हैं ॥
शौक से करिए शिकायत आप लोगो ।
हाकिमों की वो रवायत जानते हैं ॥ 
जुर्म करते हैं मगर फंसते नहीं हैं ।
वो तरीका ए अदालत जानते हैं ॥
आज हर लीडर को देते हैं भरोसा
लोग अब मौका नजाकत जानते हैं ॥

कापीराईट @ अरुण कुमार तुरैहा 

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