कौन क्या, किसकी है कीमत जानते हैं ॥
आप नाहक ही यहाँ चिल्ला रहे हो ।
चुप रहो ! सब माबदौलत जानते हैं
आप माथे की शिकन को क्या पढेंगे ?
आप बस लिक्खी इबारत जानते हैं ॥
मुफलिसी को आप तोहमत दे रहे है ।
हम मगर इसकी हरारत जानते हैं ॥
मुझको तेरी आदतें बतला रहे हैं ।
तुझको जो मेरी बदौलत जानते हैं ॥
आज भी तनहा हूँ मैं, उनसे बिछुड़ कर ।
और वो मेरी शराफत जानते हैं ॥
आशनाई है मुसलसल रौशनी से ।
हम अंधेरों की सियासत जानते हैं ॥
शौक से करिए शिकायत आप लोगो ।
हाकिमों की वो रवायत जानते हैं ॥
जुर्म करते हैं मगर फंसते नहीं हैं ।
वो तरीका ए अदालत जानते हैं ॥
आज हर लीडर को देते हैं भरोसा
लोग अब मौका नजाकत जानते हैं ॥
कापीराईट @ अरुण कुमार तुरैहा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें