आरक्षण का तात्पर्य गरीबी उन्मूलन कदापि नहीं

आरक्षण
का वास्तविक उद्देश्य अस्पर्श्य एवं शूद्र जातियों की मूल आजीविका में परिवर्तन लाते
हुए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से संपन्न बनाना हैं। यह एक संविधान सम्मत व्यवस्था है ।
यह शूद्रों को गाँधी अंबेडकर समझौते के तहत भारत में रहने का ईनाम हैं ,
शूद्रों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने की गारंटी है और व्यवस्था में
भागेदारी की शर्त है । निसंदेह आरक्षण ने अपनी उपयोगिता को दलितों के मध्य प्रमाणित किया है और पिछले 60 वर्षों में इसके सुखद और प्रत्याशित परिणाम भी परिलक्षित हुये हैं । आज भी आरक्षण उतना ही प्रासंगिक है जितना पचास वर्ष पूर्व था। इसके बिना आज भी भारत की राज सत्ता और कार्यपालिका में
शूद्रो का प्रतिनिधित्व असंभव है । सदियों से उपेक्षा और अपमान का दंश झेलने वाले वर्गों को वर्तमान आरक्षण व्यवस्था ने ही सर उठाकर ससम्मान जीवन जीने का अवसर प्रदान किया हैं ।
कुछ लोग इसे गरीबी मिटाने का उपाय बताते हुए इसे गरीबों को प्रदान करने की वकालत करते हैं । जबकि आरक्षण विशुद्ध रूप से भागेदारी है । यह भूखे लोगों के लिए नहीं है ......यह उपेक्षित, उत्पीडित ,वंचित ,शोषित और बहिष्कृत लोगों को राष्ट्र की मुख्य धारा में समाहित करने का एकमेव उपाय हैं । यह गरीबी मिटाने का नहीं बल्कि शासन और
प्रशासन में भागेदारी दिलाने का एक मात्र जरिया हैं । यह सदियों से घोर जातिवादी अन्याय का शिकार लोगों के हित में राज्य की ऐसी व्यवस्था है जिसका लक्ष्य उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करते हुए सामाजिक स्तर पर बराबरी प्रदान करना हैं ।
गरीबी उन्मूलन का कोई
भी कार्यक्रम आरक्षण का मुकाबला कदापि नहीं कर सकता । इसमें आर्थिक रूप से संरंक्षण देते हुए छुआछुत की भावना को मिटाने की संकल्पना सन्निहित हैं । वास्तव में जो लोग इसे गरीबी मिटाने का जरिया बनाकर पेशकरना चाहते हैं वे असल में इसके स्वरुप को बदलकर समाप्त कर देना चाहते हैं। सवर्ण को किसी भी रूप में मिला संरक्षण उसके जातीय दंभ को ही विस्तार प्रदान करेगा और जातपांत की खाई को और चौड़ा करेगा ।
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