मैं राहुल से बात करूंगा, दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर से निकल पड़ा हैं, चलने को अंगारों पर ॥
आरक्षण अधिकार हमारा, कब तक हमें दबाओगे ।
थोथी सत्ता के बलबूते , कब तक हमें हटाओगे॥
जिस दिन मछुआ कमर बाँध कर, सड़कों पर आ जायेगा ।
सुनो सोनिया ! दस वर्षों का, महल वहीँ ढह जाएगा ॥
मनमोहन इल्जाम न रखना, फिर कोई मछुआरों पर ।
मैं राहुल से बात करूंगा , दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर निकल पड़ा हैं , चलने को अंगारों पर ॥
जिस सरकार में झूठ बोलकर, नेता काम चलाते हैं ।
जिस सरकार में पद पर बैठे, जिम्मेदार डराते है ॥
उस सरकार में हक की बोली, लगता है दब जायेगी ।
पक्षपात और राग द्वेष की, बात भला कब जायेगी ॥
कब तक सत्ता टिकी रहेगी, वादों के आधारों पर ।
मैं राहुल से बात करूंगा , दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर से निकल पड़ा हैं, चलने को अंगारों पर ॥
जिन पर है दायित्व सदन का, वाहन चोर- उचक्के हैं ।
अधिकारी भी शपथ भूलकर, अपनी जात के पक्के हैं ॥
आवाजों की फ़ाइल बनाकर, ढेर लगायें बैठे हैं ।
सचिवालय में जातिवाद का, फ़र्ज़ निभाये बैठे हैं ॥
सरकारी संरक्षण दिखता ,मुझको इन मक्कारों पर ।
मैं राहुल से बात करूंगा , दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर से निकल पड़ा हैं, चलने को अंगारों पर ॥
मछुआ घर से निकल पड़ा हैं, चलने को अंगारों पर ॥
आरक्षण अधिकार हमारा, कब तक हमें दबाओगे ।
थोथी सत्ता के बलबूते , कब तक हमें हटाओगे॥
जिस दिन मछुआ कमर बाँध कर, सड़कों पर आ जायेगा ।
सुनो सोनिया ! दस वर्षों का, महल वहीँ ढह जाएगा ॥
मनमोहन इल्जाम न रखना, फिर कोई मछुआरों पर ।
मैं राहुल से बात करूंगा , दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर निकल पड़ा हैं , चलने को अंगारों पर ॥
जिस सरकार में झूठ बोलकर, नेता काम चलाते हैं ।
जिस सरकार में पद पर बैठे, जिम्मेदार डराते है ॥
उस सरकार में हक की बोली, लगता है दब जायेगी ।
पक्षपात और राग द्वेष की, बात भला कब जायेगी ॥
कब तक सत्ता टिकी रहेगी, वादों के आधारों पर ।
मैं राहुल से बात करूंगा , दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर से निकल पड़ा हैं, चलने को अंगारों पर ॥
जिन पर है दायित्व सदन का, वाहन चोर- उचक्के हैं ।
अधिकारी भी शपथ भूलकर, अपनी जात के पक्के हैं ॥
आवाजों की फ़ाइल बनाकर, ढेर लगायें बैठे हैं ।
सचिवालय में जातिवाद का, फ़र्ज़ निभाये बैठे हैं ॥
सरकारी संरक्षण दिखता ,मुझको इन मक्कारों पर ।
मैं राहुल से बात करूंगा , दिल्ली के चौराहों पर ।
मछुआ घर से निकल पड़ा हैं, चलने को अंगारों पर ॥
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