सोमवार, 22 अप्रैल 2013

प्रश्न धीमी आंच पर सेके हुए हैं.....!!

झूठ का हम आवरण पहने हुए हैं ।
क्या करें ...हम जान कर बहरे हुए हैं ॥  
आर्थिक मुद्दों पे चिंतन कर रहे है ।
कौन कहता है कि वो लेटे हुए हैं ॥
सुर्ख़ियों में आई क्या दिल्ली की दहशत ।
गाँव के बच्चे भी अब सहमे हुए हैं ॥
आज महिला संगठन की है समीक्षा ।
आप सर्किट हाऊस में ठहरे हुए हैं ॥
रख दिए बच्चों ने खुद ही दाम सुनकर ।
अब खिलौने इस क़दर महंगे हुए हैं ॥
हम यहाँ बेजान सी मूरत के आगे ।
चंद सिक्कों की तरह फेंके हुए हैं  ॥
लाजमी है स्वाद मुद्दों में हमारे ।

प्रश्न धीमी आंच पर सेके हुए हैं ॥
आपका अनुरोध फिर से मान लेता ।
बंदिशें कुछ हैं, जो बस रोके हुए हैं ॥
बर्फ रिश्तों पर जमीं पिघली हुयी हैं । 

और वो भी आजकल बदले हुए हैं ॥

कापी राईट @अरुण कुमार तुरैहा

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