दैनिक जीवन में हम प्रायः देखते हैं कि किसी चलती रेलगाड़ी में कोई भागता
हुआ आता है किसी डिब्बे में चढने का प्रयास करता है तो उस डिब्बे में
पहले से मौजूद भीड़ उसे घुसने से रोकना चाहती है ,दरवाजे पर डिब्बे में घुसने से रोकने वालों में सबसे आगे हो जाता है ।
पहरेदार की तरह
खड़े लोग रास्ता नहीं देते और कहते हैं .....कहाँ चढ़े चले आ रहे हो भाई ?
देखते नहीं पहले से फुल हैं .....आदमी के ऊपर आदमी चढ़ा हुआ है ..कतई जगह
नहीं है ...पीछे निकल जाओ ..पूरे पूरे डिब्बे खाली है । लेकिन वह व्यक्ति
नहीं मानता है और आखिरकार चिरौरी कर जबरदस्ती घुसने में कामयाब हो जाता है
...फिर आगे चल कर उसे वहीँ सीट भी मिल जाती हैं । किन्तु आश्चर्य जनक से
अगले स्टेशन से वह व्यक्ति भी डिब्बे में घुसने वालों का विरोध करने लगता
है और
सार यह है ....हम स्वयं आरक्षण तो चाहते हैं लेकिन दूसरो के आरक्षण का विरोध करते हैं । सभी हिन्दू लोग ... दलित ईसाईयों और मुसलमानों के आरक्षण का विरोध करते हैं । सवर्ण हिन्दू .... दलितों और पिछड़ों के आरक्षण का विरोध करते हैं , जबकि इसके उलट वे स्वयं आर्थिक रूप से आरक्षित होना चाहते हैं । इसी प्रकार दलितों में साठ साल से आरक्षण का आनंद उठा रही एक दो जातियों किसी अन्य जाति को किसी भी कीमत पर नहीं घुसने देना चाहती । पिछड़ी जाति की ताकतवर जातियां ..अति पिछड़ों को अलग से कोई कोटा नहीं देना चाहती । दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों के आरक्षण का विरोध करने करने वाली सवर्ण नारियां सबसे पहले महिला आरक्षण का लुत्फ़ चाहती हैं ...अर्थात जो स्वयं आरक्षित है या होना चाहता है वह दुसरे के आरक्षण पर विरोधी सुर निकालता है और उसे गैरवाजिब बताता है ।
मजेदार बात ये है कि अपने आरक्षण के समर्थन में और दुसरे के आरक्षण के विरोध में सबके अपने अपने दावे और प्रतिदावे हैं । अपने आरक्षण पर सबके सुर एक समान हैं ...कोई अंतर नहीं । एक सवर्ण दलितों के आरक्षण पर मुंह बिचका कर कहता है ....."सालों को सब कुछ फ्री में चाहिए , बिना मेरिट में आये नौकरी चाहते हैं "। आश्चर्य जनक रूप से सवर्ण की यही भाषा दलितों के आरक्षण का मजा ले रही मायावती की जाति के लोग ....उन वंचित और उपेक्षित दलितों से बोलते है जिन्हें आरक्षित सूची में होने के बाद भी साठ सालों से कुछ नहीं मिला .....यानि मेरिट राग ....शैक्षिक गायन ।
सार यह है ....हम स्वयं आरक्षण तो चाहते हैं लेकिन दूसरो के आरक्षण का विरोध करते हैं । सभी हिन्दू लोग ... दलित ईसाईयों और मुसलमानों के आरक्षण का विरोध करते हैं । सवर्ण हिन्दू .... दलितों और पिछड़ों के आरक्षण का विरोध करते हैं , जबकि इसके उलट वे स्वयं आर्थिक रूप से आरक्षित होना चाहते हैं । इसी प्रकार दलितों में साठ साल से आरक्षण का आनंद उठा रही एक दो जातियों किसी अन्य जाति को किसी भी कीमत पर नहीं घुसने देना चाहती । पिछड़ी जाति की ताकतवर जातियां ..अति पिछड़ों को अलग से कोई कोटा नहीं देना चाहती । दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों के आरक्षण का विरोध करने करने वाली सवर्ण नारियां सबसे पहले महिला आरक्षण का लुत्फ़ चाहती हैं ...अर्थात जो स्वयं आरक्षित है या होना चाहता है वह दुसरे के आरक्षण पर विरोधी सुर निकालता है और उसे गैरवाजिब बताता है ।
मजेदार बात ये है कि अपने आरक्षण के समर्थन में और दुसरे के आरक्षण के विरोध में सबके अपने अपने दावे और प्रतिदावे हैं । अपने आरक्षण पर सबके सुर एक समान हैं ...कोई अंतर नहीं । एक सवर्ण दलितों के आरक्षण पर मुंह बिचका कर कहता है ....."सालों को सब कुछ फ्री में चाहिए , बिना मेरिट में आये नौकरी चाहते हैं "। आश्चर्य जनक रूप से सवर्ण की यही भाषा दलितों के आरक्षण का मजा ले रही मायावती की जाति के लोग ....उन वंचित और उपेक्षित दलितों से बोलते है जिन्हें आरक्षित सूची में होने के बाद भी साठ सालों से कुछ नहीं मिला .....यानि मेरिट राग ....शैक्षिक गायन ।
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