मंगलवार, 30 जुलाई 2013

नए सामाजिक नामकरण और सामाजिक परिवर्तन

दि कालीन भारत का मूल निवासी समाज विदेशी आक्रान्ताओं का सदैव शिकार हुआ और विदेशी आक्रमणकारियों के हमले से यहाँ की मूल निवासी जातियों की संस्कृति , भाषा, कला ,साहित्य , वेशभूषा ,बर्तन ,भवन निर्माण कला और संगीत तक प्रभावित होते गए।   आर्यों के हमले से लेकर शक ,हूण, मंगोल ,मलेच्छ , यवन और अंग्रेजों तक ने हमारी संस्कृति को न केवल प्रभावित किया बल्कि उसे बदल भी दिया

 विदेशी लोगों के आने पर सबसे पहला परिवर्तन बोली पर पड़ा। नई भाषा की वजह से लोगों के उच्चारण बदलते गए और नए शब्दों का चलन समाज में बढ़ गया फलस्वरुप एक ही शब्द के कई समानार्थी ,समवाची अथवा पर्यायवाची विकसित होते गए। बाद में उनके रूप और भी ज्यादा बिगड़ने लगे और अपभ्रंशों की भरमार होती गयी।
यहीं से मछुआ जातियों के नामकरण में मल्लाह , कहार जैसे विदेशी शब्द प्रचलन में आये जो हमारी मूलभूत निषाद संस्कृति के प्राचीन नामों, जिनमे धीवर, कैवर्त , केवट, मांझी, मछुआ प्रमुख थे , पर भारी पड़ते गए और मूल नामों में समाहित होने के बजाय उन्हें परिभाषित कर उनका प्रतिनिधित्व करने लगे। कालांतर में इनमे शिक्षित-अशिक्षित,ग्रामीण -नगरीय, परिष्कृत -देशज ,तत्सम -तद्भव के विभेद भी सामने आते गए और मछुआ समाज लगभग सौ नए नामों से अपनी पहचान गढ़ता गया। वास्तव में समाज के ये नए नाम भारत के बदलते नेतृत्व की भाषा के अनुसार ही ज्यादा प्रचलित हुए। 

बाद में विषम पारिस्थैतिक एवं आर्थिक परिस्थितियोंवश परम्परागत व्यवसायों  के बंटवारे अथवा आजीविका हेतु नए रोजगार के साधन अपनाने के कारण भी मछुआ समाज को नए नामों से जाना गया।  हालाँकि इन नए नामों का परिवर्तन भी समाज पर पड़ा और समाज में बदलाव भी द्रष्टिगोचर हुआ | कहीं नए नामों के फलस्वरूप स्थितिजन्य सामाजिक बदलाव देखा गया तो कहीं सामाजिक स्तरोन्न्यन नए नामकरण की वजह बना | निरंतर परिवर्तनशील भारतीय सामाजिक व्यवस्था में समाज के हर स्तर में परिवर्तन देखे गए जिसकारण जातियों के बड़े समूह छोटे समूहों में विभक्त होते गए और हर बार एक नए नाम के साथ स्वतंत्र पहचान बनाते गए। उपजातियाँ विकसित होने लगी और मूल जातियों से प्रथक आस्तित्व बनाती गयीं। इसके दो कारण रहे ,

1 अस्पर्शता यानि अन्त्यज जातियों के घृणित पेशेजनित लोकव्यवहार सम्बन्धी निर्योग्यता।
2 औद्योगिककरण के फलस्वरूप मूल आजीविका में आये परिवर्तन।

अब तक गोत्रहीन कहे जाने वाले समाज भी अब अपना गोत्र दूंढ लाये और समाज के नए नामकरणों की दिशा देखादेखी तय होने लगी

सोमवार, 29 जुलाई 2013

सम्राट अशोक और मछुआ समुदाय

12 वीं शताब्दी में कल्हण कृत राजतरंगिणी में स्पष्ट उल्लिखित है कि सम्राट अशोक की पांच पत्नियाँ थी जिनमे 1 -देवी ,2-आसन्दिमित्रा , 3-तिष्यरक्षिता , 4-पद्मावती और 5- कौरवाकि जालौक थी । इनमे  कौरवाकि जालौक कलिंग राज्य की मछुआ समुदाय की धीवर जाति की थी । धीवर कन्या के सौन्दर्य पर मोहित होकर अशोक ने उसे मान सम्मान सहित अपनी रानी बनाया ,  अशोक को अपनी इस धीवर रानी से तीवर (तीव्र ) नामक पुत्र की प्राप्ति हुई
फिल्म अभिनेता शाहरुख़ खान द्वारा अभिनीत फिल्म अशोका दी ग्रेट में करीना कपूर ने मछुआ कन्या अशोक पत्नी कौरवाकि जालौक की भूमिका को परदे पर जीवंत किया था ।
इसके अतिरिक्त इतिहास में पूरण कश्यप और कश्यप मातंग भिक्षुक का भी जिक्र मिलता है । जिनके बारे में  इतिहास में लिखा है कि जैन दर्शन से प्रभावित पूरण कश्यप घोर अक्रियावादी था और उसने कर्मफल सिद्धांत का विरोध किया । उसके अनुसार मनुष्य के अच्छे बुरे कर्मों का कोई फल नहीं होता । वहीँ बौद्ध मत से सम्बद्ध कश्यप मातंग भिक्षुक का बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन जाने का उल्लेख भी है ।
हर्यक वंश के अजातशत्रु के शासन काल में प्रथम बौद्ध महासंगीति राजगृह ,बिहार में संपन्न हुयी थी जिसकी अध्यक्षता महाकश्यप भिक्षुक ने की ...हालाँकि इनमें से किसी भी कश्यप का वर्तमान मछुआ वंशजों से सम्बन्ध प्रमाणित नहीं हो सका है ।

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

ऐतिहासिक भूल या अक्षम्य अपराध ..!

च बात तो ये है कि आरक्षण केवल अछूतों के लिए दस वर्ष हेतु ही घोषित किया गया था । उस समय पिछडा वर्ग या जाति जैसी संकल्पनाएँ नहीं थी । 1931 की जनगणना के पश्चात पूना पैक्ट के आधार पर 1933 में Untouchable एंड Depressed Castes की सूची तैयार की गयी और उन्हें समुचित प्रतिनिधित्व हेतु सरकारी सेवाओं में आरक्षण अनुमन्य किया गया । संविधान आदेश 1950 जो कि अनुच्छेद 341 (1 ) के आधार पर पारित किया गया था , उसमे अनेकों जातियों ने शामिल होने अथवा निष्कासन का प्रत्यावेदन दिया .......कुछ जातियों ने तो उस समय इस आदेश का इतना विरोध किया कि संसद भवन के आगे धरना प्रदर्शन व हड़ताल कार्यक्रम तक कर डाले । अत्यंत खेद जनक रहा कि इसके विरोध में कश्यप राजपूत सभा पंजाब सबसे आगे रही। यादव, कुर्मी, लोध ,नाई ,हलवाई गडरिया गूजर जातियों ने भी प्रस्तावित आरक्षण में अपनी जातियों को भंगी ,चूहड़ा ,चमार, खटिक ,नट , धोबी के साथ रखे जाने पर घोर आपत्ति जताई और अपने आप को उस सूची से निकलवा कर ही माने । इस आपत्ति का प्रमुख कारण इन जातियों की तथाकथित राजपूती मर्यादा , फर्जी और तथ्यहीन राजशाही प्रष्टभूमि की झूठी शोबाजी रही ।
किन्तु पांच वर्षों में इन पिछड़े वर्गों की आँखें फटी की फटी रह गयीं जब चूहड़े ,चमार अफसर बनकर इनके सरों पर सवार हो गए और झोलाछाप फर्जी ठाकुरों को उन्हें उल्टा सलाम बजाना पड गया । अब खिसियाये पिछड़े भी अपने लिए आरक्षण चाहते थे सो काका कालेलकर आयोग बनाकर सरकारों ने कमीशन ..कमीशन का खेल खेला और ये खेल मंडल आयोग लागू होने तक बदस्तूर जारी रहा । सच्चाई तो ये है हमारा समाज मंडल आयोग की लड़ाई के वक़्त भी आराम से घर में लेटा था ...और यादव - कुर्मी जातियां अपने अधिकारों और आरक्षण की लड़ाई सड़कों पर लड़ रही थी .....तब  पिछड़ों की इस लड़ाई में अनुसूचित जातियों का भी सहयोग रहा था ...क्योकि सवाल आरक्षण व्यवस्था के आस्तित्व का था ।
अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है कि 1949 -1950 में कश्यप समाज के पुरोधाओं द्वारा किये गये अपराध से समाज से छूटी ट्रेन आज भी हमारे हाथ नहीं आ सकी हैं । 

रविवार, 14 जुलाई 2013

हमारे युवा कब महसूस करेंगे ?

पुरातात्विक विश्लेषकों के अभिमतों की विवेचना कर मछुआ समुदाय का इतिहास लोगों के सामने रखों तो असलियत स्वीकारने में हिचकते है ...कहते हैं हम तो राजपूत थे । इतिहासकारों के सौ डेढ़ सौ साल पुराने तथ्यों का उल्लेख कर भारत की आदि निवासी मछुआ जाति पर कुछ लिखो तो कहते हैं .... हमारे दादे परदादे क्या थे ...हमें नहीं पता ....हम कश्यप हैं और महर्षि कश्यप की संतान हैं । हमारी साठ हजार परदादियाँ थी । धीवर, कहार, केवट ,मल्लाह के नाम से चिढने वाला समाज आज अपनी असलियत को भूल आधुनिकता की तथाकथित चादर तान सो जाना चाहता हैं । युवा कहते हैं ..हमें आरक्षण की क्या जरूरत हैं ..हम अपनी मेहनत से ही सब कुछ पाना चाहते हैं । आरक्षण तो भंगी और चमार या उनके समकक्ष होने की पहचान है । ज्यादा कहो ..तो कहते हैं ....हमें OBC का आरक्षण मिल तो रहा है ...क्या परेशानी है ?
विरोध नहीं करने की आदत ने हमारे अन्दर ही हमारे शत्रु पैदा कर दिए है ...जो विरोध करने वाले के पीछे लग जाते हैं और आपस में टांग खींच कर खुश होते हैं । सरकारें मनगढ़ंत निर्णय कर हमें और नुक्सान पहुंचा रही हैं ...हम एकता का ही रोना रोते रहे ।
वस्तुतः निषाद, केवट ,मांझी ,  मल्लाह , नाखुदा , जहाजी , एक ही शब्द हैं, लिहाजा एक जाति हैं । जबकि वास्तव में ये शब्द भाषाई एतबार से अलग है । निषाद संस्कृत का शब्द है ..जबकि केवट और मांझी उसी के हिंदी रूपांतर हैं ..इसी प्रकार मल्लाह उर्दू का शब्द हैं जबकि नाखुदा और जहाजी इसी के फारसी रूपान्तर है । इसी को अंग्रेजी में बोटमैन या फैरीमैन कहते हैं तो क्या एक ही अर्थ वाले सभी शब्द अलग अलग हो गए ? और अलग अलग जाति या प्रकार हो गये ... बिखरते गये ।
इसी प्रकार कहार शब्द उर्दू है जो कुलीगिरी काम काम करने वालों के लिए प्रयुक्त किया जाता था ..जिसे अमीरों ने पालकियों के वाहकों से जोड़ दिया । वास्तव में ये भी संस्कृत के स्कंधकार से बना हैं । इसी प्रकार धीवर धैवर्त से उद्धरत ..तत्पश्चात धीमर ,झीमर झिम्मर चिम्मड़ के रूप में अपभ्रंशित हैं । सरकारों में बैठे आठवाँ पास बाबू इन्हें अलग अलग मान कर क्रम संख्याएं बाँट रहे हैं ....और नित नई व्याख्याएं पेशकर रहे हैं । समाज बंटा जा रहा हैं .....हमारे लोग अपना अतीत राजवंशों और रजवाड़ों में तलाशते घूम रहे हैं । 

मेरे सामने टीवी पर मोदी का पुणे के फर्ग्युसन कालेज में दिया व्याख्यान लाइव चल रहा है ...चीन का भय दिखा कर ही सही ......मोदी जी लोगों को एक जुट करने का आह्वान कर रहे हैं ...और इसमें युवाओं को महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं ..विश्व व्यापार में भारत की ऐतिहासिकता और हमारी प्राचीन मरीन इंजीनियरिंग का हवाला  देकर मोदी भाई ताली बजवा रहे हैं ....पता नहीं हमारे युवा मछुआ समाज का गौरव और एकजुटता की आवश्यकता कब महसूस करेंगे ?

शनिवार, 13 जुलाई 2013

कांग्रेस सन सैतालिस से हमें ठग रही है !


क्या मछुआरों को उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्ताव पर SC आरक्षण मंजूर करते ही केंद्र सरकार गिर जायेगी .........श्री प्रकाश जायसवाल को इतना बड़ा झूठ बोलने तनिक भी शर्म नहीं आई ...और बेहयाई से मछुआ समुदाय को ब्लैक मेल करते हुए मंत्री जी पूर्ण बहुमत की सरकार हेतु वोट मांगते हुए कहते हैं कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाओ तो SC स्टेटस मिलेगा । अगर ये सच है कि मछुआरों को SC  आरक्षण देते ही केंद्र सरकार गिर जायेगी तो कांग्रेस के इस मंत्री को उन लोगों के नाम भी उजागर करने चाहिए जो मछुआ आरक्षण पर कांग्रेस सरकार का विरोध कर रहे हैं और सरकार गिराने की हैसियत में भी हैं । उनके नाम और चेहरे सामने आ जायेंगे तो मछुआ समुदाय को आरक्षण विरोधियों से जूते की चोट पर सड़कों पर निबटने में आसानी होगी ।
दरअसल कांग्रेस और उसके मंत्री फर्जी बात बोलने में और मछुआ जातियों को गुमराह करने में महारत रखते हैं और हमारे लोगों को बेवकूफ समझते हैं । ...वे भूल रहे हैं कांग्रेस ने इस देश में 54 साल राज किया है और सदैव मछुआरों को धोखा ही दिया हैं ।
गोंड ,तुरैहा खरवार , मझवार और बेलदार को SC रिजर्वेशन महज नाम भर के लिए दिया । 31 अगस्त 1952 को अपराधी जाति अधिनियम 1871 के विखंडन के उपरान्त जरायमपेशा के तमगे से आजाद हुयी धीमर, केवट ,मल्लाह बिंद जातियों को उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति में आज तक शामिल नहीं किया जबकि उसके साथ दर्ज रही भांतु , बाबरिया , बेडिया, नट , चिड़ीमार ,बहेलिया , साँसी सहारिया को तत्काल ही SC सूची में शामिल कर लिया गया । कांग्रेस हमेशा से ही मछुआ जातियों के प्रति अपना दुश्मन नजरिया प्रदर्शित करती आई हैं । वस्तुतः इसके पीछे कांग्रेस नीत तथाकथित आजादी की लड़ाई का श्रेय लेने की होड़ रही जिसमे मछुआ समुदाय की जातियों ने राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस और गाँधी की चाटुकारिता करने से इनकार कर दिया था और उग्र दल के साथ रहे ...नेहरु ने हमेशा ही इन जातियों को समाज विरोधी माना और वे इन्हें मुख्यधारा से दूर रखने के हिमायती रहे .....
गाहे बगाहे कांग्रेस नेहरु गाँधी की उसी सड़ी गली परंपरा को कही न कहीं आज भी ढोने का प्रयास करती नजर आती हैं  ।

शनिवार, 6 जुलाई 2013

आप भी यहाँ से विलुप्त हो जाएँ .....।

 दुनिया के किसी शब्द कोष में मांझी ,मल्लाह और केवट की व्याख्या भिन्न नहीं है और सभी एक दुसरे के पर्यायवाची हैं । लेकिन हमारी सरकारें इन्हें अलग अलग मानती हैं । समाज कल्याण के एक बाबू चुटकुला सुनाते हुआ कहते हैं कि बाबू की मारी हलाल होती है । यानि बाबू जो चाहे कर सकता हैं ...लिख सकता हैं । यह देश और इसके अफसर बाबुओं की सलाह पर चलते हैं .......अफसर अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करते , फंसने से डरते हैं न । बाबूजी कहते हैं ......हमारी मर्जी ...हम जैसी चाहें व्याख्या सचिवालय से निकालें ...जिले के अफसर उसकी पटरी बनाकर रेल दौड़ाते नजर आएंगे । हम Majhi को मजही लिखेंगे ......कोई हमारा क्या उखाड लेगा । हम माँझी और मजही का भेद दुनिया को सिखायेंगे ....कोई हमारा क्या कर लेगा ? हम अंग्रेजी में लिखे MAJHI शब्द का उच्चारण भूलकर भी माझी नहीं करेंगे ...जब भी लिखेंगे मजही लिखेंगे ? हमने परीक्षा पास की है ..कोई ऐसे तो थोड़े बैठ गए हैं इस कुर्सी पर ...संविधान की जनकारी है हमको । दुसरे बाबू पान की पीक थूकते हुए बोले ......केवट और मल्लाह अलग अलग है ....हम प्रमाणित कर सकते हैं । हम कहे कैसे ? तो बतियाने लगे ...केवट गरीब होता है सो अकेला नैया खेता हैं ...यानि उसकी नाव छोटी होती है ....इस प्रकार केवट एक इकाई है अतः मल्लाह से प्रथक हैं । जबकि मल्लाह समूह में काम करते हैं ...मल्लाहों पर बड़ी बड़ी नावें होती है जिसे दस बारह लोग खेते हैं । समूह में रहने के कारण ये लोग चोर उचक्कई भी खूब करते हैं ....नाव खरीदना आसान काम नहीं है ....जाहिर सी बात है मल्लाह पेशा करने वाली मल्लाह एक मालदार कौम हुयी । मांझी को कोई आरक्षण नहीं मिलेगा .......मिलेगा भी तो केवट वाला OBC का .......। मजही के आरक्षण से दूर रहो सालो।
हमने कहा तुम्हारा दिमाग खराब है । वो बोले आप MBBS डाक्टर होते तो आपका तर्क मान लिया जाता ...लेकिन आप सडकछाप हो ..सडक पर जाओ और चिल्लाओ ....।
हमने कहा तुमभी तो मोची हो .....चमार बने बैठे हो ....मोची जाति पिछड़ी जाति में आती है ...चाहे तो लिस्ट देख लो OBC की यूपी वाली । जब पिछड़ी जाति का मोची ...चमार कहलवा कर SC का आरक्षण झटक सकता है तो मल्लाह को मझवार क्यों नहीं माना जा सकता है ? वे बोले मझवार यूपी में नहीं पाए जाते ....हमने कहा तो कहाँ पाए जाते हैं .....? कहते हैं द्रविड़ियन कास्ट थी ....विलुप्त हो गयी ।
आप भी यहाँ से विलुप्त हो जाएँ .....। फिर चार पांच बाबू आस्तीने चढ़ाये ....मरने मारने का जज्बा लिए आ धमके ...मुझे शौचालय में घुस कर जान बचानी पड़ी ।