मंगलवार, 16 जुलाई 2013

ऐतिहासिक भूल या अक्षम्य अपराध ..!

च बात तो ये है कि आरक्षण केवल अछूतों के लिए दस वर्ष हेतु ही घोषित किया गया था । उस समय पिछडा वर्ग या जाति जैसी संकल्पनाएँ नहीं थी । 1931 की जनगणना के पश्चात पूना पैक्ट के आधार पर 1933 में Untouchable एंड Depressed Castes की सूची तैयार की गयी और उन्हें समुचित प्रतिनिधित्व हेतु सरकारी सेवाओं में आरक्षण अनुमन्य किया गया । संविधान आदेश 1950 जो कि अनुच्छेद 341 (1 ) के आधार पर पारित किया गया था , उसमे अनेकों जातियों ने शामिल होने अथवा निष्कासन का प्रत्यावेदन दिया .......कुछ जातियों ने तो उस समय इस आदेश का इतना विरोध किया कि संसद भवन के आगे धरना प्रदर्शन व हड़ताल कार्यक्रम तक कर डाले । अत्यंत खेद जनक रहा कि इसके विरोध में कश्यप राजपूत सभा पंजाब सबसे आगे रही। यादव, कुर्मी, लोध ,नाई ,हलवाई गडरिया गूजर जातियों ने भी प्रस्तावित आरक्षण में अपनी जातियों को भंगी ,चूहड़ा ,चमार, खटिक ,नट , धोबी के साथ रखे जाने पर घोर आपत्ति जताई और अपने आप को उस सूची से निकलवा कर ही माने । इस आपत्ति का प्रमुख कारण इन जातियों की तथाकथित राजपूती मर्यादा , फर्जी और तथ्यहीन राजशाही प्रष्टभूमि की झूठी शोबाजी रही ।
किन्तु पांच वर्षों में इन पिछड़े वर्गों की आँखें फटी की फटी रह गयीं जब चूहड़े ,चमार अफसर बनकर इनके सरों पर सवार हो गए और झोलाछाप फर्जी ठाकुरों को उन्हें उल्टा सलाम बजाना पड गया । अब खिसियाये पिछड़े भी अपने लिए आरक्षण चाहते थे सो काका कालेलकर आयोग बनाकर सरकारों ने कमीशन ..कमीशन का खेल खेला और ये खेल मंडल आयोग लागू होने तक बदस्तूर जारी रहा । सच्चाई तो ये है हमारा समाज मंडल आयोग की लड़ाई के वक़्त भी आराम से घर में लेटा था ...और यादव - कुर्मी जातियां अपने अधिकारों और आरक्षण की लड़ाई सड़कों पर लड़ रही थी .....तब  पिछड़ों की इस लड़ाई में अनुसूचित जातियों का भी सहयोग रहा था ...क्योकि सवाल आरक्षण व्यवस्था के आस्तित्व का था ।
अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है कि 1949 -1950 में कश्यप समाज के पुरोधाओं द्वारा किये गये अपराध से समाज से छूटी ट्रेन आज भी हमारे हाथ नहीं आ सकी हैं । 

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