शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

शास्त्री जी और गुमनाम मल्लाह

भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में एक कथा का जिक्र लोग अक्सर करते हैं । कहा जाता है शास्त्री जी अत्यंत निर्धन थे लेकिन विषम परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए थे । वे रोजाना नदी पार कर स्कूल जाते , एक बार उनके पास उनके पास मल्लाहों को देने के लिए पैसे नहीं थे तो उन्होंने तैर कर नदी पार की । इतने स्वाभिमानी थे लाल बहादुर शास्त्री जी !
………ये कथा अधूरी है। …इसके बाद की कथा का जिक्र इतिहास में जान बूझकर नहीं किया गया । ये सत्य है कि शास्त्री जी का बचपन अत्यंत विषम परिस्थितियों में बीता और विपरीत आर्थिक हालात के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी । जहाँ तक तैर कर नदी पार करने का प्रसंग है, इसमें सच्चाई है कि वे रोजाना नदी पार कर स्कूल जाते , एक बार उनके पास मल्लाह को देने के लिए पैसे नहीं थे तो वे अपने बस्ते को सर पर बाँध कर गंगा में उतर गए। …मुगलसराय गंगाघाट के मल्लाहों को जब बालक के हौसले की जानकारी हुयी तो उन्होंने कहलवा दिया कि इस बालक (लाल बहादुर शास्त्री ) से ही नहीं बल्कि विद्यालय आने जाने वाले किसी भी बालक से मल्लाह उतराई नहीं वसूलेंगे । मल्लाहों के आपसी निर्णय का तेजी से पालन हुआ और मुगलसराय ही नहीं आसपास के सभी घाटों पर विद्यार्थियों की उतराई मुआफ़ कर दी गयी । लेकिन मल्लाहों के इस निर्णय को इतिहास में कहीं मान सम्मान नहीं मिला और गुमनाम नायकों की भाति वे इतिहास में बिसरा दिए गए ।

बुधवार, 21 अगस्त 2013

कांवड़ सेवा में हीरो … समाज के नाम पर जीरो

भी अभी सावन का महीना गुज़रा है । भोले शंकर के शिवालयों में गंगा का पवित्र जल लाकर अभिषेक करने वाले कांवरियों का हुज्जूम इस माह सड़कों हर तरफ पर दिखाई पड़ता हैं । मगर जो ताज्जुब इस बार हुआ वो पहले कभी नहीं देखा । हमारे मछुआ समाज के सैकड़ों युवा पुरेजोशोखरोश के साथ कांवरियों के स्वागत में डटे हुए थे । कुछ लोग तो महीनों पहले से चन्दा कर रहे थे ताकि जल लेकर आने वाले श्रद्धालुओं को बढ़िया शुद्ध दूध की काजू,बादाम,पिस्ता वाली खीर खिलाई जा सके , उन्हें ताजे मौसमी बेहतरीन फलों का भंडारा करने के लिए कुछ महानुभाव पूरे शहर की दुकाने तलाशे डाल रहे थे । हमारे युवा मोटर साइकिल पर भगवा ध्वज थामे मोहल्ले मोहल्ले दौड रहे थे ताकि महिलायें भारी संख्या में उपस्थित हों और मंगल आरती गायें । एक साहब तो देसी घी के चार छह टिन लिए घूम रहे थे कि कोई संस्था उन्हें उनसे ले ले । भोग भंडारे ,हलुआ पूड़ी सब्जी रायता का पूरा इंतजाम हमारे समाज के लोग लिए बैठे थे । समाज की ऊर्जा पूरे सावन कांवरियों पर व्यय हुई ,पैसा गया सो अलग …….मेरी समझ में यह नहीं आता…….यह समाज आरक्षण के नाम पर घर से क्यों नहीं निकलता । किसी मछुआ कार्यक्रम में खर्च करने पर जान क्यों निकलती है । दानियों के हाथ धर्म के नाम पर उदार हैं किन्तु जाति के नाम पर नाक भौं सिकोड़ते है । हालाँकि मैं भी वर्ष 2001 और 2003 में दो बार सौ किमी दूर गंगा घाट से काँवर लाकर स्थानीय मंदिर पर जिसे रामपुर नवाब ने बनवाया था , चढ़ा चुका हूँ ।  यों तो मैं गंगा के उदगम गौमुख सहित गंगोत्री यमनोत्री ,केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार ,मथुरा, चित्रकूट ,बालाजी राजस्थान ,उज्जैन महाकाल , काशी विश्वनाथ, वैष्णो देवी सहित हिमांचल की काँगड़ा देवी, चिंतपूर्णी, ज्वालादेवी ,चामुंडा देवी ,मैहर देवी मध्यप्रदेश सहित एक दर्जन शक्तिपीठ (ध्यान दें, सिद्धपीठ नहीं ) के दर्शन कर चुका हूँ लेकिन मेरा यह मानना है धर्म व्यक्तिगत विषय है सड़कों पर प्रदर्शन करने का नहीं । जाति के मामले में सामने आने से पोल खुलने का भय रहता है इसी लिए कई समाज बंधू जातीय आयोजनों से दूर रहते हैं किंतु धार्मिक आयोजनों में चौधरी की भूमिका और भामाशाह बनने को लालायित रहते हैं ।

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

दामाद बाबू !

का बे ! नासपीटो …….सब मिल गरियाए रहे हो दामाद बाबू को । बिलकुल सरम नाहीं , सब बिल्लात पगलाए गए हो……. सब भाजपाई झुठबे बोल रहा है और सब दौड़ाये लिए जा रहे दामाद बाबू को ! बख्शो बे । भारतीय संस्कृति में दामाद का मान सम्मान होता है भाई । पैर पूजे जाते हैं इनके । मुरादाबादी लोटा बेचने वाले दामाद साहब को कुछ पता भी नहीं है और लोग हैं कि बातें बना रहे है । दामाद बाबू घोटाला कैसे कर लेंगे ……सुना है वे तो कोई काम ही नहीं करते राहुल बाबा की तरह । अब जो आदमी कोई काम ही नहीं करता वो कमीशन कैसे खा जायेगा ?  रही बात जमीन की ……. तो सस्ता खरीदने या महंगा बेचने पर कोनऊ पाबंदी है का । लोकतंत्र है भाई देश में …… अजादी है सबको व्यापार करने की । गलत बात । दामाद जी का कुछ तो लिहाजा करो भजपईयो !
वास्तव में भारतीय संस्कृति में दामाद चाहे कितना ही निठल्ला क्यों न हो, पूजनीय होता है | सोनिया जी को लोग भले विदेशी कहें लेकिन उन्हें भारतीयों की इस परंपरा का गहराई से ज्ञान और भान है कि दामाद को कैसे सर आँखों पर बिठाया जाता है | जय हो!!!

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

ईद मुबारक

 
तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, जो मुग़लों के रखवाले थे |
तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, जो अकबर जी के साले थे ।1।

तुम उन्हें खिलाओ दूध सिंवई, जिनके पुरखे दरबारी थे ।
तुम मंगल गान करो उनका, जो बेटी के व्यापारी थे |2|

तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, सिंहासन बचा लिया जिसने |
केसरिया बाना मुस्लिम के, चरणों में झुका दिया जिसने |3|

तुम उन्हें खिलाओ दूध सिंवई, जिनके सब दावे टूट गए ।
मुगलों की सेना से रण में, जो क्षमा दान पर छूट गए ।4।

तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, जिनमे ठाकुर अंदाज नहीं ।
तुर्कों से डर कर भाई के, सौदे से आये बाज़ नही।5।

तुम मंगल गान करो उनका, जो स्वसुर बन गए यवनों के |
जो निज प्राणों के वशीभूत, विक्रेता बन गए बहनों के |6|

तुम कहो मुबारक ईद उन्हें,जो शिखा कटा कर जिन्दा हैं |
तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, जो मूंछ तान शर्मिदा है |7|

हो जय जयकार सदा उनकी, जो यवनों के हम्प्याले थे |
हिन्दू होकर हिन्दू का ही, जो खून चूसने वाले थे |8|

तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, जो भारत माँ के लाल बने ।
गोपाल की धरती पर रहकर, जो गऊओं के दल्लाल बने ।9।

तुम कहो मुबारक ईद उन्हें, जो अंग्रेजों के मुखबिर थे ।
जलियांवाला चिल्लाता है वो हिन्दू थे वो हिन्दू थे ।10।
सभी समाज बंधू ईद की मुबारकबाद असली नकली राजपूतों को अवश्य दे

तौमर राजपूत सिंघाडिया

ल मुझे दो व्यक्ति मिले । उनका निहायत पक्का अर्थात शुद्ध काला रंग उनके अनार्य रक्त को दूर से ही प्रमाणित कर रहा था । निश्चय ही वे किसी अन्त्यज अथवा शूद्र जाति के रहे होंगे । जिज्ञासावश मैं उन्हें देख कर ठिठक गया । वे किसी काम से बैंक आये थे । मैं भी एक चैक के क्लीयरेंस के सिलसिले में बैंक आया था । स्वभावतः मैंने उन्हें बुलाकर कुशलक्षेम के पश्चात उनका परिचय ,कार्यक्षेत्र और जाति के विषय में पूछा । मेरी जोरदार हंसी छूट गयी जब उन्होंने अपने आपको सिंघाडिया तौमर राजपूत जाति का बताया । मैंने अनजान बनते हुए कहा कि ये सिंघाडिया कौन सी जाति होती है तो वे कहने लगे तौमर राजपूत । मैंने कहा तौमर राजपूत या तौंगड़ राजपूत ? अब बारी उनके हक्के बक्के रहने की थी ।
दरअसल हिमालय के तलहटी से सटे तराई क्षेत्र में नदियाँ सीधे पर्वतों से उतर कर वनक्षेत्र में पसर जाती थीं जिस कारण यहाँ जंगलों और दलदली भूमि का बाहुल्य था । आजादी के पश्चात एक दर्जन से अधिक बाँध बन जाने के कारण नदियों ने अपना मार्ग बदल दिया और पुराने नदी मार्गों पर बड़ी बड़ी झीलें और तोड़ बन गए जो कालांतर में तालाबों में परिवर्तित हो गए । मछुआ समुदाय के जिन जातियों के लोग इन तालाबों में मछलियों का शिकार करते थे.....वे स्थानीय बोली में तुराहे धीमर कहलाये और जो लोग इन तालों में बंद ऋतुकाल में सिंघाड़े की बेल डालकर सिंघाड़ा उत्पादन करते थे वे सिंघाडिये कहलाये और इन तालाबों पर काबिज आश्रित होते गए। ये जल श्रमिक सिंघाड़ा उत्पादन में माहिर होते हैं और ट्यूब अथवा तौमे पर बैठकर दिनभर तालाब में तैरते रहते हैं । नंगे बदन दिनभर धुप में रहने के कारण इनका शरीर काला हो जाता है , ज्यादा समय गंदे पानी में रहने के कारण इनको चर्मरोग या त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ अधिकांशतया हो जाती है । इनके पास इसका एक घरेलू उपाय भी है…राख मलकर ये अपन त्वचा सम्बन्धी उपाय भी कर लेते हैं । चूँकि पिछड़ी जातियों में स्वयं को राजपूत कहलवाने की प्रवृत्ति आरम्भ से ही हावी थी अतः ये स्वयं को तौमर राजपूत सिंघाडिये कहलाते थे ।  ये जाति सामाजिक रूप से ग्रामीण परिवेश में लोध राजपूतों , सैनी और खडगवंशी राजपूतों यानि खागी कश्यप से काफी घुली मिली रहती थी  वे लोग इन सिघाडियों को छेड़ने अथवा चिढाने के लिए तौंगड़ राजपूत भी कहते थे ।
उन दोनॉ ने बताया कि वे बीस साल से एक बड़े तालाब पर काबिज थे जो उन्हें मुलायम सिंह जी की पिछली सरकार में वर्ष 94 में स्थानीय विधायक स्व० ज्ञानी हरिन्दर सिंह जी की सिफारिश पर दिया गया था ।  उस समय तालाब मात्र 6000 रुपयों में मिला था जिसका दस वर्ष बाद प्रथम रिन्यूवल 10000 रुपयों में हुआ , अब की बार रिन्यूवल 18000 रूपये में हो रहा था , उनके पास इतने रूपये की व्यवस्था नहीं थी नतीजतन उन्होंने तालाब का पट्टा बजरिये बयनामा कतई एक मुसलमान को रजिस्ट्री कराकर 1,30,000 रूपये में बेच दिया और उत्तराखंड जाकर भूमिहीनों में नाम लिखा आये और मकान भी वहीँ ले लिया । मैंने कहा तालाब बेचने की क्या जरूरत थी , तुम तालाब से 150 रूपये महीने यानि 5 रूपये रोज की भी बचत कर लेते तो दस वर्ष के 120 महीनों में 18000 की रकम जमा कर लेते । बोले खर्चा ही इतना है … बचत कहाँ से करें । मैंने समझाया बचत छोडो …बीडी पीना ही छोड़ देते तो 5 रूपये रोज जमाकर तालाब बचाकर ले जाते । वे निरुतर हो गए । मैंने बात सँभालते हुए पुनः कहा …. बेचना ही था तो अपने किसी मछुआ भाई को ही देते । वे कहने लगे किसी मछुआ जाति के व्यक्ति के पास इतने रूपये नहीं थे जो इस कीमत पर खरीद पाता । मैंने पुनः कहा किसी अन्य हिन्दू जाति को ही दे देते । कोई अन्य हिन्दू इस काम को नहीं करना चाहता …उनका बेलौस जवाब था ।
मैंने उन्हें बताया कि हमारे पास दो तालाब हैं, क्या उसमे वे सिंघाडे की बेल मजदूरी पर डाल सकते हैं ?  उनका जवाब था उन्हें ये काम आता ही नहीं है । अब चौंकने की बारी मेरी थी ,मैंने पूछा.....काम नहीं आता तो बीस साल से तालाब का क्या कर रहे थे ? वे बोले …मुसलमान को किराए पर दे रखा था । मैंने कहा मुसलमान क्या करता था तुम्हारे तालाब का। बोले……धीमरों से मजदूरी पर मछलियाँ मरवाता था । मैं अब झुंझलाने लगा । मैंने प्रतिप्रश्न किया ......... ये कार्य तो मछुआरों से आप स्वयं भी करवा सकते थे। वे बोले...... स्साले हमारे कहने से तैयार नहीं होते थे । बिरादरी की मजदूरी करने में शान घटती है न…। मुसलमान गाली बककर उनसे खूब काम कराता था । मैंने जानना चाहा कि फिर आपका क्या काम धंधा था। वे बोले नदी घाट पर खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज की पालेज बोते थे। मैंने शंकित होकर जाना चाहा किसकी भूमि पर ? वे सहज भाव से बोले मुसलमान की ।
मैंने अपना सर पीट लिया ।
जो समाज अपने अधिकार को खोकर सोया ही रहेगा और हाथ आये अवसर को यूँ ही छोड़ देगा साक्षात् ब्रह्मा भी उसका कल्याण नहीं कर सकते । मेरे Android फ़ोन का बैटरी बैकप जाता रहा अन्यथा उनकी फोटो खींचकर जरूर प्रकाशित करता ।

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

दूर हटो ऐ आर्य विदेशी !

स्वामी होकर सेवक रहना, हमको नहीं गवारा है ।
दूर हटो ऐ आर्य विदेशी ! भारत वर्ष हमारा है ।।

हम भारत के मूलनिवासी , एकलव्य बन जायेंगे
हम लेंगे अर्जुन से बदला, हाथ काट ले जायेंगे
पक्षपाती गुरु द्रोण भी हमसे, हरगिज़ बच न पायेगा
कल अंगुष्ठ लिया था जिसने, गर्दन दे के जायेगा
हिन्दू होकर हिन्दू का, शोषण इतिहास तुम्हारा है ।

दूर हटो ऐ आर्य विदेशी ! भारत वर्ष हमारा है ।।

नदी घाट और ताल हमारे, पूँजीवाद के नाम हुए ।
हुए बेदखल मछुआ वंशज, पैतृक हक़ नीलाम हुए ॥
बोली लगती रही हमारे, सदियों के अधिकारों पर ।
और घबराये खड़े रहे हम, बेबस बने किनारों पर
इन्तजार करते हैं फिर कोई, राम पलट कर आएगा
हमें हमारी अंधभक्ति का, मोल वहीँ दे जायेगा
रामसखा के शत्रु  बनकर कहें राम अवतारा है ।

दूर हटो ऐ आर्य विदेशी ! भारत वर्ष हमारा है ।।

भूल ना करना, नहीं समझना, अब निषाद बँट जायेगा
जो थोडा सा बचा कुहासा, अति शीघ्र छंट जायेगा
फिर देंखें किसमें दमखम है, जो टकराने आएगा
साहस की अब अग्निपरीक्षा, हाँ निषाद जुट जायेगा
सत्ता चाहे कुछ भी कर ले, अब अधिकार न छोड़ेंगे
हम अपनी ताक़त के बल पर, दरिया का रुख मोडेंगे।
हम निषाद जंगल के वासी, जल पर राज हमारा है ।

दूर हटो ऐ आर्य विदेशी ! भारत वर्ष हमारा है ।।

कापीराईट @ अरुणकुमार तुरैहा